सूखे से घिरे बीड में किसान ने खुदवाए 48 बोरवेल
विशंबर जगताप को उनके गांव वाले 'बोरवेल मेन' कहते हैं। अक्सर सूखे से प्रभावित रहने वाले अष्टी तालुका के गांव में अनार की खेती करने वाले जगताप का घर हर कोई जानता है। बीड के गांव में वह स्थानीय सिलेब्रिटी की तरह हैं। जगताप के खेत में 48 बोरवेल हैं। इनमें
बीड। विशंबर जगताप को उनके गांव वाले 'बोरवेल मेन' कहते हैं। अक्सर सूखे से प्रभावित रहने वाले अष्टी तालुका के गांव में अनार की खेती करने वाले जगताप का घर हर कोई जानता है। बीड के गांव में वह स्थानीय सिलेब्रिटी की तरह हैं। जगताप के खेत में 48 बोरवेल हैं।
इनमें से कुछ बोरवेल 1000 फीट तक गहरे हैं। यह लंबाई मुंबई की किसी 60 मंजिला गगनचुंबी इमारत जितनी है। वह यहां के सबसे बड़े किसान हैं, जिनके पास 18 एकड़ जमीन है। जगताप कहते हैं कि इस साल मैंने सिर्फ एक ही बोरवेल खोदा है।
सूखे की त्रासदी से घिरे इस क्षेत्र में जगताप ने 2005 में बोरवेल डालना शुरु किया था। वे बताते हैं कि जमीन के भीतर पानी का स्तर कम होने के चलते 48 में से सिर्फ 15 बोरवेल ही काम कर रहे हैं। वह बताते हैं कि एक बोरवेल का औसत खर्च करीब 75 हजार रुपये होता है। बोरवेल जितना गहरा खुदता है, उतनी ही मोटी रकम खर्च होती है।
किस जगह बोरवेल कराना है इसके लिए वे स्थानीय पंडितों की मदद लेते हैं। इसमें नारियल का उपयोग किया जाता है, जो खेत में पानी वाली जगह पर जादुई रूप से अपने आप घूम जाता है। उन्होंने बताया कि एकबार यह मैंने खुद अपनी आंखों से देखा था, लेकिन उस जगह से पानी नहीं निकला।
भूमिगत जल सर्वे और विकास एजेंसी द्वारा 2011 में दी गई एक रिपोर्ट के अनुसार, पूरे राज्य में सिंचाई के लिए ही करीब दो लाख बोरवेल खोदे गए हैं, वहीं 1.69 लाख बोरवेल घरेलू उपयोग के काम आ रहे हैं।
जगताप बताते हैं कि उनकी जमीन पर भी सिंचाई आदि का खर्च जमकर होता है। उन्होंने बताया कि हमें टैंकर किराये पर लेना पड़ता है, जिसका किराया 3000 प्रतिदिन होता है। जगताप के मुताबिक कमाई का एक तिहाई हिस्सा पानी की कमी को पूरा करते हुए खर्च हो जाता है। उन्होंने बताया कि जो इतने सक्षम नहीं हैं, वे इस तरह की सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं।
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