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    गणतंत्र के स्तंभ

    By Edited By:
    Updated: Wed, 25 Jan 2012 12:00 AM (IST)

    भारत कई8200;मायनों में बाकी दुनिया से अलग है। यह वह जमीन है, जहां सभ्यता ने सबसे पहले अपने कदम रखे। परंपराएं सबसे पहले पनपीं, सत्य अ¨हसा के अमृत का श्चोत भी सर्वप्रथम यहीं से फूटा। लिहाजा इस जमीन को दुनिया का टुकड़ा नहीं बल्कि सांस्कृ तिक उपहार कहा जाना चाहिए - मार्क ट्वेन

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    हर देश के लिए आजादी का बडा मोल होता है। वह आजादी जो देश के लोगों को अपनी शर्तो पर जीने की सहूलियतें देती है, उन्हें वह करने का मौका देती है जो वह करना चाहते हैं। लेकिन यह आजादी बेमतलब है, यदि राष्ट्र जीवन के संचालन हेतु आवश्यक नियम नजरंदाज कर दिया जाए। मार्क ट्वेन जिस भारत की खूबसूरती को अपने शब्दों में बयां करते हैं उस खूबसूरती का भी कोई अर्थ नहीं जब तक देश को नियमों की नियामत न मिले। गणतंत्र एक ऐसी ही नियामत है, जिसे पाकर 26 जनवरी, 1950 को सही मायने में भारत, रिपब्लिक भारत बना। वी द पीपुल ऑफ इंडिया से शुरू हुई संविधान की प्रस्तावना महज कुछ शब्द भर नहीं बल्कि देश के लोगों में एकता का भाव भरता मंत्र है, जो 6 दशकों से हम पर जादुईअसर डाल रहा है। संविधान के लक्ष्य व रूपरेखा को बयां करने वाली प्रस्तावना की संविधान में क्या भूमिका है, इसमें शामिल शब्दों से ही समझा जा सकता है। इसमें भारत को सोशलिस्ट, डेमोक्रेटिक, सेकुलर, रिपब्लिक बताया गया है। कहने का आशय यह है कि भारतीय जनता की इच्छा को ही सर्वोपरि माना गया है और उनके लिए संविधान बनाया गया है, जिसमें उनके अधिकार व क‌र्त्तव्य सुरक्षित हैं।

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    देश के संवैधानिक तंत्र का मंत्र

    संविधान देश के लोगों की ऊर्जादायिनी शक्ति होता है। यदि उसकी इस ऊर्जा का सकारात्मक उपयोग हो तो राष्ट्रजीवन के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं..

    मैक्सिको की एक जानी मानी चित्रकार हुईहैं फ्रीडा काहलो। जिनके बारे में कहा जाता हैकि उन्हें उनकेकाम से अलग करके देखना मुश्किल है, क्योंकि उनकी पेंटिंग ही उनकी बायोग्राफी है व उनके जीवन का सच भी। राष्ट्र और उसके संविधान का रिश्ता भी कुछ ऐसा ही है, जिन्हें एक दूसरे से अलग करके देखा ही नहीं जा सक ता। कहा भी जाता है कि देश के संविधान में उसकी आत्मा बसती है, बगैर संविधान के देश महज खोखला शरीर है। भारत के शरीर में भी संविधान प्राणसंचारक वायु की तरह है। भारतीय नीति-निर्माताओं ने इसकी अहमियत पहले ही समझ ली थी। शायद इसीलिए संविधान में कुछ ऐसे प्रावधान किए गए, जो देश की स्वतंत्रता, सम्प्रभुता, इंसानी अधिकारों को सुनिश्चित करते हैं और सही अर्थो में राज्य को रिपब्लिक बनाते हैं..

    मौलिक अधिकार - ये अधिकार, भारतीय लोकतंत्र में निवास करने वाले लोगों के विकास, सुखमय जीवन की गारंटी देते हैं। इसके अंर्तगत, संविधान में अनुच्छेद 14 से लेकर 32 तक नागरिक के मौलिक अधिकार वर्णित हैं, जिसे पाना हर नागरिक का कानूनी अधिकार व इन्हें सुनिश्चत करना सरकार की बाध्यता है। इन अनुच्छेदों में समानता, स्वतंत्रता, शिक्षा, शोषण से रक्षा, अभिव्यक्ति जैसे कईहक लोगों को दिए गए हैं। नागरिकों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने इन अधिकारों का इस्तेमाल राष्ट्रोत्थान में करें और सही अर्थो में भारत को रिपब्लिक बनाएं।

