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    2018 से नए मेडिकल कॉलेजों, 2019 से एम्स में शुरू होगी पढ़ाई

    By Sachin MishraEdited By:
    Updated: Sun, 10 Sep 2017 10:56 AM (IST)

    वर्ष 2018 से पलामू, हजारीबाग तथा दुमका में बन रहे मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई शुरू हो जाएगी।

    2018 से नए मेडिकल कॉलेजों, 2019 से एम्स में शुरू होगी पढ़ाई

    नीरज अम्बष्ठ, रांची। स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी ने कहा है कि वर्ष 2018 से पलामू, हजारीबाग तथा दुमका में बन रहे मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई शुरू हो जाएगी और 2019 से देवघर के एम्स में भी पढ़ाई शुरू होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि सरकार की योजना मेडिकल कॉलेजों में भवन निर्माण के साथ-साथ वैकल्पिक व्यवस्था के तहत 2018 से पढ़ाई भी शुरू कर देने की है। इसके लिए एमसीआइ (मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया) को मान्यता के लिए आवेदन भेज दिए गए हैं।

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    राज्य के स्वास्थ्य मुद्दों पर 'दैनिक जागरण' से विशेष बातचीत में उन्होंने लोगों के त्वरित इलाज सुनिश्चित करने के लिए शीघ्र ही 108 एम्बुलेंस शुरू करने, बुजुर्ग नागरिकों के इलाज के लिए जिलों में जेरेटिक केयर की सुविधा बढ़ाने, प्रत्येक जिला में डायलिसिस सेंटर, एमआरआइ व सिटी स्कैन की सुविधा बहाल करने का भरोसा दिलाया है। प्रस्तुत है उनसे की गई बातचीत के महत्वपूर्ण अंश :

    हाल के दिनों में रांची के रिम्स तथा जमशेदपुर के एमजीएम में बच्चों की मौत के लिए आप किसे जिम्मेदार मानते हैं। शिशु स्वास्थ्य के लिए क्या प्रयास हो रहे हैं?

    चूंकि बच्चों की मौत का मामला हाई कोर्ट में है, इसलिए इसपर मेरा टिप्पणी करना ठीक नहीं होगा। इतना जरूर कहना चाहूंगा कि सरकार शिशुओं के स्वास्थ्य के लिए प्रतिबद्ध है।

    अस्पतालों में एम्बुलेंस नहीं मिलने पर मरीज या शव को कंधे या खाट पर ले जाने की तस्वीरें अक्सर आती रहती हैं। करोड़ों के बजट के बावजूद यह स्थिति क्यों है?

    108 एम्बुलेंस के संचालन का रास्ता साफ हो गया है। हाई कोर्ट ने टेंडर में शामिल दोनों कंपनियों को फाइब्रेकेशन का काम देने का आदेश दिया है। उम्मीद है कि अगले माह या नवंबर तक एम्बुलेंस का संचालन शुरू हो जाएगा। वहीं, सभी जिलों में शव वाहन के लिए कार्रवाई शुरू कर दी गई है। जब तक शव वाहन की प्रक्रिया शुरू नहीं हो जाती तबतक सिविल सर्जनों को सभी असहाय परिजनों को उनकी आवश्यकता के अनुसार एम्बुलेंस या शव वाहन उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया है।

    झारखंड में शिशु एवं मातृ मृत्यु दर अधिक हैं। इसे कम करने की दिशा में विभाग द्वारा क्या प्रयास किए जा रहे हैं?

    शिशु एवं माता के स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। संस्थागत प्रसव की दर बढ़ी है। राज्य में वर्ष 2014 में संस्थागत प्रसव की दर 61.9 फीसद ही थी। वर्तमान में यह दर 78 फीसद पहुंच गई है। इसी तरह वर्ष 2014 में 2.86 लाख गर्भवती महिलाओं को निश्शुल्क दवा मिली थी। पिछले साल राज्य सरकार ने 3.63 लाख महिलाओं को निश्शुल्क दवा दी। 3.05 लाख महिलाओं की निश्शुल्क जांच हुई।

    कुपोषण की समस्या बरकरार है। मुख्यमंत्री भी कई मौके पर इसपर चिंता जता चुके हैं।

    यह सही है कि कुपोषण राज्य की बड़ी समस्या है। इससे निपटने के लिए कुपोषण उपचार केंद्रों को सुदृढ़ किया जा रहा है। महिला एवं बाल विकास विभाग के साथ समन्वय कर कुपोषण से निपटने के प्रयास को तेज किया जाएगा। इसमें जन जागरुकता की भी जरूरत है। इसमें आप जैसी मीडिया भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

    राज्य में डॉक्टरों की भारी कमी है। डॉक्टर टिक भी नहीं रहे हैं। डॉक्टरों की अस्पतालों में उपलब्धता सुनिश्चित कैसे होगी?

    देखिए, राज्य गठन से अबतक यहां स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की नियुक्ति नहीं हुई थी। लेकिन मैंने स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की नियुक्ति की। 600 अन्य स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की बहाली जेपीएससी से हो रही है। स्पेशलिस्ट डॉक्टर सरकारी सेवा में रुकें इसके लिए उन्हें नियुक्ति के साथ ही वेतन वृद्धि का लाभ दिया। पूर्व से कार्यरत डॉक्टरों को प्रमोशन से लेकर अन्य वित्तीय लाभ मिला। के अंतर्गत 177 स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की नियुक्ति की गई है।

    रिम्स में सुधार के लिए आपके स्तर से क्या प्रयास हो रहा है?

    रिम्स की बेहतरी के लिए वहां के सभी विभागों को दुरुस्त किया जा रहा है। वहां चिकित्सकों एवं अन्य पारा मेडिकल कर्मियों की नियुक्ति प्राथमिकता के आधार पर की जा रही है। रिम्स निदेशक व अधीक्षक को ताकीद की गई है कि वहां मरीजों को किसी तरह की परेशानी न हो।

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