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    देश के सपूतों की कहानी

    By Edited By:
    Updated: Fri, 24 Jan 2014 04:21 PM (IST)

    सच्चाई, अनुशासन और देशप्रेम हमें सच्चे गणतंत्र की राह पर ले जाता है। दोस्तो, हमें इस राह पर लाने में असंख्य स्वतंत्रता सेनानियों ने बढ़-चढ़ कर योगदान ...और पढ़ें

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    सच्चाई, अनुशासन और देशप्रेम हमें सच्चे गणतंत्र की राह पर ले जाता है। दोस्तो, हमें इस राह पर लाने में असंख्य स्वतंत्रता सेनानियों ने बढ़-चढ़ कर योगदान किया था। सच और साहस के साथ आगे बढ़ने का जज्बा उनमें बचपन से था। आओ जानें ऐसे ही कुछ चुनिंदा सेनानियों के बचपन की बातें..

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    बाल गंगाधर तिलक

    सच्चाई और अनुशासन की समझ लोकमान्य तिलक को बचपन से थी। उनके बचपन का एक प्रसंग काफी प्रसिद्ध है। इसके मुताबिक, एक दिन उनकी कक्षा के कुछ छात्रों ने मूंगफली खाकर छिलके फर्श पर बिखेर दिए। टीचर ने जब यह देखा, तो वे आग-बबूला हो गए। इस घटना के बाद सभी छात्र सहमे हुए थे। टीचर ने जब इस बारे में सबसे पूछा तो किसी ने अपनी गलती नहीं स्वीकारी। इस पर टीचर ने पूरी कक्षा को सजा देने का फैसला किया। उन्होंने प्रत्येक छात्र से अपना हाथ आगे बढ़ाने को कहा और एक-एक कर सबकी हथेली पर जोर-जोर से बेंत जड़ दी। जब तिलक की बारी आई, तो उनके चेहरे पर डर का भाव बिल्कुल नहीं था। उन्होंने अपना हाथ आगे नहीं बढ़ाया, बल्कि उसे बगल में दबा लिया और बोले-'मैंने मूंगफली नहीं खाई है, इसलिए बेंत भी नहीं खाऊंगा।' टीचर यह देखकर सन्न थे। उन्होंने गुस्से से फिर पूछा-'तुमने नहीं खाई, तो सच-सच बताओ कि मूंगफली किसने खाई है?' 'मैं किसी का नाम नहीं बताऊंगा और बेंत भी नहीं खाऊंगा' तिलक ने कहा। तिलक अपने इस रवैये की वजह से स्कूल से निकाल दिए गए। इसके बावजूद उन्हें इस बात का जरा भी मलाल नहीं था।

    सरोजिनी नायडू

    सरोजिनी नायडू के पिता अघोरनाथ एक वैज्ञानिक और शिक्षाशास्त्री थे। वे कविता भी लिखते थे। मां और भाई भी कवि थे। इस तरह सरोजनी को काव्य-सृजन की प्रेरणा अपने परिवार से ही मिली। पर उनके पिता उन्हें कवयित्री के बजाय वैज्ञानिक बनाना चाहते थे। अपनी बात मनवाने के लिए उन्होंने सरोजिनी को एक कमरे में बंद कर दिया। सरोजिनी ने रोते हुए पिता से कहा, मैं अंग्रेजी भाषा में आगे बढूंगी और आपका नाम रोशन करूंगी। महज 13 साल की उम्र में 1300 वाक्यों की लंबी कविता 'द लेडी ऑफ द लेक' लिखी, तो पिता को सरोजिनी को विज्ञान पढ़ाने का जिद छोड़नी पड़ी। जब सरोजिनी ने पर्शियन भाषा का नाटक 'माहेर मुनेर' लिखा, तो इसमें सबसे अधिक मदद उनके पिता ने ही की। उनके पिता ने इस नाटक की किताब की एक प्रति हैदराबाद के निजाम को भी दी। निजाम इसे पढ़कर इतने प्रभावित हुए कि इसके लिए उन्होंने सरोजिनी को विदेश पढ़ने का स्कॉलरशिप दिया। इस तरह महज 16 साल की उम्र में सरोजिनी नायडू इंग्लैंड पढ़ने गई।

