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एयरलाइन उद्योग के बचाव में उतरी सरकार

वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रिसमूह यानी जीओएम ने देश की एयरलाइनों को विदेश से सीधे तेल यानी एटीएफ आयात की अनुमति दिए जाने का प्रस्ताव किया है।

By Edited By: Published: Tue, 07 Feb 2012 08:42 PM (IST)Updated: Tue, 07 Feb 2012 09:06 PM (IST)

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रिसमूह यानी जीओएम ने देश की एयरलाइनों को विदेश से सीधे तेल यानी एटीएफ आयात की अनुमति दिए जाने का प्रस्ताव किया है। अब इसे कैबिनेट को मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। विमानन मंत्री अजित सिंह ने बैठक के बाद बताया कि जीओएम ने भारतीय एयरलाइनों को राज्यों की ऊंची बिक्रीकर दरों से बचाने के लिए यह प्रस्ताव किया है। एयरलाइनों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआइ] का मसला जीओएम के एजेंडे में नहीं था। वैसे, 49 फीसदी एफडीआइ की अनुमति देने के बारे में कैबिनेट नोट जल्द भेजा जाएगा।

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अजित ने कहा कि नकदी संकट से उबारने के लिए भारतीय एयरलाइनों को विदेश से सीधी विमान ईंधन [एटीएफ] के आयात को जरूरी समझा गया है। राज्यों में अत्यंत ऊंची बिक्री दरों की वजह से एयरलाइनों की 40 प्रतिशत लागत एटीएफ पर आती है। इससे बचने के लिए वे काफी समय से सीधे एटीएफ आयात की अनुमति मांग रही थीं।

लंबे अरसे से सरकारी एयर इंडिया और निजी क्षेत्र की किंगफिशर समेत देश की विभिन्न एयरलाइनें एटीएफ के बकायों का भुगतान नहीं कर पा रही हैं। इस कारण तेल कंपनियां कई बार एयरलाइनों को आपूर्ति भी रोक चुकी हैं। काफी जद्दोजहद के बाद तेल कंपनियों ने एयरलाइनों को बकाया भुगतान के लिए तीन महीने की मोहलत दी है। इस समस्या का कोई स्थायी समाधान अब तक नहीं निकल पाया है। वहीं, एटीएफ कीमतों में अक्सर वृद्धि होती रहती है। इसकी ऊंची कीमतों में राज्यों के बिक्रीकर की प्रमुख भूमिका है, जो 12 फीसदी के करीब है। कर की यह दर विश्व में सर्वाधिक है। इसे लेकर एयरलाइन उद्योग सरकार से कई बार गुहार लगा चुका है, लेकिन केंद्र सरकार राज्यों को बिक्रीकर कम करने के लिए मनाने में नाकाम रही है। यही वजह है कि अब उसने सीधे एटीएफ आयात की अनुमति देने का रास्ता निकाला है। इससे एयरलाइनों को सिर्फ आयात शुल्क देना पड़ेगा और वे बिक्रीकर अदा करने से बच जाएंगी। अजित ने कहा भविष्य में एयरलाइनों को तेल कंपनियों से एटीएफ की आपूर्ति अचानक न बंद हो, इसका भी कोई न कोई रास्ता निकाला जाएगा।

जहां तक विदेशी निवेश का सवाल है, तो सुरक्षा कारणों से भारतीय एविएशन कंपनियों में विदेशी एयरलाइनों को एफडीआइ की अनुमति अभी नहीं है। केवल विदेशी गैर एयरलाइन कंपनियां भारतीय एयरलाइनों में 49 फीसदी तक निवेश कर सकती हैं। हवाई अड्डों तथा विमानों के मेंटीनेंस, रिपेयर एवं ओवरहॉल [एमआरओ] सुविधाओं में 100 फीसदी तक एफडीआइ की इजाजत है। व्यालार रवि के विमानन मंत्री रहते नागर विमानन मंत्रालय ने एयरलाइनों में विदेशी एविएशन कंपनियों को 24 फीसदी तक एफडीआइ की अनुमति का सुझाव दिया था। वहीं, औद्योगिक नीति एवं संव‌र्द्धन विभाग इसे 26 फीसदी करने के पक्ष में था। जीओएम की बैठक में गृहमंत्री पी चिदंबरम, पेट्रोलियम मंत्री एस जयपाल रेड्डी, वाणिज्य व उद्योगमंत्री आनंद शर्मा के अलावा योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने भी शिरकत की।

एयर इंडिया के वित्तीय पुनर्गठन को जीओएम की हरी झंडी

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो : प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले जीओएम ने एयर इंडिया के वित्तीय पुनर्गठन की भी मंजूरी दे दी है। इसके तहत एयर इंडिया को बाजार से 7,400 करोड़ रुपये बांड या किसी और तरीके से जुटाने के लिए सरकार इसमें 6,600 करोड़ की इक्विटी का समावेश करेगी। इस प्रस्ताव को भी केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष मंजूरी के लिए रखा जाएगा। लगभग डेढ़ घंटे चली जीओएम की बैठक के बाद अजित सिंह ने यह जानकारी दी।

एयर इंडिया बांडों के जरिए उपरोक्त राशि जुटा सके इसके लिए सरकार एयर इंडिया में 6,600 करोड़ रुपये की इक्विटी का समावेश करने पर भी विचार कर रही है। सरकारी सूत्रों ने कहा कि बाजार से 7,400 करोड़ जुटाने से पहले एयर इंडिया की इक्विटी बढ़ाना जरूरी है। वरना यह राशि जुटाने में कठिनाई आ सकती है। एयर इंडिया बाजार से जो राशि जुटाएगी, उसका इस्तेमाल बैंकों का कर्ज चुकाने में किया जाना है। बैंकों व वित्तीय संस्थानों ने ही एयर इंडिया के लिए यह रास्ता सुझाने के साथ ही इक्विटी बढ़ाने की सलाह भी दी है।

एयर इंडिया पर आज की तारीख में तकरीबन 67,520 करोड़ की देनदारियां हैं। इसमें से 21,200 करोड़ रुपये का कार्यशील पूंजी का कर्ज, विमानों की खरीद का 22 हजार करोड़ रुपये का दीर्घकालिक ऋण तथा 4,600 करोड़ रुपये वेंडरों का बकाया शामिल है। इसके अलावा कंपनी का 20,320 करोड़ रुपये का घाटा भी है।

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