14 साल तक के बच्चों को बाल मजदूरी से रोका जाए: सत्यार्थी
14 साल तक के बच्चों को हर प्रकार की बाल मजदूरी से रोका जाए। यह बात नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने कही। वे समन्वय भवन में प्रेस को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सरकार पुराने नियमों पर मोहर लगा रही है।
भोपाल [नप्र]। 14 साल तक के बच्चों को हर प्रकार की बाल मजदूरी से रोका जाए। यह बात नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने कही। वे समन्वय भवन में प्रेस को संबोधित कर रहे थे। बालश्रम कानून में संशोधन के सवाल पर उन्होंने कहा कि सरकार पुराने नियमों पर मोहर लगा रही है। 14 साल से कम उम्र के बच्चों को पारिवारिक कारोबार में काम करने की छूट पहले से है, जो हम नहीं चाहते।
उन्होंने कहा कि 18 मई को मैं संयुक्त राष्ट्र संघ के विश्व शिक्षा सम्मेलन में शामिल होने कोरिया जा रहा हूं। वहां से लौटकर प्रधानमंत्री से बात करूंगा। अभी मेरी केंद्रीय श्रम मंत्री से बात हुई है। फिलहाल कानून में संशोधन का मसौदा संसद पटल पर नहीं रखा गया है, इसलिए अभी बहुत कुछ करने की गुंजाइश है।
उन्होंने कहा कि कोरिया में विश्व शिक्षा सम्मेलन में भी मैं '14 साल तक के बच्चों को बाल मजदूरी से रोकने, 15 से 18 साल तक के बच्चों से खतरनाक उद्योगों में काम न कराने, बालश्रम कराने के मामलों में न्याय जल्द करने और बाल मजदूरों के पुनर्वास की गारंटी सरकार लेÓ यह मांगें उठाऊंगा।
परिवार की परिभाषा तय हो
पारिवारिक कार्य में बच्चों को लगाने पर सत्यार्थी ने कहा कि सबसे पहले तो परिवार की परिभाषा तय होनी चाहिए। यदि बच्चा अपने माता-पिता के साथ काम करता है, तो इसमें कुछ बुरा नहीं है। वे खुद उसके स्वास्थ्य के प्रति चिंतित हैं और माता-पिता न हों, तो कानूनी अभिभावक को इस परिभाषा में शामिल किया जाए। फिर भी हम यह कहेंगे कि पढ़ाई प्रभावित नहीं होना चाहिए। देश में 18 उद्योग और 65 काम स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं। कानून में संशोधन के समय इस सूची को आगे बढ़ाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए। मैंने फैमिली के नाम पर बहुत गड़बड़ होते देखा है। लोग बेटा और भतीजा या भतीजी कहकर बच्चों से मजदूरी कराते हैं।
जुविनाइल जस्टिस एक्ट के मामले में उन्होंने कहा कि इसमें पिछली और वर्तमान सरकार नाकाम रही हैं। गंभीर अपराधों में लिप्त 16 से 18 साल तक के बच्चों को ज्यादा सजा मिलनी ही चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षा के बजट को बढ़ाना मेरी पहली मांग होगी।
उन्होंने कहा साढ़े चार दिन के सैन्य बजट से दुनियाभर के बच्चों को पढ़ाया जा सकता है। विश्व में आज भी 17 करोड़ बच्चे खरीदे-बेचे जाते हैं। इन हालातों से बच्चों को नहीं निकालते, तब तक संपूर्ण शिक्षा प्राप्त नहीं की जा सकती है।
उन्होंने कहा कि शिक्षा में आगे बढ़ते देशों से आतंकी डर गए हैं और इसीलिए दहशत फैला रहे हैं। दुनिया में 17 करोड़ बाल मजदूर हैं और 20 करोड़ वयस्क बेरोजगार हैं। इसमें गरीबी का बहाना नहीं चलेगा। बाल मजदूरी की वजह से गरीबी है।
उन्होंने कार्पोरेट जगत पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि अकेले कानून से समाज को नहीं बदला जा सकता। कार्पोरेट जगत भी नैतिकता, जबावदेही का परिचय दे। वह सुनिश्चित करे कि उनके उद्योगों में बाल मजदूरी नहीं होगी।
सत्यार्थी प्रसिद्ध शिक्षाविद् सुरेंद्रनाथ दुबे के अमृत महोत्सव में भी शामिल हुए। श्री दुबे के जीवन के 75 साल पूरे होने पर कार्यक्रम का आयोजन 'शिक्षाविद् श्री सुरेन्द्रनाथ दुबे अभिनंदन समितिÓ भोपाल मप्र ने किया था। यहां जय जगत ग्रंथ का लोकार्पण करते हुए सत्यार्थी ने कहा कि इतिहास की जय-जयकार करने से शिक्षा आगे नहीं बढ़ेगी। पुराने स्वाभिमान से सीखें, लेकिन कोशिश हमें करनी पड़ेगी।
उन्होंने टेलीविजन पर उपदेश देने वाले संतों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि टोटकों से देश की तस्वीर नहीं बदलेगी। लिखने से हस्तरेखा बनती है। ऐसे गुरओं को भी चाहिए कि वे देश में सुसंस्कार और नैतिक शिक्षा का माहौल बनाएं।
उन्होंने कहा कि जो लोग हर बच्चे को शिक्षा मुहैया कराना चाहते हैं, उनसे पहले आतंकी शिक्षा की ताकत समझ गए हैं। उन्हें पता चल गया है कि शिक्षित होने के बाद किसी को भी धर्म के नाम पर बहलाया नहीं जा सकता है। जय जगत ग्रंथ के लेखक शिक्षाविद् सुरेन्द्रनाथ दुबे हैं। लोकार्पण कार्यक्रम में कैलाश सत्यार्थी, प्रसिद्घ गांधीवादी और राष्ट्र शिक्षक एसएन सुब्बाराव और सुरेन्द्रनाथ दुबे का स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मान किया गया। यहां सुब्बाराव ने जग-जगत गीत सुनाया। इससे पहले सत्यार्थी ने बच्चों को मंच पर बुला लिया और अतिथियों के लिए आईं फ्रूटी उन्हें बांट दी। बच्चों ने उनके साथ फोटो भी खिंचवाए। वहीं सम्मान के दौरान उनके गले में दुपट्टा डाला, तो उन्होंने दूसरा दुपट्टा लेकर अपनी पत्नी के गले में डाल दिया।