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    झारखंड में विपक्षी एकता को झटका, इन नेताओं ने इसलिए बदले सुर

    By Sachin MishraEdited By:
    Updated: Mon, 24 Jul 2017 04:50 PM (IST)

    झारखंड में भाजपा विरोधी दल एका की बजाय एकला चलो की रणनीति पर चल पड़े हैं।

    झारखंड में विपक्षी एकता को झटका, इन नेताओं ने इसलिए बदले सुर

    प्रदीप सिंह, रांची। झारखंड में जोरशोर से विपक्षी महागठबंधन का राग अलाप रहे भाजपा विरोधी दलों के सुर एकाएक बदल गए हैं। एका की बजाय प्रमुख विपक्षी दल फिलहाल एकला चलो की रणनीति पर चल पड़े हैं। मुख्य विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा ने जहां सभी 81 विधानसभा सीटों पर तैयारी शुरू कर दी है, वहीं कांग्रेस के भी तेवर कुछ कम नहीं हैं।

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    पार्टी का कहना है कि तैयारी सभी सीटों पर होगी। हालांकि राज्य में विधानसभा चुनाव होने में अभी दो साल से ज्यादा का वक्त बाकी है लेकिन भाजपा विरोधी दलों की आपसी प्रतिद्वंद्विता से यह संकेत मिलने लगे हैं कि इनके बीच तालमेल आसान नहीं होगा। बताते चलें कि 2014 में विधानसभा चुनाव के वक्त भी झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के बीच चुनावी तालमेल नहीं हो पाया था। कांग्रेस को इसका खामियाजा उठाना पड़ा।

    पार्टी के विधायकों की संख्या आधी हो गई, जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा की सेहत पर फर्क नहीं पड़ा। हालांकि दोनों दलों ने बाद में यह अवश्य स्वीकार किया कि अगर साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतरते तो दोनों फायदे में रहते और भाजपा आसानी से सरकार बनाने में कामयाब नहीं होती।

    लालू प्रसाद की कवायद हुई फेल:

    विपक्षी गठबंधन के मोर्चे पर राजद प्रमुख लालू प्रसाद की झारखंड में चल रही कवायद भी फेल होती दिख रही है। हालांकि हाल के दिनों में न्यायालय के काम से लगातार रांची में रहने वाले लालू आश्वस्त हैं कि गठबंधन कामयाब होगा। उन्होंने सीबाआई कोर्ट द्वारा बार-बार बुलाए जाने के फायदे भी गिनाए हैं।

    कहा है कि इससे न्यायिक मामले जल्दी सुलझ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर झाविमो सुप्रीमो बाबू लाल मरांडी, नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन समेत कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के साथ कई दौर की वार्ता हो चुकी है। संबंधित दलों में जो भी गला-शिकवा था, दूर हो रहा है और इसके साथ ही झारखंड में गठबंधन की डोर मजबूत हो रही है। यह दीगर है कि झारखंड में लालू प्रसाद के राजद का जनाधार खिसक चुका है। 81 सदस्यों वाली झारखंड विधानसभा में राजद का एक भी सदस्य नहीं है।

    नेतृत्व पर फंसता है पेंच:

    झारखंड में विपक्षी दलों की एकता की राह में सबसे बड़ी बाधा नेतृत्व का सवाल है। झारखंड मुक्ति मोर्चा की दलील है कि सबसे बड़ा विपक्षी दल होने के नाते वह बड़े भाई की भूमिका में होगा। विपक्ष के साझा कुनबे की कमान हेमंत सोरेन अपने पास रखना चाहते हैं। उधर, कांग्रेस समेत बाबूलाल मरांडी की झाविमो इस बिंदु पर छिटक जाते हैं।

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