बढ़ता एनपीए, कमजोर बैंक, सहमी सरकार
अब इसमें कोई दो राय नहीं रह गई है कि सरकारी क्षेत्र के बैंक देश की मौजूदा अर्थव्यवस्था के सबसे कमजोर कड़ी बन गई है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अब इसमें कोई दो राय नहीं रह गई है कि सरकारी क्षेत्र के बैंक देश की मौजूदा अर्थव्यवस्था के सबसे कमजोर कड़ी बन गई है। शुक्रवार से बैंकों की दशा व दिशा पर चर्चा करने के लिए सरकार, रिजर्व बैंक और इन बैंकों के शीर्ष अधिकारी जब इकट्ठे हुए तो सिर्फ यही चर्चा का विषय रहा कि संकट के इस दौर से किस तरह से बाहर निकला जाए। ज्ञान संगम के नाम से इस बैठक के पहले दिन बंद कमरे में बैंकों और सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों को आरबीआइ के गवर्नर डॉ. रघुराम राजन ने भी संबोधित किया।
वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने फंड की कमी से जूझ रहे इन बैंकों को आश्वासन दिया है कि सरकार उनकी जरुरत को पूरी करने में पूरी मुस्तैदी दिखाएगी। बजट में बैंकों के लिए 25 हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है लेकिन अगर इन्हें जरुरत हुई तो और दिया जाएगा। बैंको की बढ़ रही फंसे कर्जे यानी एनपीए (नॉन परफॉरमिंग एसेट्स) की समस्या पर उन्होंने कहा कि सरकार इसे समझ रही है और इसको लेकर चिंतित भी है। उन्होंने कहा कि सरकारी व निजी बैंकों का मिला कर कुल 8 लाख करोड़ रुपये कर्ज की राशि फंसी हुई है। लेकिन अच्छी बात यह है कि समस्या अब बढ़ नहीं रही है और अब इसमें सुधार ही आने वाला है। कर्ज की राशि को वसूलने की प्रक्रिया तेज की गई है और सरकार इस बारे में आरबीआइ के साथ लगातार संपर्क में है।
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वित्त राज्य मंत्री चाहे जितना भी भरोसा दिखाये हकीकत यह है कि फंसे कर्जे की भरपाई व वसूली का कोई नया तरीका नहीं खोजा गया तो कई सरकारी बैंकों को भारी वित्तीय संकट का सामना करना पड़ेगा। दिसंबर, 2015 में समाप्त तिमाही के प्रदर्शन से साफ है कि एनपीए की वजह से बैंकों को काफी घाटा उठाना पड़ा है। ताजे आंकड़े बताते हैं कि बासेल-तीन के नियमों के मुताबिक बैंकों को अगले तीन वर्षो में अपनी तरफ से 2.80 लाख करोड़ रुपये का इंतजाम करना होगा। इसमें 70 हजार करोड़ रुपये केंद्र दे सकती है जिसमें से 25 हजार करोड़ रुपये इस साल दिए गए हैं। लेकिन अभी भी 2.10 लाख करोड़ रुपये का इंतजाम बैंकों को करना होगा।
सरकार इनमें अपनी हिस्सेदारी घटा कर 51 फीसद करना चाहती है लेकिन बाजार की मौजूदा स्थिति को देखते हुए जानकार इसे एक बढि़या विकल्प नहीं मानते। यहां तक कि संसदीय समिति ने पिछले दिनों में अपनी रिपोर्ट में बढ़ते एनपीए को बैंकिंग व्यवस्था के लिए खतरा करार दिया है। संसदीय समिति के मुताबिक सिंतबर, 2015 तक की स्थिति के मुताबिक सरकारी बैंकों के कुल एनपीए की राशि 3,69,990 करोड़ रुपये थी।
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