हजारीबाग जेल की कोठरी से निकली थी वोल्गा से गंगा
हजारीबाग : 20 वीं सदी के महान घुमक्कड़ लेखक-चिंतक राहुल सांकृत्यायन की वोल्गा से गंगा नामक प्रसिद्ध कृति जेल की काली कोठरी में सृजित हुई थी। जेल था हजारीबाग केंद्रीय कारागार। जेल रिकार्ड के अनुसार वे यहां स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण अलग-अलग समय में लगभग 5 वर्षो तक कैद रहे। इस अवधि को उन्होंने अपने सृजन के माध्यम से अमिट बना दिया। इसके अलावा -सिंह सेनापति और दर्शन दिग्दर्शन की रचना भी यहीं हुई थी।
अपने संपूर्ण जीवन में कुल 157 कृतियों के रचनाकार राहुल एक अप्रैल 1923 को पहली बार हजारीबाग सेंट्रल जेल के बंदी बने। इसके बाद से लगातार उनका यहां आने-जाने का सिलसिला जारी रहा। 27 मार्च 1940 को दूसरी बार तथा 30 दिसंबर 1941 को तीसरी बार यहां बंदी रहे।
राहुल के सृजन का मूक गवाह हजारीबाग का सेंट्रल जेल है जिसके परिसर में इस महाभिक्षुक ने अपनी विचारधारा को लिपिबद्ध किया था। एक अजीब संयोग है कि उनका जन्म और महाप्रयाण का महीना अप्रैल ही रहा है। 9 अप्रैल 1963 को दार्जिलिंग में उनकी मृत्यु हुई थी।
विचारों को मूर्त रूप देकर उन्होंने सिद्ध कर दिया था कि आदमी जंगल में रहे या पहाड़ पर, नदी में या घाटी में, अपने रह क्षण का सदुपयोग कर सकता है। सेंट्रल जेल के राहुल स्मृति कक्ष में उनकी स्मृतियां सुरक्षित हैं। उनके सृजन स्थल का महत्वपूर्ण पड़ाव था हजारीबाग। उन्होंने शारदा पीठ के शंकराचार्य से गणित पढ़ना सीखा था। इसके साथ ही इस्लाम धर्म का गहन अध्ययन किया था। फ्रेंच समेत कई विदेशी भाषाएं सीखी। स्वतंत्रता आंदोलन के सूत्रधार रहे राहुल के प्रगतिशील विचार वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था के पथ प्रदर्शक हैं। उनकी स्मृति में शहर में किसी प्रतिमा की स्थापना अब तक नहीं की गई है। बौद्धिक समाज के समक्ष यह प्रश्न अनुत्तरित है।
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