नारी सशक्तिकरण: आशा ने लांघ दिया निराशा का आंगन
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस नौ मार्च को लखनऊ में प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अशोक कुमार सिन्हा एवं मिशन निदेशक आलोक कुमार ने राधा को सम्मान पत्र और स्मृति चिह्न भेंट किया।
शादी के बाद राधा के लिए घर के आंगन का ही पूरा दायरा था। घर चलाने में पति को मुश्किलें आ रही थीं लेकिन राधा को देहरी लांघने की मंजूरी नहीं थी। इस बीच एक बाधा और आ गई। ग्यारह साल पहले पति भी गंभीर बीमार हो गए। ऐसे में राधा ने नौकरी की चाहत बता दी। इससे घर में तूफान उठ खड़ा हुआ। इसके बाद भी राधा अडिग रहीं।
सन् 2001 में राधा शादी के बाद गांव बिल्टीगढ़ आई थीं। कुछ समय बाद ही हाईस्कूल तक पढ़ी हुई राधा के पति तिलक सिंह को क्षय रोग हो गया। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। दैनिक खर्च के अलावा पति की दवा के लिए भी पैसों की जरूरत थी। ऐसे में राधा को आशा कार्यकर्ता की जगह रिक्त होने की जानकारी हुई। वर्ष 2005 में आशा बनने का मन बना लिया। उस वक्त आशा को मिलने वाले रुपये ज्यादा नहीं थे, लेकिन राधा की सोच थी स्वास्थ्य महकमे से जुड़ेंगी तो दो उद्देश्य पूरे हो सकते हैं। पहली गांव में स्वास्थ्य की अलख जगा सकेंगी, दूसरी पति के इलाज में भी सहायता होगी।
राधा ने घर में बताया तो परिवारवालों ने विरोध कर दिया। सास-ससुर ने राधा के घर की देहरी लांघने का विरोध कर दिया। ऐसे में एएनएम चंद्रकांता ने उन्हें समझाने की जिम्मेदारी संभाली और सफल रहीं। इससे गांव जिले में इनकी सफलता की कहानी कहने लगा। वर्ष 2013 में अचानक प्रतिकूल परिस्थिति पैदा हो गई। राधा के पति की मौत हो गई। दो बच्चों को पालने-पोसने की जिम्मेदारी अब राधा पर ही थी। इसी लगन ने सूबे की तीन बेहतरीन आशा कार्यकत्रियों में फीरोजाबाद का भी नाम शामिल करा दिया।
प्रमुख सचिव ने दिया पुरस्कार
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस नौ मार्च को लखनऊ में प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अशोक कुमार सिन्हा एवं मिशन निदेशक आलोक कुमार ने राधा को सम्मान पत्र और स्मृति चिह्न भेंट किया। अब जिला मुख्यालय से पांच किमी दूर बिल्टीगढ़ में चार आशा हैं, लेकिन राधा की पहचान ही अलग है।