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    ..आखिर इनके पास कैसे पहुंचता है आपका मोबाइल नंबर?

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    Updated: Wed, 15 Jan 2014 10:37 AM (IST)

    मोबाइल फोन की जरूरत को आप सभी समझते हैं। इसके बिना अब तो जीवन अधूरा सा लगने लगा है। तेजी से हो रही मोबाइल क्रांति का आनंद सभी उठा रहे हैं, लेकिन इस क्रांति ने एक अशांति भी फैला दी है। कभी भी, कही भी अचानक फोन की घंटी बजती है। दूसरी ओर एक आवाज आती है, सर या मेडल या आपका नाम.. है। क्

    नई दिल्ली। मोबाइल फोन की जरूरत को आप सभी समझते हैं। इसके बिना अब तो जीवन अधूरा सा लगने लगा है। तेजी से हो रही मोबाइल क्रांति का आनंद सभी उठा रहे हैं, लेकिन इस क्रांति ने एक अशांति भी फैला दी है।

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    कभी भी, कही भी अचानक फोन की घंटी बजती है। दूसरी ओर एक आवाज आती है, सर या मैडम या आपका नाम..। क्या आपसे दो मिनट बात हो सकती है? अमूमन जवाब होता है मैं बिजी हूं या कभी बात नहीं कर सकता। लेकिन इस फोन से व्यक्ति तंग तो आ ही जाता है।

    अब आपके फोन पर होगी मौसम की जानकारी

    समझ तो यह नहीं आता कि इन लोगों के पास नंबर आता कहां से है और यह नाम कैसे जान लेते हैं। क्या आप जानते हैं कि आपका नाम और नंबर इन लोगों के पास कैसे पहुंचता है? विज्ञापनों के इस अतिक्रमण के लिये कुछ हद तक हम भी जिम्मेदार हैं। किसी मॉल या शोरूम में जा कर उनकी 'गेस्ट बुक' भरना, या किसी अच्छे रेस्त्रां में खाने के बाद उनको 'फीड बैक' देना, यह सब करके हम अपने संपर्क सूत्र जैसे मोबाइल नंबर, ई-मेल, जन्म-तिथि इत्यादि सार्वजनिक ही तो कर रहे हैं।

    कार में बैठते ही स्मार्टफोन पूछेगा म्यूजिक चलाना है या नहीं

    फेसबुक या ऐसी ही कितनी ही अन्य वेबसाइट्स भी ये विवरण मांगते हैं। उदाहरण के तौर पर एक जींस खरीदने पर भी हम अपना नाम, फोन नंबर और ई-मेल आसानी से लिख देते हैं। ऐसा करने से बचकर हम कुछ हद तक इस समस्या से निजात पा सकते हैं।

    आने वाले हैं ये धमाकेदार स्मार्टफोन

    क्या आप जानते है कि आपका नंबर कौन बच रहा है? हमारे ये नंबर इनको मिलते कैसे हैं? क्या टेलीकॉम कंपनी का ही कोई कर्मचारी कुछ रुपयों के लिये अपना 'डेटाबेस' बेच देता है? या फिर कई टीमें हैं जो बाकायदा ऐसे मॉल और होटलों में जा कर, पैसे देकर हमारा लेखा-जोखा हासिल कर लेती हैं?

    भारत जैसे देश में जहां लाखों नौजवान पढ़ाई पूरी करने के बाद भी नौकरी की तलाश में भटक रहे हैं, उनका ऐसे कामों में लग जाना नामुमकिन नहीं। यह एक 'ब्लैक-होल' जैसी स्थिति है। जो छोटी कंपनियां इसमें पूरी तरह या 'पार्ट टाइम' लगी हैं, वो अपने आंकड़े बताने को तैयार नही होती।

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