1300 एकड़ जमीन के कारण बना नक्सली, जातीय प्रताड़ना पर छोड़ा संगठन
हमलोगों को गांव बारूहातू स्थित घर से भागने को मजबूर होना पड़ा। फिर गांव के ही गिरधारी सिंह मानकी ने शरण दी।

रांची, राज्य ब्यूरो। कुख्यात कुंदन पाहन उर्फ विकास उर्फ आशीष ने बताया कि खूंटी के अड़की थाना क्षेत्र में उसके और गोतिया की कुल 2600 एकड़ सम्मलित जमीन थी। 1300 एकड़ जमीन उसके परिवार के हिस्से थी। लेकिन कमजोर होने के कारण गोतिया लोगों ने पिता नारायण पाहन, फूफा लेदो मुंडा और उनके समर्थक ग्रामीण मुंडा घासीराम और बोलो मुंडा के साथ मारपीट की। बाद में बोलो मुंडा की मौत हो गई। हमलोगों को गांव बारूहातू स्थित घर से भागने को मजबूर होना पड़ा। फिर गांव के ही गिरधारी सिंह मानकी ने शरण दी। दुर्गापूजा के समय सभी भाई घूमने के लिए बुंडू गए थे। इसी दौरान गोतिया बैजनाथ पाहन ने मेरे बड़े भाई डिब्बा पाहन पर हमला कर दिया था। जमीन जाने और प्रताडऩा को लेकर वह और पूरा परिवार परेशान था।
वर्ष 1998-99 के आसपास भाकपा माओवादी मिसिर बेसरा के समझाने पर बड़ा भाई डिब्बा पाहन और वह मुखलाल दस्ते में शामिल हो गए। एक साल तक संगठन का झोला ढोया फिर उसे 2000 में दस्ता सदस्य बनाया गया। बोकारो के झुमरा में उसे हथियार चलाने और गुरिल्ला वार की ट्रेनिंग दी गई। फिर वह रांची के बुंडू क्षेत्र में रहने लगा।
पहली बार टिंबर मालिक से डेढ़ लाख लेवी ली
कुंदन ने कहा कि उसने दो अन्य दस्ता साथियों के साथ मिलकर एक लकड़ी के ट्रक को रोक लिया। फिर टिंबर मालिक से डेढ़ लाख रुपये लेवी वसूली और ट्रक को छोड़ा। पैसा मिसर बेसरा को सौंप दिया। तब बेसरा ने उसे और दो साथियों को दो-दो सेट नई वर्दी बनवा दी।
जमींदार की बंदूक ले लो, फिर पुलिस के हथियार लूटो
मिसिर बेसरा से हथियार की डिमांड करने पर कुंदन को कहा गया कि वह जमींदार की बंदूक ले ले और उसके दम पर पुलिस के हथियार लूटे। तब बारूहातू के महेंद्र सिंह की बंदूक ले ली। तीन माह बाद बारूहातू पहाड़ पर बैठक हुई। इसमें कुंदन के काम से खुश होकर उसे बुंडू एरिया का जिम्मा दे दिया गया। फिर इसे सब जोनल कमेटी का सदस्य बना दिया गया। फिर 2001 में इसे चाईबासा के पोड़ाहाट क्षेत्र भेज दिया गया।
2006 में बना रिजनल कमेटी सचिव
कुंदन ने कहा कि 21 सितंबर 2004 को पीडब्ल्यूजी और एमसीसी का सारंडा जंगल के बलिवा में विलय हुआ। इसके बाद दोनों पार्टी के नेताओं ने मिलकर भाकपा माओवादी संगठन बनाया। उसे 2006 में रिजनल कमेटी का सचिव बनाया गया।
बड़े नेता दुर्व्यवहार करते थे
उसने बताया कि संगठन के बड़े नेता भुवन मांझी, अनल दा, राजेश अपने नीचे के कामरेडों के साथ दुर्व्यवहार करते थे। खासकर आदिवासी कामरेडों को गैर आदिवासी नेताओं द्वारा प्रताडि़त किया जाता था। गाली-गलौज के साथ पैसा हड़पने का आरोप लगाते थे। संगठन के अन्य बड़े नेताओं से शिकायत के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। अंतत: उसने संगठन छोडऩे का फैसला लिया।
कई बड़े नक्सलियों के संपर्क में रहा
दुर्दांत ने बताया कि वह गणपति जैसे बड़े लीडर से बिहार के जमुई में संगठन के नौवीं कांग्रेस में मिला था। किशन दा से भी उसने कई गुर सीखे थे।
अरविंद जी हो गए बूढ़े
एक सवाल के जवाब में कहा कि संगठन के पोलित ब्यूरो सदस्य अरविंद जी बूढ़े हो गए हैं। पहले की तुलना में कई बड़े नक्सलियों के सरेंडर और गिरफ्तारी के बाद से संगठन काफी कमजोर हुआ है। पुलिस और सुरक्षाबलों के लोग हावी हो गए हैं।

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