वित्त मंत्री के भाषण में होंगे चुनावी एजेंडे के संकेत
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जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अगले सप्ताह 17 फरवरी को जब वित्त मंत्री पी. चिदंबरम लेखानुदान पेश करने लोकसभा में खड़े होंगे तो सिर्फ तीन महीने के खर्च के आंकड़े ही प्रस्तुत नहीं करेंगे।
चिदंबरम के भाषण में संप्रग सरकार के दस साल का ब्योरा और आगे की रणनीति के संकेत भी हो सकते हैं। वित्त मंत्री को अगले सोमवार को नए वित्त वर्ष 2014-15 के तीन महीने के खर्च की अनुमति लेखानुदान के रूप में लेनी है। आमतौर पर लेखानुदान में सरकारें किसी तरह की नई घोषणाओं और एलानों से बचती हैं।
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जिन करों में बदलाव के लिए अधिनियम में संशोधन की आवश्यकता होती है, वैसे प्रस्ताव भी लेखानुदान में नहीं लाए जाते। केवल जुलाई तक के सरकार के खर्च की अनुमति संसद से ली जाती है। लेकिन सरकार के सूत्र बता रहे हैं कि मौजूदा राजनीतिक माहौल में वित्त मंत्री आगामी लोकसभा चुनावों को देखते हुए लेखानुदान भाषण का इस्तेमाल अपने मतदाताओं को संबोधित करने के लिए कर सकते हैं। इसमें संप्रग सरकार की बीते दस साल की बड़ी उपलब्धियों को गिनाए जाने की प्रबल संभावना है। उन कार्यक्रमों को आगे भी जारी रखने का वादा वित्त मंत्री कर सकते हैं।
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टैक्स सुधारों का मसला भी लेखानुदान के भाषण में उठाया जा सकता है। प्रत्यक्ष कर संहिता की अधिकांश रियायतों को सरकार पहले ही मान चुकी है। लेकिन माना जा रहा है कि वित्त मंत्री कर रियायत जैसे विषयों को आने वाली सरकार पर छोड़ने की बात कह इनका फायदा आगे देने का इशारा भी कर सकते हैं। इस तरह के मुद्दों को लेखानुदान भाषण में समेट कर वित्त मंत्री अपना आगे का एजेंडा भी तय कर सकते हैं।
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आमतौर पर लेखानुदान का भाषण काफी संक्षिप्त होता है, लेकिन पिछले दो चुनावों से पहले वित्त मंत्री 16 से 18 पन्नों का भाषण पढ़ रहे हैं। 2004 में तत्कालीन वित्त मंत्री जसवंत सिंह और 2009 में वित्त मंत्री रहे प्रणब मुखर्जी ने इसी परंपरा का पालन किया था।

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