    भगत सिंह

    भगत जब तीन वर्ष के थे, अपने पिता सरदार किशन सिंह के मित्र नंदकिशोर मेहता के खेत में गए। वहां उन्होंने खेल-खेल में मि˜ी के ढेर इकट्ठा कर उस पर छोटे-छोटे तिनके लगा दिए। भगत सिंह से जब इसका कारण पूछा गया, तो। उन्होंने जवाब में कहा-'मैं बंदूकें बो रहा हूं, क्योंकि मैं अपने देश को आजाद कराना चाहता हूं।' अपने साथियों के साथ खेलते समय भगत सिंह हमेशा साथियों को दो दलों में बांट देते थे। एक दल दूसरे दल पर आक्रमण करता था और यह खेल उन्हें बहुत प्रिय था। उनके मित्र उन्हें बहुत प्यार करते थे। वे अक्सर उन्हें कंधों पर बिठाकर घर तक छोड़ जाते थे।

    चंद्रशेखर आजाद

    एक बार गलत शब्द के उच्चारण पर चंद्रशेखर के भाई सुखदेव की टीचर ने छड़ी से पिटाई कर दी। आजाद उस समय 8 साल के थे। भाई की पिटाई होता देखकर वे बहुत दुखी हुए। जैसे ही उन्हें आभास हुआ कि टीचर भी उच्चारण करते समय लड़खड़ा रहे हैं, तो आजाद ने उनके हाथ से छड़ी खींचकर उन्हें मारना चाहा। यह देखकर वहीं पास बैठे उनके पिता ने झट से उनके हाथ से वह छड़ी छीन ली और उनके गुस्से का कारण पूछा। आजाद ने जवाब दिया-'मैंने कुछ गलत नहीं किया। इन्हें भी इनकी गलती की सजा दे रहा हूं और भाई को न्याय दिला रहा हूं।' आजाद शुरू से खिलंदड़ स्वभाव के थे और काफी साहसी भी थे। एक बार दीपावली के दौरान वे माचिस की तीली जलाकर खुश हो रहे थे। उन्होंने सोचा कि जब एक तीली जलने के बाद इतना आनंद दे सकती है, तो जब कई सारी तीलियां जलाई जाएंगी, तब तो नजारा और मजेदार होगा। उन्होंने ऐसा ही किया लेकिन ऐसा करते समय उनका हाथ जल गया। पर वे बेफिक्र थे। जब दोस्तों ने इस ओर उनका ध्यान दिलाया तो आजाद ने जवाब दिया-'मुझे कुछ नहीं हुआ..यह घाव अपने-आप ठीक हो जाएगा।'

    महात्मा गांधी

    जब गांधी सात साल के थे, उनके पिता पोरबंदर से राजकोट चले आए। गांधी को यहीं प्राइवेट स्कूल में दाखिला मिला। वे शुरू से एक मध्यम स्तर के स्टूडेंट थे, लेकिन ईमानदारी उनमें कूट-कूट कर भरी थी। वे कक्षा में किसी से बात नहीं करते थे। बस अपनी किताबों को पढ़ने और पाठ याद करने में उनका समय बीत जाता था। जब वे हाई स्कूल में थे, उनके स्कूल में इंस्पेक्शन के लिए एजुकेशनल इंस्पेक्टर आए थे। उन्होंने सभी छात्रों को पांच शब्द सही उच्चारण सहित लिखने को दिया। उन्हीं में से एक शब्द Kettleथा। गांधी इसका सही उच्चारण नहीं कर सके। टीचर ने उन्हें जूता दिखाया और तुरंत जवाब देने के लिए उन पर दबाव बनाने की कोशिश की, पर गांधी चुपचाप वहीं खड़े रहे। वे चाहते तो अपने पड़ोस के सहपाठी की कॉपी देखकर नकल कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। सबने सही उच्चारण किया और पूछे गए प्रश्नों का सही जवाब दिया। पर गांधी ऐसा करने में असफल रहे। उनके मुताबिक, हम जितना जानते हैं, उतना ही जवाब देना चाहिए। नकल कर सही जवाब देने से अच्छा है, जो खुद से सीखा है, वही जवाब दो।

    भारतीय संविधान के कुछ रोच्क तथ्य

    -भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ। इसके निर्माण में 2 वर्ष 11 माह 18 दिन का समय लगा।

    -भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है।

    -भारत के संविधान की मूल प्रति हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में हाथ से लिखी गई थी।

    -संविधान की मूल प्रति हीलियम के एक विशेष केस में सहेज कर संसद भवन की लाइब्रेरी में रखी है।

    -सर्वप्रथम सन् 1895 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने यह मांग की थी कि अंग्रेजों के अधीनस्थ भारतवर्ष का संविधान स्वयं भारतीयों द्वारा ही बनाया जाना चाहिए, जिसे ब्रिटिश सरकार ने ठुकरा दिया था।

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