अमेरिका ने भारत से कहा, हमसे खरीदो सैन्य हथियार और तकनीक
भारत के सैन्य शस्त्रगार में रूसी पैठ से मुकाबले के लिए अमेरिका भी अब ब्रह्मोस जैसे संयुक्त उपक्रम लगाना चाहता है। भारत के साथ सैन्य तकनीक साझेदारी के लिए अमेरिका ने अपनी घरेलू कानूनी बंदिशों को काफी लचीला बना लिया है। दोनों देशों के बीच रक्षा कारोबार साझेदारी के लिए आए उपमंत्री एश्टन कार्टर ने कहा है कि भारत को सैन्य तकनीक मुहैया कराने के लिए अमेरिका सिस्मोआ और एलएसए जैसे समझौतों की बंदिशों में भी ढील दे दी है। हालांकि, स्वदेशी मिसाइल अग्नि-पांच के दूसर
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भारत के सैन्य शस्त्रगार में रूसी पैठ से मुकाबले के लिए अमेरिका भी अब ब्रह्मोस जैसे संयुक्त उपक्रम लगाना चाहता है। भारत के साथ सैन्य तकनीक साझेदारी के लिए अमेरिका ने अपनी घरेलू कानूनी बंदिशों को काफी लचीला बना लिया है। दोनों देशों के बीच रक्षा कारोबार साझेदारी के लिए आए उपमंत्री एश्टन कार्टर ने कहा है कि भारत को सैन्य तकनीक मुहैया कराने के लिए अमेरिका सिस्मोआ और एलएसए जैसे समझौतों की बंदिशों में भी ढील दे दी है। हालांकि, स्वदेशी मिसाइल अग्नि-पांच के दूसरे परीक्षण के बाद आए कार्टर ने भारत और चीन के बीच किसी तरह की हथियार होड़ को नुकसान बताया।
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भारत में मंगलवार को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन के साथ रक्षा कारोबार पर बैठक के बाद अमेरिकी रक्षा उपमंत्री ने कहा, 'भारत के साथ सैन्य तकनीक साझेदारी के लिए हमने तय किया है कि संचार संबंधी सिस्मोआ करार और साजो-सामान में सहयोग के लॉजिस्टिक सपोर्ट एग्रीमेंट जैसे समझौतों को रुकावट न बनाने का फैसला किया है।'
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कार्टर ने जोर दिया कि अमेरिका भारत के साथ व्यापक रक्षा साझेदारी को विशेष अहमियत देता है। उन्होंने बताया कि अमेरिका की ओर से भारत को अगली पीढ़ी की जैवलिन मिसाइल और सी-130जे सुपर हरक्यूलिस विमान समेत साझा उत्पादन व सैन्य विकास के कई प्रस्ताव दिए गए हैं। उन्होंने संकेत दिए कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की इस महीने के अंत में होने वाली मुलाकात में रक्षा साझेदारी के खरीद प्रस्तावों पर समझौता संभव है।
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भारत के साथ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण व सैन्य साझेदारी में बड़ा कारोबार देख रहा अमेरिका रियायतों के साथ संवेदनशील तकनीक भी साझा करने को बेताब है। भारत हथियार खरीद में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर जोर दे रहा है, जबकि अमेरिका के साथ अब तक हुए सभी सौदों में केवल खरीदार-विक्रेता का संबंध ही रहा है। भारत रूस के साथ ब्रह्मोस जैसी मिसाइल विकसित कर चुका है। वहीं, पांचवीं पीढ़ी के युद्धक विमान में भी साझेदार है।
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इजराइल के साथ भी भारत की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल विकास की परियोजना है। भारत और चीन के पास अंतर-महाद्वीपीय मारक क्षमता वाली मिसाइलों पर कार्टर ने कहा कि एशिया में किसी तरह की हथियार होड़ अहितकर है। एशिया-प्रशांत का पूरा क्षेत्र आर्थिक विकास की संभावना वाला है और काफी समय से संघर्षमुक्त भी है। अमेरिकी उपमंत्री ने एशिया प्रशांत क्षेत्र और भारत की भूमिका को अहम बताया। साथ ही इस बात पर जोर दिया कि अमेरिकी साझेदारी ने ही एशिया क्षेत्र में जापान, कोरिया व दक्षिण-पूर्व एशिया के कई मुल्कों के विकास में योगदान दिया।