    संसदीय शासन व्यवस्था - देश के संचालन के लिए संविधान में संसदीय शासन (अनुच्छेद 79) की व्यवस्था की गई है, जिसमें देश के लोगों द्वारा निर्वाचित लोग संसद में उनका प्रतिनिधित्व करेंगे। ये राष्ट्रीय सम्प्रभुता के सबसे बडे श्चोत होते हैं। यहां लिए गए निर्णयों में एक तरह से जनता की भागीदारी होती है। इसके उलट ब्रिटिश दासता काल में आम जनों की वास्तविक नुमाइंदगी न के बराबर थी। नीति-निर्देशक तत्व- संविधान का निर्माण करते वक्त संविधान सभा के सामने देश को मानवीय, सामाजिक रूप से प्रबुद्ध राष्ट्र का लक्ष्य सामने था। यही कारण है कि इन्हें संविधान के भाग 4 में खासी अहमियत दी गई है। एक कल्याणकारी राज्य के निर्माण में इन तत्वों की खास भूमिका होती है। काम का अधिकार, कानूनी सहायता, आय की समानता, गरीबी निवारण, सामाजिक सुरक्षा, कृषि उद्योग, संस्कृ ति का विकास जैसी बहुत सी चीजें नीति निर्देशक तत्वों में शामिल हैं।

    मौलिक क‌र्त्तव्य - एक सम्प्रभु लोकतंत्र मे यदि राज्य नागरिकों ंको अधिकार देता है, तो वह इन्हीं नागरिको से कुछ अपेक्षा भी करता है। ये अपेक्षाएं ही मौलिक क‌र्त्तव्य में आती हैं। राष्ट्रीय संस्कृति, विरासत का विकास, वैज्ञानिक उन्नति,राष्ट्रीय सुरक्षा, अखंडता में सहयोग, राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान आदि मौलिक क‌र्त्तव्यों की सूची में शामिल हैं। राष्ट्र के समग्र विकास के लिए जरूरी इन क‌र्त्तव्यों को 1976 में 42वें संविधान संशोधन के तहत अंगीकृत किया गया।

    न्यायिक पुनर्वलोकन - भारतीय न्यायव्यवस्था देश में अपने नागरिकों के हितों को सुरक्षित व संरक्षित करने का काम करती है। इसके अंतर्गत न्यायिक पुनर्वलोकन की शक्ति सर्वाधिक महत्वपूर्णहै। इसमें अनुच्छेद 137 के तहत सर्वोच्च न्यायालय के पास संसद व विधानमंडल द्वारा पारित किसी अधिनियम व कार्यपालिका द्वारा दिए गए किसी आदेश की वैधानिकता के पुनर्वलोकन का अधिकार है। इस तरह राष्ट्रीय सम्प्रभुता का प्रतीक सर्वोच्च न्यायालय, संघात्मक ढंाचे की सुरक्षा के साथ नागरिकों को न्यायसंगत जीवन का भरोसा देता है। इस तरह की व्यवस्था में जनता का हित सर्वोपरि है और इसी के इर्द-गिर्द सभी चीजें घूमती हैं।

    गणतंत्र दिवस: संकल्पों का दिवस

    संकल्प कोईभी हो, उनका निर्वहन जरूरी होता है। संकल्प यदि राष्ट्रनिर्माण का हो तो बात और भी खास हो जाती है। यहां हम ऐसे ही कुछ संकल्पों की चर्चाकरेंगे..

    गणतंत्र दिवस का मतलब उस खास तारीख भर से नहीं है कि इस दिन हम पूर्णगणतंत्र बने थे बल्कि यह तो शुरूआत थी देश के परों को परवाज देने की। सदियों तक विदेशी दासता के चंगुल में रहने के बाद हमने एक महत्वपूर्ण चीज सीखी कि यदि अपनी अंखडता को बरकार रखना हैतो खुद को एक रखना होगा। हमारा संविधान इसी कडी में एक शक्तिशाली कदम था, जिसके तमाम प्रावधान देश के रूप में तो हमारी अखंडता सुनिश्चित करते ही हैं, साथ ही इतिहास में की गईगलतियों को न दोहराने का वादा भी लेते हैं। लिहाजा यह वक्त सेलीबे्रशन का नहीं बल्कि ऐसे संकल्प लेने का है, जो देश को नईऊर्जा से लबरेज कर दे।

