होलिका दहन देखने से दूर होते कष्ट
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : मान्यता है कि होलिका दहन देखने और जलती हुई होलिका की परिक्रमा करने से साल भर के मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और ग्रह बाधाएं दूर हो जाती हैं। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत, पाप पर पुण्य की विजय और नास्तिकता को नाश कर आस्तिकता पैदा करने का प्रतीक है। शास्त्र कहते हैं कि होलिका दहन का दृश्य यह बताने के लिए काफी है कि भक्त की करुण पुकार सुनकर प्रभु हर हाल में आते हैं और उसकी रक्षा करते हैं परंतु आज के दौर में यह परंपरा सिमट गई है या यू कहें कि लगभग समाप्त सी हो गई है। ऑल इंडिया बिल्डर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष बीएन दीक्षित बताते हैं कि 60 के दशक से मैं जमशेदपुर में रह रहा हूं। उस जमाने में हर मुहल्ले में होलिका दहन होता था। लोग परिवार के साथ इसको देखने और इसकी परिक्रमा करने के लिए आते थे। परिवार के सदस्यों को उबटन लगाया जाता था और शरीर से निकलने वाली उबटन की झिल्ली सम्मत में जरूर डाली जाती थी। अब तो न उबटन लगा रहे हैं और न ही होलिका दहन कर रहे हैं, न ही देखने के लिए जुट रहे हैं। यह परंपरा 90 के दशक तक बखूबी जारी थी। इसके बाद से धीरे-धीरे समाप्त होने लगी। सम्मत गाड़ने के बाद से हर घर से लोग मुहल्ले में घूमते थे और इसमें डालने के लिए हर घर से लकड़ी, गोंइठा आदि जुटाया जाता था। उस इसके प्रति लोगों में बहुत उत्साह था। धार्मिक मान्यता बलवती थीं। आज लोग इतने तनाव में हैं कि पर्व-त्योहार का उत्साह मर सा गया है।
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होलिका दहन पूर्णिमा तिथि को सूर्यास्त के उपरांत प्रदोष काल में होता है। पंडित रमाशंकर तिवारी के मुताबिक 16 मार्च को रात 10.17 बजे तक पूर्णिमा तिथि है और प्रदोष काल भी इसलिए, इसके पूर्व होलिका दहन करना उत्तम फलदायी होगा।