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    अब प्रदेश सरकार के लिए कर्ज लेना होगा मुश्किल

    By Babita KashyapEdited By:
    Updated: Mon, 13 Nov 2017 09:27 AM (IST)

    प्रदेश में इस महीने नौ नवंबर को विधानसभा चुनाव हुए थे और चुनाव परिणाम 18 दिसंबर को घोषित होंगे। ...और पढ़ें

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    अब प्रदेश सरकार के लिए कर्ज लेना होगा मुश्किल

    शिमला, राज्य ब्यूरो। हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने के बाद 38 दिन तक सरकार कोई नीतिगत निर्णय नहीं ले सकती है। राज्य में नई सरकार बनने तक मौजूदा कांग्रेस सरकार सामान्य कामकाज ही करने में सक्षम है। प्रदेश में आदर्श चुनाव आचार संहिता के कारण सरकार के लिए कर्ज उठाना भी इतना आसान नहीं होगा। 

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    प्रदेश में इस महीने नौ नवंबर को विधानसभा चुनाव हुए थे और चुनाव परिणाम 18 दिसंबर को घोषित होंगे। इस बीच करीब डेढ़ माह तक सरकार को सामान्य खर्च चलाने के लिए पर्याप्त धनराशि की जरूरत रहेगी जिसके लिए प्रदेश सरकार के पास कर्ज उठाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है।

     

    प्रदेश सरकार को केंद्र सरकार पहले भी दो मर्तबा अगाह कर चुकी है कि वह अधिक कर्ज उठा चुकी है। मौजूदा वित्त वर्ष के लिए केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने प्रदेश सरकार के लिए कर्ज उठाने की धनराशि निर्धारित की है जिसके तहत राज्य सरकार राजकोषीय घाटे की सीमा के भीतर 34 सौ करोड़ रुपये का कर्ज उठा सकती है। 

     

    अभी तक राज्य सरकार 2500 करोड़ रुपये का कर्ज ले चुकी है। लोक निर्माण विभाग सहित कई सरकारी विभागों में काम करने वाले ठेकेदारों को भुगतान नहीं हुआ है। बड़ी संख्या में ठेकेदारों ने लिखित तौर पर दिया है कि उन्हें काम पूरा होने केबावजूद भुगतान नहीं किया गया है।

     

    कर्ज पर अंकुश लगाओ

    रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने राज्य सरकार को लिखित आगाह किया था कि कर्ज नियमानुसार ही लिया जा सकता है। हिमाचल सरकार दो बार लगातार कर्ज उठा चुकी है। ऐसे में सरकार को कर्ज नहीं दिया जा सकता। 

     

    मेडिकल बिलों का भुगतान बंद

    प्रदेश में मेडिकल बिलों का भुगतान नहीं हो पा रहा है। तीन माह से किसी भी कर्मचारी व सेवानिवृत्त कर्मचारी को मेडिकल बिलों का भुगतान नहीं किया गया है। यदि कर्ज लेने की जरूरत पड़ी तो सरकार चुनाव आयोग को लिखित तौर पर सूचित करेगी और उसके बाद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से कर्ज के लिए आवेदन किया जाएगा। वैसे भी राज्य सरकार निर्धारित मापदंडों के तहत कर उठा सकती है।

    डॉ. श्रीकांत बाल्दी, अतिरिक्त मुख्य सचिव वित्त।

     

    कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए वित्तीय प्रबंधन की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। सरकार ने फिजूलखर्ची की है, जिसके परिणामस्वरूप राज्य पर कर्ज का बोझ 48 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। भाजपा ने सत्ता में रहते हुए एक समय केंद्र सरकार से कर्ज लेना कम कर दिया था।

    -प्रेम कुमार धूमल, नेता प्रतिपक्ष।

     

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