कंपनियों से बकाया कर्ज बसूलने पर सरकार ने खड़े किए हाथ
फंसे कर्ज (एनपीए) की समस्या से जूझ रहे सरकारी बैंकों को केंद्र सरकार ने जो संदेश दिया है, वह उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं आएगा। सरकार का बैंकों को दिया गया दो टूक संदेश यही है कि तेजी से बढ़ते फंसे कर्ज (नॉन परफॉरमिंग एसेट्स) को लेकर उसके हाथ में
नई दिल्ली। फंसे कर्ज (एनपीए) की समस्या से जूझ रहे सरकारी बैंकों को केंद्र सरकार ने जो संदेश दिया है, वह उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं आएगा। सरकार का बैंकों को दिया गया दो टूक संदेश यही है कि तेजी से बढ़ते फंसे कर्ज (नॉन परफॉरमिंग एसेट्स) को लेकर उसके हाथ में बहुत कुछ नहीं है। सरकार तो यहां तक मान रही है कि अगले दो-तीन वर्षों तक फंसे कर्जे की स्थिति कमोबेश ऐसी ही रहेगी। जब अर्थव्यवस्था की स्थिति सुधरेगी, तभी एनपीए पर भी लगाम लगेगा।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राज्य सभा में बजट पर जारी परिचर्चा का जबाव देते हुए एनपीए को लेकर सरकार की सोच का खुलासा किया। जेटली ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि कंपनियों को बकाये कर्ज के भुगतान के लिए अतिरिक्त समय देने की मौजूदा नीति में भी कोई बदलाव नहीं किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि फंसे कर्ज में डूबी कंपनी बंद हो जाती है तो उसका व्यापक असर होता है। नौकरियां चली जाती हैं। कर्ज की राशि पूरी तरह से डूब जाती है। इसलिए उस कंपनी को दोबारा कर्ज देने और पुराने की अदायगी में नरमी का प्रावधान किया जाता है ताकि वह धीरे-धीरे अपनी स्थिति ठीक करे। अभी जो एनपीए की स्थिति है वह भी इसी की वजह से उत्पन्न हुई है। दो से तीन वर्षो में जब अर्थव्यवस्था की स्थिति सुधरेगी तब फंसे कर्ज की स्थिति में भी सुधार होने की उम्मीद है।
बढ़ता जा रहा फंसा कर्ज
सरकार की तरफ से दिए गए आंकड़े बताते हैं कि केंद्र में नई सरकार के आने के बाद भी एनपीए की समस्या कम नहीं, बल्कि पहले से ही ज्यादा खराब हुई है। दिसंबर, 2014 तक सभी सरकारी बैंकों का संयुक्त तौर पर एनपीए 80,535 करोड़ रुपये हो चुका है। यह कुल दिए गए कर्ज का 5.71 फीसद है, जिसे काफी खतरनाक स्तर माना जा रहा है। एनपीए बढ़ने के साथ ही बकाये कर्जे को बट्टे खाते में डालने की राशि में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है। वर्ष 2011-12 में 15,551 करोड़ रुपये की राशि बट्टे खाते में डाली गई थी। वित्त वर्ष 2013-14 में 34,409 करोड़ रुपये बैंकों ने बट्टे खाते में डाले।
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