    समझें अपने दायित्व - अपने हर सवाल के लिए सरकार की ओर ताकना, उसकी जवाबदेही पर प्रश्न खडा करना बहुत हुआ। अब तक हम यही तो करते आ रहे थे। इसका कितना फायदा हमें मिला, कहा नहीं जा सकता। लेकिन गणतंत्र 2012 हमें एक नई शुरूआत करने का अवसर जरूर देता है। अवसर-अपनी जिम्मेदारी समझने का, अवसर- राष्ट्रनिर्माण में अपनी सीधी भूमिका तलाशने का। पर यह सब तभी होगा, जब युवा, भेडचाल में शामिल होने के बजाय देश के प्रति ईमानदार बनेंगे। अनुशासन, जरूरी हैं हदें- कहते हैं युवा जोश अक्सर अनुशासन की हदें नहीं मानता, लेकिन हाल ही में अन्ना के आंदोलन ने देश की इस धारणा को उलट दिया है। इस आंदोलन में युवाओं की गंभीर, अहिसंक, अनुशासित भागीदारी ने न केवल इस आंदोलन को सफल बनाया बल्कि बाकी देश को नई सीखों से भी रूबरू कराया। ऐसे में माना जा रहा है कि यदि युवा अपने जोशीली रंगों में अनुशासन का रूधिर बहने दें तो भारतीय गणतंत्र नईऊंचाइयां छू सकेगा।

    नए विचारों की भूख - कॅरियर हो या आम जीवन कामयाबी केवल और केवल तभी मिलेगी जब आप नए विचारों से लैस होंगे। आज नए विचारों की यही भूख युवाओं को कामयाबी का मंत्र दे रही है। यदि आप भी नए विचारों से प्रेरित हो दूसरों से आगे मुकाम बनाने का संकल्प लेना चाहते हैं, तो गणतंत्र दिवस से बेहतर समय कोईनहीं।

    गांवों की ओर देखो -दो-ढाईदशक पहले युवाओं के लिए कामयाबी का रास्ता शहर से होकर जाता था। लेकिन आज गांवों की चौडी होती पगडंडियों के बीच अवसर यहां भी हैं। ऐसे में अगर युवा अपने साथ-साथ देश की दो तिहाई आबादी का भी भला करने की सोच लें, तो असंतुलित विकास पुराने जमाने की बात हो जाएगी।

    अपना रास्ता, अपनी मंजिल-आज स्वरोजगार मुख्य धारा में जगह नहीं बना पाया है। आज भी युवाओं की बडी तादाद सरकारी, प्राइवेटसेक्टर में ही ख्वाब खोज रही है। वे यदि इस गणतंत्र से अपनी ऊर्जा खुद की राह तैयार करने में लगाए तो मुमकिन हैकि अगले गणतंत्र तक नौकरी की बंदिशों से परे अपने बॉस वे खुद बन बैठें।

    रिपब्लिक ऑफ इंडिया में व्यापक अवसर

    देश की धमनियों में जीवन बनकर दौडती परंपराओं को न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका व प्रेस जैसे स्तंभ मजबूती दे रहे हैं। आज ये चीजें देश के विकास में जितना अहम हैं, उतना ही महत्वपूर्णउन युवाओं के लिए भी हैं, जो लोकतंत्र के इन स्तंभों में कॅरियर की मजबूती ढूंढ रहे हैं। ऐसे में यदि आप भी देश निर्माण की परंपराओं में हाथ बंटाना चाहते हैं तो ये क्षेत्रसुखद संभावनाओं के श्चोत बन सकते हैं।

    कॅरियर का जस्टीफाइंग पाथ

    न्यायपालिका देश में व्यवस्थाओं के न्यायसंगत संचालन की गांरटी है। बात चाहें शोषण से रक्षा की हो या व्यवस्था के खिलाफ अंसतोष जाहिर करने की, न्यायालय का दरवाजा हर आम व खास के लिए खुला है। माना भी जाता है कि न्यायपालिका एक आश्वासन है व सरकार व प्रशासन को मनमानी से रोकने का एक महत्वपूर्णउपकरण भी। इन सबके बीच आप गणतांत्रिक राष्ट्र के सबसे बडे प्रतीक स्वतंत्र न्यायपालिका को अपना कॅरियर सिंबल बनाना चाहते हैं तो यह सही राह है। यहां निचले स्तर से लेकर शीर्षतक कॅरियर की अनेक संभावनाएं बिखरी हुई हैं। जरूरत है तो सटीक एप्लीकेशन की। आज सुप्रीम कोर्ट के अलावा देश के तकरीबन हर राज्य में हाईकोर्ट की स्थापना की गई है। इसके अंतर्गत जिला व तहसील स्तर पर कई अदालतें भी आती हैं। यहां आप बतौर वकील, न्यायालय कर्मचारी व न्यायाधीश काम कर सकते हैं। इस क्षेत्र में हर स्तर पर इंट्री के अलग-अलग सोपान होते हैं। अपनी क्षमताओं के हिसाब से इनमें से किसी का भी चयन करके भारतीय गणतंत्र को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।

    बी ए गुड एग्जीक्यूटर

    शीर्ष पर पहुंचने में हमेशा ही योजनाबद्ध शुारुआत की जरूरत होती है। वह चाहे एवरेस्ट की शुारुआत हो या विकास की।

