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    झारखंड में पार्टी को जिंदा करने के प्रयास में जदयू

    By Sachin MishraEdited By:
    Updated: Sun, 21 May 2017 09:42 AM (IST)

    जदयू का झारखंड में जनाधार लगातार गिरा है। भाजपा के साथ गठबंधन टूटने के बाद तो यहां पार्टी कभी उठी ही नहीं।

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    झारखंड में पार्टी को जिंदा करने के प्रयास में जदयू

    राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड गठन के बाद से लगातार जनाधार खोनेवाली जदयू पार्टी एक बार फिर संगठन को जिंदा करने के प्रयास में है। बिहार के मुख्यमंत्री सह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार को यहां संभावनाएं दिख रही हैं, इसलिए उन्होंने यहां संगठन को मजबूत बनाने के लिए प्रदेश के नेताओं को टास्क सौंपा है। उन्होंने आगे प्रदेश में पार्टी स्तर के बड़े कार्यक्रमों के भी संकेत दिए हैं।

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    इस कड़ी में उन्होंने सबसे पहले जहां प्रदेश प्रभारी को बदल दिया, वहीं पहली बार उनके सहयोग के लिए उप प्रभारी की व्यवस्था की। पिछले दिनों पूर्व सांसद सालखन मुर्मू के न्योते पर सरकार गिराओ रैली में भाग लेने पहुंचे नीतीश ने नए प्रदेश प्रभारी रामसेवक सिंह, उप प्रभारी अरुण सिंह तथा प्रदेश अध्यक्ष जलेश्वर महतो को संगठन मजबूत बनाने के लिए पार्टी में अनुशासन कायम करने तथा शुरू में कम से कम प्रखंड स्तर पर पार्टी की उपस्थिति सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।

    इधर, प्रदेश प्रभारी ने यह अनिवार्य कर दिया है कि प्रत्येक पदाधिकारी माह में दो दिन अनिवार्य रूप से पार्टी कार्यालय में बैठेंगे। हालांकि पार्टी के पास फिलहाल अपना अस्तित्व बचाए रखने तथा पांव पसारने की ही बड़ी चुनौती है क्योंकि पार्टी में ऐसे बड़े नेता नहीं के बराबर दिख रहे हैं जिनका कोई बड़ा जनाधार हो। हाल के वर्षो में कोई नामचीन नेता पार्टी से जुड़ा भी नहीं है। पार्टी अपनी बदौलत 2019 के विधानसभा चुनाव में कुछ हासिल कर सकेगी, इसकी संभावना कम ही है। इसलिए पार्टी के एक बड़े नेता का मानना है कि संगठन मजबूत होगा तभी दूसरे दलों से गठबंधन की भी कोई उम्मीद बनेगी।

    उल्लेखनीय है कि पार्टी का झारखंड में जनाधार लगातार गिरा है। भाजपा के साथ गठबंधन टूटने के बाद तो यहां पार्टी कभी उठी ही नहीं। 2005 के विधानसभा चुनाव में जदयू के पास पांच विधायक थे। यह संख्या 2009 में घटकर दो पर सिमट गई। 2014 में तो पार्टी का खाता भी नहीं खुला।

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