इन्होंने जिद ठानी तो 53 गांवों से गायब हो गईं डायन
डायन जैसे अंधविश्वास के खिलाफ तुराम गत 30 वर्षों से लोगों को जागरूक कर रहे हैं।
ब्रजेश मिश्र, चाईबासा (पश्चिम सिंहभूम)। डायन के नाम पर महिलाओं की हत्या के लिए झारखंड बदनाम है। लेकिन इसी सूबे के पश्चिमी सिंहभूम जिले के नौ प्रखंडों के 53 गांव ऐसे हैं, जहां गत तीन वर्षों से इस आरोप में एक छोटी-सी घटना भी नहीं हुई है।
यह एक छोटे से सरकारी क्लर्क की सभा का कमाल है। नाम है- तुराम बानरा। जलपथ प्रमंडल में लिपिक के पद पर कार्यरत तुराम बानरा नौकरी करने के साथ डायन जैसे अंधविश्वास के खिलाफ गत 30 वर्षों से जागरूकता मुहिम चला रहे हैं।
इस तरह शुरू हुआ अभियान
पश्चिमी सिंहभूम के कुर्सी गांव निवासी तुराम के पिता वैद्य थे। उनकी मौत के बाद तुराम इस पेशे से जुड़ गए। पहले स्नातक फिर एलएलबी की पढ़ाई की। इसी बीच क्लर्क की नौकरी मिल गई। तुराम ने तय किया कि वैद्य भी बनें रहेंगे। वर्ष 1987 में कुर्सी गांव में डायन के नाम पर एक ही परिवार के तीन लोगों की हत्या कर दी। जब तुराम ने पड़ताल की तो पता चला कि एक ओझा के कहने पर बीमारी से मरने वालों के परिजनों ने इस जघन्य अपराध को अंजाम दिया। इस घटना के बाद तुराम अंधविश्वास के खिलाफ अभियान पर निकल पड़े।
गांवों में बंटती है सभा की सीडी
अपने अभियान के तहत तुराम गांवों में सभाएं कर डायन और ओझा की हकीकत समझाने लगे। यह किस तरह अंधविश्वास है। बीमारियां किस तरह मौत की वजह बनती हैं। कैसे इससे बचा जा सकता है। विज्ञान क्या कहता है आदि बातें समझाने का नतीजा हुआ कि गांव वाले धीरे-धीरे जागरूक होने लगे। उन्होंने जीवन जीने के वैज्ञानिक तरीके बताए। खाना कैसे बनाएं।
खाने से पहले हाथ धोएं। अशुद्ध जल का सेवन न करें। बासी भोजन करने से बचें। नशा व विषाक्त मांस का सेवन न करें। असर यह हुआ कि घटनाओं की रफ्तार मंद पडऩे लगी। फिर क्या था हाटगम्हरिया प्रखंड के बलंडिया गांव के मुखिया बेहद प्रभावित हुए। उन्होंने तुराम की सभाओं की सीडी बनवाकर गांवों में बांटना शुरू कर दिया। देखते देखते अभियान परवाज भरने लगा। अब भी गांवों में उनकी सभा की सीडी लोग चाव से सुनते हैं।
इन गांवों में नहीं हुईं हत्याएं
सदर प्रखंड : कुर्सी, लादुराबासा, जयपुर, कुंकसी उरांव टोला, पुरनियां, बरकुंडिया, खूंटा, पताह गुईरा, बड़ा गुईरा, चेतन गंजड़ा, लातर गंजड़ा, बोरदोर, ईचाकुटी, लोरगुंटू, रंगरूई, बोड़दोर, नरसंडा, शंकोसाई, घाघरी, माहुलसाई, दुम्बीसाई, सिकूरसाई, पुराना चाईबासा।
खूंटपानी प्रखंड : तलाईसुडी, काबरागुटू, बरकेला, रोवऊली, करकट्टा, बडयोगहातु।
तांतनगर प्रखंड : तुईबाना, कुलाबुरू, तांतनगर, रोलाडीह।मंझारी प्रखंड : मंझारी, बड़ा तोरलो।मझगांव प्रखंड : बिद्दरी।
हाटगम्हरिया प्रखंड : जयपुर, कुस्मिता, जिकीलाता, कीताहातु, बड़ा बलंडिया।
टोंटो प्रखंड : सेरेंगसिया, काईनु, रामपुसी, रंजाअंका।
झींकपानी प्रखंड : गुड़ा, नयागांव, एसीसी कॉलोनी, झींकपानी।
नोवामुंडी प्रखंड : बड़ा पासेया, बाबडिय़ा, कातीघिरी।
जानिए, किसने; क्या-कहा
डायन जैसे अंधविश्वास की जड़ बीमारी है। सुदूर गांवों में स्वास्थ्य सेवाओं की घोर कमी है। गरीब लोग ओझा-गुनी के चक्कर में फंस जाते हैं। मैंने मिशन बना कर लोगों को सिर्फ जागरूक किया है। तीस साल की मेहनत अब जाकर सफल लगती है जब यहां डायन बता कर किसी को प्रताडि़त नहीं किया जाता। अच्छे स्वास्थ के प्रति लोग जागरूक हुए हैं।
- तुराम बानरा, सामाजिक कार्यकर्ता
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हां, यह सही है कि तुराम बानरा द्वारा किए गए प्रयास के बाद हमारे गांव के अलावा आसपास के कई क्षेत्रों में डायन के नाम पर हत्याएं नहीं हुईं। तुराम ने समस्या की जड़ पर वार किया है।
- महेन्द्र लागुरी, बड़ा बलंडिया गांव
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