    -अब्दुल कलाम।

    आज भारतीय परिप्रेक्ष्य में पूर्व राष्ट्रपति कलाम के ये विचार देश में योजनाबद्ध विकास के महत्व को दर्शाते हैं । कार्यपालिका को देश में इसी प्लांड डेवलेपमेंट की कुंजी माना जाता है। इसे एग्जीक्यूटिव-यानि शीर्ष स्तर पर लिए गए निर्णयों को एग्जीक्यूट करने वाला विभाग भी कहते हैं। प्रधानमंत्री, कैबिनेट के साथ नीचे से लेकर शीर्ष प्रशासनिक पद तक इसी में आते हैं। यह जमीनी स्तर पर होने वाले बदलावों क ी जमीन तो तैयार करता ही है, इसके साथ ही दुनिया में देश का अलग चेहरा भी प्रस्तुत करता है। विदेशी निवेश, आधारभूत ढंाचा हर जगह इसकी व्यापक भूमिका होती है। खुद विशेषज्ञ मानते हैं कि देश की तेज होती तरक्की के बीच बेहतर प्रशासनिक क्षमताओं से समझौता नहीं किया जा सकता। ऐसे में वे युवा जो आने वाले समय में देश में होने जा रहे क्रांतिकारी बदलावों के गवाह बनना चाहते हैं, उनके लिए यह क्षेत्र संभावनाओं से भरा है। यहां आप सिविल सेवाओं से लेकर केंद्रीय सेवाओं, पुलिस सेवा, विदेश सेवा, संचार सेवाओं आदि में प्रवेश ले सकते हैं।

    संवैधानिक तंत्र का अंग

    यह ठीक हैकि आज देश में विधायिका व उसके अंर्तगत आने वाले लोगों की छवि बहुत अच्छी नहीं है,लेकिन सच्चाई भी यही है कि देश की प्रगति इस इंस्टीट्यूशन के बगैर संभव नहीं। विधायिका यानि संसद, राज्य विधानमंडल देश में शीर्ष निर्णयकारी शक्तियां हैं। माना जाता हैकि देश के गणतंत्र की प्रमुख निशानी, विधायिका यदि अपनी जिम्मेदारियों का भरपूर निर्वहन करे तो देश की चौमुखी प्रगति तय है। लेकिन यह प्रगति परंपरागत राजनैतिक परिपाटी से नहीं आने वाली। इसके लिए ताजे युवा सोच की दरकार होगी। यही कारण हैकि आज युवाओं के राजनीति में प्रवेश की चर्चा जोरों पर है। जिसका सीधा मतलब हैकि युवा अपने साथ-साथ अपने मौलिक विचार व सुचिता भी यहां लाएं और देश की राजनीति के चेहरे पर आई म्लानि को कम करें। आज सूचना क्रांति क ा दौर है, जहां बडी संख्या में युवा अपनी भूमिका तलाश रहे हैं। राजनीति भी इससे अपवाद नहीं हैं। मेन स्ट्रीम पॉलिटिक्स की बात न करें तो भी आज युवाओं के सामने ऑप्शन्स की कमी नहीं है। युवा चाहें तो राजनीतिक पाíटयों के लिए थिंक टैंक, क म्यूनिकेटर के रूप में कार्य कर सकते हैं। यही नहीं अब तो इलेक्शन के दौरान हाईटेक गैजेट से लैस उम्मीदवार उन एजेंसियों की मदद ले रहे हैं, जो उनके भाषणों, वक्तव्यों, पहनावे जैसे हर छोटी-बडी चीज का ख्याल रखते हैं।

    मीडिया में बेहतरी की राह

    अपरोक्ष रूप से मीडिया को लोकतंत्र का चौथा आधार माना जाता है। संविधानप्रदत्त अधिकारों के लिहाज से लें तो भी अभिव्यक्ति का अधिकार को यहां नई धार मिलती नजर आएगी। सरकार का कोई भी अंग यदि अपने काम में निष्क्रयता बरतता है, जन इच्छा के विरूद्ध कार्य करता है या फिर संविधान के विरूद्ध आचरण करता है तो आप इसकी मदद से तंत्र के खिलाफ प्रश्न उठा सकते हैं। यही कारण है कि इन दिनों यह क्षेत्र कॅरियर की पंसद बन रहा है। यदि आप भी राष्ट्रीय मूल्यों व संविधान को ताकतवर बनाने के पक्षधर हैं तो यहांलॉन्ग टर्म विकल्पों की कमी नहीं है। आजकल काफी संख्या में युवा इस क्षेत्र की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इस क्षेत्र में युवाओं के पास इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया के साथ ही न्यूज एजेंसी में काफी विकल्प हैं, जहां अपनी योग्यता और रुचि के अनुरूप पसंदीदा कॅरियर का चयन कर सकते हैं।

    जेआरसी टीम