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    कोटखाई मामला: अपने ही जाल में फंस रही है हिमाचल पुलिस

    By Babita KashyapEdited By:
    Updated: Fri, 01 Sep 2017 09:47 AM (IST)

    जिन आरोपियों को पुलिस इस मामले मेंं शामिल बता रही थी, फॉरेंसिक सुबूतों में उन्हें क्लीनचिट मिली है। ...और पढ़ें

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    कोटखाई मामला: अपने ही जाल में फंस रही है हिमाचल पुलिस

    शिमला, जागरण संवाददाता। तो क्या, जैसी आशंका थी... हिमाचल पुलिस ने गलत लोगों को बहुचर्चित कोटखाई दुष्कर्म एवं हत्याकांड में गिरफ्तार कर लिया था? मामले में हिमाचल पुलिस अपने ही बनाए जाल में फंसती नजर आ रही है। पुख्ता सूत्रों के अनुसार, जिन्हें आरोपी बताते हुए गिरफ्तार किया गया है, उनके डीएनए मैच ही नहीं हुए हैं। यह निष्कर्ष सीबीआइ को मिली डीएनए जांच रिपोर्ट में निकला है। जिन आरोपियों को पुलिस इस मामले मेंं शामिल बता रही थी, फॉरेंसिक सुबूतों में उन्हें क्लीनचिट मिली है। ऐसे में इस मामले में सीबीआइ को बड़ी सफलता मिलती दिख रही है।

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    डीएनए सैंपल पुलिस की एसआइटी ने मामला सुलझाने के बाद 14 जुलाई को रिपन अस्पताल शिमला मेंं लिए थे। इसके अलावा मुख्यमंत्री के फेसबुक पेज पर जिन युवकों के फोटो वायरल हुए थे, उन दो संदिग्धों के सैंपल हिमाचल प्रदेश पुलिस द्वारा गठित एसआइटी ने लिए थे। फॉरेंसिकलैब जुन्गा में मुख्य आरोपी राजेंद्र उर्फ राजू, सुभाष, दीपक उर्फ दीपू, लोकजन, सूरज, आशीष चौहान और दो संदिग्धों के सैंपल पुलिस ने लिए थे। पहले सिर्फ छह आरोपियों के सैंपल लिए गए थे। दो लोगों के सैंपल पुलिस ने बाद में लिए।

     

    दुष्कर्म के मामले में पुलिस जिन पांच आरोपियों को शामिल बता रही थी, वह थ्योरी अब डीएनए मैच न होने से फेल हो गई है। ऐसे में साबित हो गया है कि इस मामले में पुलिस ने गलत लोगों को आरोपी बना दिया था। पुलिस अब अपने ही जाल में बुरी तरह फंसती दिख रही है। जब आरोपियों के सैंपल ही नहीं मिल रहे हैं तो फिर उन्होंने वारदात को कैसे अंजाम दिया होगा यानी पुलिस ने सारी कहानी बड़ी गहराई से लिखी थी ताकि असली आरोपी बच सकें और कोर्ट में आरोपियों के खिलाफ वैज्ञानिक सुबूत न होने के कारण उन्हें बेकसूर बता दिया जाए। सीबीआइ अब इस मामले को सुलझाने के बिलकुल करीब पहुंच चुकी है।

     

    ये हैं सुलगते सवाल

    -क्या पुलिस की एसआइटी ने सैंपल बदले हैं?

    -अगर पुलिस की थ्योरी सही थी तो नमूनों का मिलान क्यों नहीं हुआ?

    -क्या नमूने बदलना असली आरोपियों को बचाने के लिए रणनीति का हिस्सा था?

    -डीजीपी सोमेश गोयल किन वैज्ञानिक सुबूतों के आधार पर मामले को सुलझाने का दावा पत्रकार वार्ता में कर रहे थे?

    -क्या फॉरेंसिक लैब तके रिपोर्ट से छेड़छाड़ हुई है? 

    -सैंपल लेते समय पुलिस ने वीडियोग्राफी क्यों हीं करवाई? 

     

    जब पुलिस मामला सुलझा चुकी थी तो दोबारा सैंपल ले सकती है सीबीआइ 

    इस मामले में सीबीआइ आरोपियों व संदिग्धों केसैंपल दोबारा ले सकती है। सीबीआइ हिमाचल पुलिस द्वारा की गई लापरवाही को समझ झुकी है। वैज्ञानिक आधार पर पुलिस ने जो सुबूत मिटाने का काम किया, वे अब सीबीआइ की पकड़ में आने लगा है। सीबीआइ आरोपियों के सैंपल लेकर निर्दोष लोगों को जांच से अलग करने में जुट  गई है। डीएनए सैंपल मैच न होने से पुलिस की एसआइटी के खिलाफ जांच बढ़ती दिख रही है। इससे साफ जाहिर हो रहा है कि पुलिस किस तरह इस मामले को सुबूतों के आधार पर बेबुनियाद बनाने में जुटी थी।

     

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