मदर्स डेः मां एवं मातृभूमि का करें सत्कारः रघुवर दास
सीएम रघुवर दास ने ट्वीट कर मातृ दिवस पर कहा है कि सभी को अपनी मां एवं मातृभूमि का सत्कार करना चाहिए।

रांची, जेएनएन। इंसान की जुबान पर जन्म लेने के बाद पहला शब्द आता है ‘मां’। ममता और वात्सल्य से परिपूर्ण एक ऐसा व्यक्तित्व, जो अपनी संतान की हर इच्छा पूरी करने के लिए रहती है तत्पर। पहले कदम पर जिसका साथ मिलता है और जो उंगली पकड़ चलना सिखाती है। उस मां की बनाई गई बुनियाद पर ही जिंदगी की इमारत खड़ी होती है और हम अपने ख्वाब बुनते हैं। मां के त्याग और समर्पण के प्रति श्रद्धा से हमारा सर झुक जाता है। आज मातृ दिवस पर हम उस मां को सलाम करते हैं।
मां एवं मातृभूमि का करें सत्कार
सीएम रघुवर दास ने ट्वीट कर मातृ दिवस पर कहा है कि सभी को अपनी मां एवं मातृभूमि का सत्कार करना चाहिए। दोनों को ही मेरा सादर प्रणाम है।
जय झारखण्ड,जय हिन्द
'जननि जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसि'
— Raghubar Das (@dasraghubar) May 14, 2017
सभी को अपनी माँ एवं मातृभूमि का सत्कार करना चाहिए।दोनों को ही मेरा सादर प्रणाम है।
जय झारखण्ड,जय हिन्द
मदर्स डे दुनिया भर में मनाया जाता है। भारत में मदर्स डे मई माह के दूसरे रविवार को मनाया जाता है। मदर्स डे का इतिहास लगभग 400 वर्ष पुराना है। प्राचीन ग्रीक और रोमन इतिहास में मदर्स डे को मनाया जाता था। इसके पीछे कई धार्मिक कारण जुड़े थे।
इंग्लैंड : इंग्लैंड में 17वीं शताब्दी में 40 दिनों के उपवास के बाद चौथे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता था। इस दौरान लोग चर्च में प्रार्थना के बाद छोटे बच्चे फूल या उपहार लेकर अपने-अपने घर जाते थे।
बोलिविया: बोलिविया दक्षिणी अमेरिका का एक देश है। यहां 27 मई को मदर्स डे मनाया जाता हैं। यहां मदर्स डे का मतलब कोरोनिल्ला युद्घ को स्मरण करना है। दरअसल 27 मई 1812 को यहां के कोचाबाम्बा शहर में युद्ध हुआ। कई महिलाओं का स्पेनिश सेना द्वारा कत्ल कर दिया गया। ये सभी महिलाएं सैनिक होने के बावजूद मां भी थीं। इसलिए 8 नवंबर 1927 को यहां एक कानून पारित किया गया कि यह दिन मदर्स डे के रूप में मनाया जाएगा।
युगोस्लाविया: युगोस्लाविया में मदर्स डे का चलन 19वीं शताब्दी तक बिल्कुल खत्म हो गया था हालांकि मदर्स डे मनाने की आधुनिक शुरुआत का श्रेय अमेरिकी महिलाओं, जूलिया बार्ड होवे और ऐना जार्विस को जाता है।
वर्जिनिया: वर्जिनिया में मदर्स डे की शुरुआत वेस्ट एना जार्विस के द्वारा समस्त माताओं के लिए खासतौर पर की गई, ताकि उनके पारिवारिक एवं उनके आपसी संबंधों को सम्मान मिले। यह दिवस अब दुनिया के हर कोने में अलग-अलग दिनों में मनाया जाता है।
