महासमर.. श्राइन बिल का एजेंडा तय करेगा पंडितों का वोट
जागरण संवाददाता, जम्मू : दो दशकों से भी अधिक समय से विस्थापन में रह रहा कश्मीरी पंडित समुदाय कश्मीर में पुनर्वास व वापसी में देरी के लिए न सिर्फ राज्य व केंद्र सरकार को जिम्मेदार मान रहा है, बल्कि प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रति भी उनके मन में गिला है। उन्होंने उनकी बेबसी से हमेशा ही पल्ला छुड़ाया है। वादी में सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए संघर्ष कर रहे पंडितो को उन राजनीतिक दलों के प्रति भी मन में मलाल है, जिन्होंने मंदिरों व धार्मिक स्थलों के संरक्षण के लिए विधानसभा में लंबित कश्मीरी हिंदू श्राइन बिल को पारित न होने देने में अहम भूमिका निभाई थी।
चौबीस वर्षो से अपने घर से दूर रहने की बेबसी के लिए पंडित समुदाय राजनीतिक दलों के ढुलमुल रवैये को ही जिम्मेदार मानता है। पंडितों का मानना है कि अब की बार वह अपने मत का इस्तेमाल सोच समझ कर ही करेंगे। जगटी टेनमेंट कमेटी के प्रधान शादी लाल पंडिता का कहना है कि कश्मीरी पंडितों को विस्थापन में सरकार ने कुछ भी नहीं दिया है। सरकार ने पंडितों के बागों, उनकी फसलों व उनकी संपत्ति का मुआवजा नहीं दिया और न ही उन्हें कश्मीर में सुरक्षित जगहों पर बसाया गया ताकि वह भी अपनी मातृभूमि की फिजा में सांस ले सकते।
वहीं, वादी में मंदिरों व धार्मिक स्थलों के संरक्षण के लिए संघर्ष करने वाले संगठन प्रेमनाथ भट्ट मेमोरियल ट्रस्ट के नेताओं का मानना है कि पंडित मतदाताओं की नजर सभी राजनीतिक दलों की कारकरदगी पर है और जो दल अपने चुनाव घोषणा पत्र में कश्मीरी हिंदू श्राइन बिल को पारित करवाने को अपने एजेंडे में रखेगा, पंडित मतदाता उसी दल को अपना मत देने का प्रयास करेगा।