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    गढ़वा में पति ने चिट्ठी भेजकर पत्नी को दिया तलाक

    By Sachin MishraEdited By:
    Updated: Mon, 08 May 2017 02:34 PM (IST)

    शादी के बाद कासिम घर छोड़कर बाहर कमाने चला गया था और हसीना ससुराल में सास-ससुर के साथ रही थी।

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    गढ़वा में पति ने चिट्ठी भेजकर पत्नी को दिया तलाक

    जागरण संवाददाता, रंका (गढ़वा)। रंका थाना क्षेत्र के खपरो गांव में सइदु अंसारी की पुत्री हसीना बीबी को उसके पति ने एक सप्ताह पूर्व चिट्ठी के माध्यम से तीन बार तलाक लिखकर तलाक दे दिया।

    मामले को लेकर रविवार को रंका प्रखंड के खरडीहा में मुखिया अनिल चंद्रवंशी के घर पंचायत हुई। इसमें दोनों पक्ष के दर्जनों लोग उपस्थित थे। दोनों पक्षों में तलाक को लेकर सहमति बनने पर पंचायत ने दहेज की राशि और गुजारा भत्ता आदि जोड़कर एकमुश्त साढ़े चार लाख रुपये वर पक्ष द्वारा लड़की को देने का निर्णय सुनाया। इसे वर पक्ष ने सहज स्वीकार कर लिया और तलाकनामे पर मुहर लग गई।

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    रंका थाना क्षेत्र के खपरो गांव निवासी सइदु अंसारी ने बताया कि मई 2015 में चैनपुर थाना क्षेत्र के झझवा गांव निवासी नेयामुद्दीन अंसारी के पुत्र कासिम अंसारी से उन्होंने अपनी पुत्री हसीना की शादी की थी। कुछ दिनों तक सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा था। बाद में कासिम घर छोड़कर बाहर कमाने चला गया और हसीना वहीं ससुराल में अपने सास-ससुर के साथ रहने लगी। इसी बीच 30 अप्रैल को उसे डाक से एक चिट्ठी मिली, जिसमें पुत्री की तीन तलाक देने संबंधी बातें लिखी थी।

    इस बात को लेकर दोनों पक्षों के लोगों को बैठाकर रविवार को पंचायत हुई, जिसमें कासिम ने तलाक देने पर सहमति जताते हुए पंचायत में उपस्थित लोगों को बताया कि हसीना हमेशा बीमार रहती थी। साथ ही, घर में किसी का बात भी नहीं मानती है। इसीलिए उसे तलाक दिया गया है। इस बात को लेकर पंचायत में काफी देर बहस भी हुई। बाद में पंचायत ने तलाकनामे पर मुहर लगा दी। जिसे लड़का व लड़की पक्ष ने स्वीकार कर लिया।

    पंचायत में न दूल्हा था, न दुल्हन
    तलाक के इस मामले में यूं तो ना-नुकुर करते-करते दोनों पक्षों में सहमति बन गई लेकिन यह व्यवस्था समाज की परंपराओं पर कई सवाल भी खड़े करती है। पंचायत में न तो लड़का मौजूद था न लड़की। दूल्हे ने तो चिट्ठी भेजकर ही अपना निर्णय सुना दिया। दोनों को बिठाकर ना मान-मनौव्वल की कोशिश हुई ना टूटते रिश्ते को बचाने की कोई और कवायद। डाक से भेजी गई एक चिट्ठी को ही पूरी प्रक्रिया का आधार बना दिया गया।
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    तलाक में काजी या मौलवी की सहमति की जरूरत नहीं होती। दोनों पक्षों की बातों को सुनने के बाद पंचायत जो निर्णय लेता है वही दोनों पक्ष को मानना पड़ता है। हसीना व कासिम के मामले में भी यह हुआ है।
    -अनिल चंद्रवंशी, मुखिया, खरडीहा पंचायत, रंका।
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