बिट्रेन: ब्रिटेन में कई प्रचलित परम्पराएं हैं जहां एक विशिष्ट रविवार को मातृत्व और माताओं को सम्मानित किया जाता है, जिसे मदरिंग सन्डे कहा जाता था। 1912 में एना जार्विस ने 'सेकंड सन्डे इन मे' और 'मदर डे' कहावत को ट्रेडमार्क बनाया तथा मदर डे इंटरनेशनल एसोसिएशन गठित किया जाता है।
चीन: चीन में, मातृ दिवस के दिन उपहार के रूप में गुलनार का फूल बच्चे अपनी मां को देते हैं। ये दिन गरीब माताओं की मदद के लिए 1997 में निर्धारित किया गया था। खासतौर पर लोगों को उन गरीब माताओं की याद दिलाने के लिए जो ग्रामीण क्षेत्रों, जैसे कि पश्चिम चीन में रहती थीं।
मां वात्सल्य व प्रेम की प्रतिमूर्ति
रांची विवि के कुलपति प्रो. रमेश कुमार पांडेय के मुताबिक, तुझको नहीं देखा हमने कभी, पर उसकी जरूरत क्या होगी। ऐ मां, तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत, क्या होगी। मां एक ऐसा शब्द है, जिसे सुनते ही अनायास मन में एक श्रद्धा का भाव पनप जाता है। मां शब्द ही ममता, वात्सल्य व प्रेम की प्रतिमूर्ति है। इसके बिना जीवन की बगिया अधूरी ही नहीं बेबुनियाद और रसहीन हो जाती है। मेरी सबसे पहली शिक्षिका मेरी मां थी। आज मैं जो भी हूं मां की बदौलत हूं। जो संस्कार मिला वह मां से ही मिला।
मातृ दिवस पर मां को स्मरण व नमन करता हूं। मुझे याद है कि जब भी पिताजी से डांट पड़ती थी, तो मां की गोद में चला जाता था। उस वक्त मां पढ़ाई का महत्व बताती थी। सुबह-शाम घर में पूजा-पाठ होता था और उसमें शामिल होने के लिए प्रेरित करती थी। आज उन सभी माताओं को नमन करता हूं, जो कष्ट सह कर भी बच्चों को संस्कारयुक्त शिक्षा दिला रही हैं। इसी के बल पर बच्चे समाज में खुद को एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर स्थापित कर पाएंगे।
मां ने ही दिया था धैर्य नहीं खोने का मंत्र
रांची के सीनियर एसपी कुलदीप द्विवेदी अपने पिता कृष्णानंद द्विवेदी व माता स्व. कृष्ण द्विवेदी के इकलौते बेटे व तीन बहनों के इकलौते भाई हैं। एसएसपी कहते हैं कि मैं जो भी हूं, अपनी मां के बदौलत हूं। 1 मेरी मां तो अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके दिए हुए मंत्र आज भी मुङो प्रेरणा देते हैं। वह हर विषम परिस्थिति में धैर्य बनाए रखती थीं। आत्मविश्वास उनकी ताकत थी और वह हमेशा मुझे भी धैर्य नहीं खोने का मंत्र देती थीं। मां कहती थीं कि मनुष्य को हिम्मत कभी नहीं हारना चाहिए। उनके इसी विश्वास की बदौलत आज मैं इस ऊंचाई पर पहुंच पाया। उन्होंने कभी परंपरा के लिए दबाव नहीं बनाया।
उन्होंने खुलकर जीने की आजादी दी। वह पढ़ाई को लेकर बहुत सजग रहती थीं। व्यायाम व खेल में बेहतर करने के लिए भी मां हमेशा प्रेरित करती थीं। बड़ी-बड़ी जगहों पर भी ले जाती थीं, ताकि सपना भी वही देख सकूं। मां के दी हुई हिम्मत की बदौलत ही आज मैं यहां पहुंचा हूं। वर्ष 2015 में मां हमें छोड़कर सदा के लिए चली गईं, लेकिन उनकी एक-एक बात आज भी मुझे हिम्मत देती है।

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