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    की होल गार्डनः नई तकनीक से कम पानी में पौष्टिक सब्जियां

    By Sachin MishraEdited By:
    Updated: Mon, 24 Apr 2017 02:09 PM (IST)

    झारखंड में नई तकनीक से कम पानी में सालभर सब्जी की खेती की जा रही है।

    की होल गार्डनः नई तकनीक से कम पानी में पौष्टिक सब्जियां

    ज्ञान ज्योति, गिरिडीह। खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग और साल-दर-साल गहराते जलसंकट के बीच कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए हर दिन नए-नए प्रयोग हो रहे हैं। फसलों का उत्पादन बढ़ाने को नई-नई तकनीक अपनाई जा रही है। इसी कड़ी में 'की-होल गार्डन' के रूप में भी एक नया प्रयोग किया जा रहा है। गिरिडीह और देवघर के कई गांवों में इस विधि को अपनाकर सब्जी उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके जरिए न केवल कम पानी में सालभर सब्जी की खेती की जा रही है, बल्कि कुपोषण-एनीमिया जैसी समस्याओं को मात देने की भी पहल हो रही है।

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    जानिए, क्या है की-होल गार्डन

    इस विधि के तहत पांच फीट जमीन को गोलाकार में बांस-ईंट आदि से घेर दिया जाता है। बीच में की-होल की भांति आधा फीट वृत्ताकार में घेरा जाता है, जिसे कंपोस्टिंग बास्केट कहा जाता है। उसकी ऊंचाई चार फीट होती है। उसके बीच में खाद-पानी आदि डाला जाता है। की-होल गार्डन में चार परत बनाई जाती है। पहली परत में ईंट-पत्थर, दूसरी परत में आधा ईंच मोटा पुआल, तीसरी परत में दो फीट तक मिट्टी और चौथी परत में आधा फीट गोबर या उर्वरा मिट्टी आदि डाली जाती है। इस तरह की-होल गार्डन बनाया जाता है। फिर उसमें विभिन्न तरह की सब्जियों के पौधे या बीज डाले जाते हैं।

    अधिक पानी की जरूरत नहीं

    इस विधि से सब्जी की खेती करने पर अधिक पानी की आवश्यकता नहीं पड़ती है। दिनभर में एक बाल्टी पानी डालने से पौधे हमेशा हरे रहते हैं और अच्छी पैदावार होती है। इसमें बर्तन-कपड़ा आदि धोने के बाद फेंक दिए जाने वाले गंदे पानी का भी उपयोग किया जा सकता है।

    संस्था दे रही बढ़ावा

    इस विधि को अभिव्यक्ति फाउंडेशन नामक संस्था बढ़ावा दे रही है। गिरिडीह और देवघर जिलों के करीब 24 गांवों में संस्था की पहल पर इस विधि को अपनाया गया है। दोनों जगह करीब 130 परिवार इस विधि से विभिन्न तरह की साग-सब्जियां उगाकर अपनी जरूरत पूरी कर रहे हैं।

    हमेशा मिलती हरी सब्जी

    बेंगाबाद प्रखंड के चोरगोत्ता की बसंती देवी, धोबनी की पार्वती देवी, अमजो के महेंद्र यादव, जरूवाडीह की पूनम कुमारी, फिटोरिया की विपाशा सहित कई लोग इस विधि से सब्जी उगा रहे हैं। उन लोगों ने बताया कि पहले गर्मी के मौसम में पानी की कमी के कारण सब्जी की खेती नहीं हो पाती थी। केवल आलू और कटहल से ही काम चलाना पड़ता था, लेकिन की-होल गार्डन से अब हमेशा हरी और ताजा सब्जी खाने को मिलती है। संस्था की सीमा दास ने बताया कि तीन की-होल गार्डन पांच सदस्य वाले परिवार की सब्जी की जरूरत सालभर पूरी कर सकते हैं।

    कुपोषण-एनीमिया में लाभदायक

    की-होल गार्डन पानी की बचत करने के साथ कुपोषण-एनीमिया को दूर करने में भी सहायक साबित हो रहा है। संस्था के सचिव कृष्णकांत बताते हैं कि झारखंड में कुपोषण और एनीमिया की समस्याएं गहरी हैं। इसका मूल कारण पौष्टिक आहार का अभाव है। ऐसे में की-होल गार्डन से इन्हें दूर किया जा सकता है, क्योंकि इस विधि को अपना कर सालभर हरी साग-सब्जी का सेवन कर सकते हैं। यह विधि स्वस्थ समाज की परिकल्पना को साकार करने में भी काफी कारगर सिद्ध होगी।

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    साग-सब्जियों की खेती के लिए की-होल गार्डन के रूप में एक नया प्रयोग किया गया है, जिसके गिरिडीह और देवघर में अच्छे परिणाम देखने को मिल रहे हैं। ताजा साग-सब्जियों के लगातार सेवन से कुपोषण और एनीमिया जैसी समस्याओं से भी बचा जा सकता है।

    -कृष्णकांत, सचिव, अभिव्यक्ति फाउंडेशन, गिरिडीह

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