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आर्थिक उन्नति की राह दिखा रहा काजू की खेती

By Edited By: Published: Wed, 15 May 2013 01:08 AM (IST)Updated: Wed, 15 May 2013 01:13 AM (IST)

लोहरदगा : पहाड़ी श्रृंखलाओं से घिरे लोहरदगा जिले की प्रकृति ने अपनी संपदा का पिटारा खोल रखा है। जंगलों-पहाड़ों में खनिज संपदा बिखरी पड़ी हैं तो कई संभावनाएं भी विद्यमान हैं। इन्हीं में से एक है काजू की खेती भी है। औसतन 50-60 प्रतिशत की आद्रता वाले लोहरदगा जिले में काजू की खेती आर्थिक उन्नति की राह दिखा रहा है। प्राकृतिक वातावरण और मौसम के मुताबिक लोहरदगा में काजू की खेती की संभावनाएं भरी पड़ी हैं। बहुत कम भूमि पर कम समय में मेहनत के बल पर काफी कम खर्च में काजू की खेती के लिए जिले का वातावरण उपयुक्त है। जिले के किसान काजू की खेती कर आर्थिक उन्नति कर राह दिखा सकते हैं। शहर के उपनगरीय क्षेत्र पतराटोली में रहनेवाले सरकारी स्कूल के शिक्षक सह पर्यावरणविद् रविन्द्र कुमार दत्ता के घर में काजू की खेती की खुशबू से घर आंगन महक रहा है। भारत ही नहीं पूरे विश्व में काजू की खेती व पौधे अपनी अनूठी गाथा को समेटे हुए है। मूलत: ब्राजील का यह पौधा भारत के विभिन्न क्षेत्रों में पाया जाता है। पुर्तगालिक भाषा में इसे नेम काजू कहा जाता है। इसका वानस्पतिक नाम एनाकाडियम आशिडेंटाली है। शिक्षक सह पर्यावरणविद् रविन्द्र दत्ता बताते हैं कि वर्ष 1940 में उनके दादा डा. भुवन मोहन दत्ता पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिला के विष्णुपुर गांव से काजू बीज लेकर आए थे, जो आज पूर्ण वृक्ष बन चुका है। स्वादिष्ट व्यंजनों में काजू का उपयोग किसी से छिपा नहीं है। इसके फूल का रस भी यादाश्त क्षमता में वृद्धि करता है। ओड़िशा, पश्चिम बंगाल, बिहार के साथ झारखंड में काजू की खेती कृषकों की आर्थिक मजबूती का स्रोत है। खुले बाजार में काजू की फली 500-2000 रुपए प्रति किलो तक बिकती है। इसके फूल से यादाश्त बढ़ाने के लिए होमियोपैथिक दवा बनाई जाती है। कोई भी किसान काजू का पौधा लगाकर इसे तैयार होने के बाद सालाना 20-30 हजार रूपए की आमदनी कर सकता है। शिक्षक सह पर्यावरणविद् रविन्द्र दत्ता कहते हैं कि उन्हें अपनी आमदनी के अतिरिक्त काजू की खेती से वर्ष भर में अच्छी खासी आमदनी प्राप्त होती है। उनके यहां काजू के तीन पेड़ हैं। इसकी खेती में कोई परेशानी नहीं होती है। उन्होंने कई किसानों को काजू के बीज देकर पौधे भी तैयार कराएं हैं। जिला उद्यान पदाधिकारी हरेन्द्र कुमार का कहना है कि किसान काजू की खेती के लिए तैयार हों तो विभाग उन्हें हर संभव सहयोग करेगा। हाईब्रीड काजू पौधा महज पांच वर्ष में फल देने लगता है। विभाग किसानों को प्रोत्साहित करेगी। कृषि वैज्ञानिक डा. शंकर कुमार सिंह का कहना है कि लोहरदगा की आद्रता और पर्यावरण काजू की खेती के लिए बेहतर है। कृषि विज्ञान केन्द्र किसानों को काजू की खेती के लिए प्रशिक्षित करेगी।

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