क्या टैलेंट को सिर्फ अंकों के आधार पर आंकना चाहिए?
आंध्र प्रदेश के निजामाबाद जिले की रहने वाली हैं 13 साल की पूर्णा मलवथ। वह दुनिया की सबसे कम उम्र की एवरेस्ट फतह करने वाली लड़की हैं। एक आदिवासी परिवार में जन्मी पूर्णा के माता-पिता खेतिहर मजदूर हैं। बुनियादी सुविधाएं भी उनके गांव में नहीं है। वे अभावों में पली-ब
आंध्र प्रदेश के निजामाबाद जिले की रहने वाली हैं 13 साल की पूर्णा मलवथ। वह दुनिया की सबसे कम उम्र की एवरेस्ट फतह करने वाली लड़की हैं। एक आदिवासी परिवार में जन्मी पूर्णा के माता-पिता खेतिहर मजदूर हैं। बुनियादी सुविधाएं भी उनके गांव में नहीं है। वे अभावों में पली-बढ़ी हैं। इसके बावजूद वे असाधारण हैं। उनकी लगन और मजबूत इच्छाशक्ति ही है कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद विश्व रिकॉर्ड कायम कर सकीं। दोस्तो, पूर्णा की कहानी बताने का अर्थ यह नहीं है कि कामयाबी के लिए अभावों में पलना जरूरी है और जिन्होंने अच्छे अंक हासिल किए, वे आगे कामयाब नहीं होते। बस हमें यह समझना है कि यदि किसी भी काम को हौसले से अंजाम दिया जाए और परीक्षा में उम्मीदों के अनुरूप अंक न पाने के बावजूद आगे की राह पर चलते जाएं, तो मंजिल जरूर मिलती है। बोर्ड परीक्षा में बेस्ट स्कोर, ए-ग्रेड के कॉलेज, अच्छा करियर, अच्छी जिंदगी..! यदि आप भी ऐसा सोचते हैं, तो थोड़ा और मंथन करना होगा।
खुद पर यकीन
पूर्णा ने कभी अपनी तरफ से पर्वतारोहण का प्रयास नहीं किया, जबकि एवरेस्ट को फतह करने के लिए दुनिया के बड़े-बड़े देशों के अनुभवी पर्वतारोही महीनों तैयारी करते हैं। नेपाल में जिस दिन एवरेस्ट की चढ़ाई करते समय 16 शेरपाओं की मौत हो गई, उसके अगले ही दिन पूर्णा को अपने साथियों के साथ चीन की तरफ से आगे बढ़ना था। पर वे इस बुरी खबर से बिल्कुल भी विचलित नहीं हुईं। उन्होंने साफ कहा कि डरना उन्होंने सीखा ही नहीं। वे किसी से कम नहीं और हारना तो जानती ही नहीं।
आगे की राह
मेदांता हॉस्पिटल, गुड़गांव के मनोचिकित्सक विपुल रस्तोगी के मुताबिक, यही वक्त है जब हमें खुद को जानने का अवसर मिलता है। वे कहते हैं, 'केवल अच्छे अंकों से भविष्य की नींव तय नहीं होती, यह जानना जरूरी है।' निश्चित तौर पर अच्छे अंक हमें अच्छा कॉलेज दिलाने में मददगार होते हैं। आत्मविश्वास और बढ़ता है, पर सिर्फ अच्छे अंक आना या अच्छे कॉलेज में एडमिशन मिल जाना टैलेंट मापने का मापदंड नहीं हो सकता। रामीश इंटरनेशल स्कूल, ग्रेटर नोएडा की प्रिंसिपल शिखा सिंह के मुताबिक, उन लोगों को अनदेखा नहीं किया जा सकता, जिन्होंने डिग्री हासिल किए बिना ही अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।
डिग्री बड़ी या लाइफ
जो लोग अच्छी शिक्षा या डिग्री हासिल नहीं कर सके, उनकी फेहरिस्त काफी लंबी है। जिन्होंने कॉलेज या स्कूल की कैंपस लाइफ से ज्यादा अपनी जिंदगी के अनुभवों से सीखा, सही निर्णय लिया और मिसाल बन गए। जैसे, सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने सिर्फ कुछ महीने ही स्कूल में बिताए। वे बस अपने हुनर पर कायम रहीं, खुद को तराशा और आगे बढ़ीं। बाबा रामदेव जब वेद, वेदांत और दर्शन पर बोलते हैं, तो ऐसा लगता है कि जैसे धर्म, अध्यात्म और दर्शन में उन्होंने पीएचडी कर रखी है। पर योग गुरु बाबा रामदेव ने भी स्कूली दिनों में ही पढ़ाई छोड़ दी थी। अगर हेनरी फोर्ड-पांच बिजनेस में फेल होने के बावजूद निराश होकर बैठ जाते या एडिसन सैकड़ों असफल प्रयोग के बाद भी उम्मीद छोड़ देते और आइंस्टीन भी खुद को दिमागी रूप से कमजोर मान के बैठ जाते तो क्या होता? निश्चित रूप से हम ऐसे बहुत सारी महान प्रतिभाओं और उनके आविष्कारों से अंजान रह जाते। यहां शिखा सिंह कहती हैं-'हमारे स्कूल का एक स्टूडेंट महज चालीस प्रतिशत अंक लाया था। हम निराश थे। उससे उम्मीद नहीं थी, लेकिन उसने लेदर डिजाइनिंग कोर्स किया और आज लाखों के पैकेज पर काम कर रहा है।'
अंक बड़े या हम
दोस्तो, अच्छा कॉलेज, उसका विशाल, आधुनिक सुविधाओं से लैस कैंपस हमें लाइफ में आगे बढ़ने की सीख नहीं दे सकता। इसलिए यदि किसी कॉलेज में एडमिशन नहीं मिलता, तो विचलित होने के बजाय पॉजिटिव रह कर आगे बढ़ें। आंध्र प्रदेश के कार्तिक नारलाशे˜ी को इंटरनेट उद्यमी के रूप में जाना जाता है। वह न्यूयॉर्क में सोशलब्लड कंपनी चलाते हैं। गुंटूर, आंध्र प्रदेश के कार्तिक के पास कोई डिग्री नहीं है। वह स्कूल में सबसे कमजोर छात्र थे। जीवन में सफलता इस बात से ही नहीं तय होती कि आपने 10वीं या 12वीं में अच्छे अंक लाए हैं। इस बार 12वीं की परीक्षा देने वाले अनमोल कहते हैं, 'मैंने कभी अंकों को ध्यान में रखकर पढ़ाई नहीं की। बस इतना समझा कि अंकों से बड़े होते हैं हम, हमारा टैलेंट, जिसकी बदौलत हम लाइफ का लेसन सीखते हैं और आगे बढ़ते हैं। परीक्षा में आए चंद अंक हमारे टैलेंट का मूल्यांकन कैसे कर सकते हैं?'
(सीमा झा)