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    हसरतें हैं कि दम नहीं तोड़ती

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    Updated: Wed, 13 Jul 2016 02:18 PM (IST)

    बार-बार एक पंक्ति का प्रस्ताव हिमाचल की कांग्रेस सरकार की कैबिनेट पारित करती है व मैडम से कहती है कि सब वीरभद्र के साथ है। मनी लांड्रिंग मामले मे जब भी सीबीआइ या ईडी ने आंखे दिखाई

    डॉ. रचना गुप्ता

    बार-बार एक पंक्ति का प्रस्ताव हिमाचल की कांग्रेस सरकार की कैबिनेट पारित करती है व मैडम से कहती है कि सब वीरभद्र के साथ हैं। मनी लांड्रिंग मामले मे जब भी सीबीआइ या ईडी ने आंखें दिखाई तब तब कांग्रेस वीरभद्र के आगे और नतमस्तक हुई। यानी पार्टी परोक्ष रूप से मान रही है कि वीरभद्र से इस वक्त नाराजगी मोल लेना इसलिए संभव नहीं क्योंकि सत्ता वापसी में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी। लेकिन फिर भी टीम वीरभद्र विचलित क्यों है व मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने की हसरतें पाले नेताओं की इच्छाएं दम नहीं तोड़ रही। अपने लिए उन्हें काले बादलों में रोशनी की किरण नजर आ रही है कि कहीं केंद्रीय जांच एजेंसियां मुख्यमंत्री के खिलाफ कार्रवाई कर दें।

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    जैसा आभास एलआइसी एजेंट आनंद चौहान की गिरफ्तारी से हो रहा था। लेकिन तब तक एक पंक्ति के प्रस्ताव का फार्मूला चलने दिया जाए, यह माना गया। पार्टी नेताओं के बदलते दाव भी कई सवालों को जन्म दे रहे हैं क्योंकि कैबिनेट हाल की कुर्सियों का सुर, सचिवालय प्रांगण के सुर से बिलकुल भिन्न हैं। कई ऐसे मंत्री हैं, जो सामने तो कोरे कागज पर कलम घसीट रहे हैं, लेकिन बाहर इबारत कुछ और ही लिखी जा रही है। यही सच्चाई इस वक्त कांग्रेस पार्टी में है कि सभी नेताओं की हसरतें किसी भी स्तर पर दम नहीं तोड़ रही।

    कौल सिंह, जोकि खुद को मुख्यमंत्री की कुर्सी का दावेदार मानते हैं, इस बैठक में गए ही नहीं। चर्चाएं हैं कि इस बार एक पंक्ति का प्रस्ताव पेश करने वाले कांगड़ा के वही नेता जीएस बाली हैं जो मुख्यमंत्री को कभी कतई गवारा नहीं थे। बाली वही हैं, जिन पर अपने पसंदीदा मंत्री सुधीर शर्मा के मार्फत कांगड़ा जिले में कई बार वीरभद्र ने राजनीतिक मंसूबे साधे। अपने बेटे की युकां की सरदारी पर मुख्यमंत्री आमने-सामने हुए। आज वही बाली व सुधीर गलबहियां डाले मीडिया में तस्वीरें खिंचवाने को आतुर थे। मुख्यमंत्री के बार-बार हनुमान बनते रहे मंत्री मुकेश अग्निहोत्री विदेश यात्राओं में मसरूफ रहे। चाहे न चाहे अनिल शर्मा ठीक नौ बजे कैबिनेट में दस्तक तो दे गए, लेकिन उनका मन कहां है यह किसी से छिपा नहीं है। तीन-चार 'डमी' मंत्रियों को छोड़ दें तो बाकी तेल व तेल की धार देख रहे हैं। जब तक तो सब ठीकठाक है लेकिन कहीं उलट हुआ तो असर सिर फुटव्वल होगी।

    यूं भी पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल कहते रहते हैं कि चुनाव जल्द होंगे। केंद्रीय जांच की परतों में जितनी गहरी जड़ें धूमल की हैं, उससे कहीं न कहीं यह भी साफ है कि चुनाव कुछ समय पहले जरूर होगा। ऐसे में भाजपा हर स्थिति के लिए तैयार रहे। बहरहाल सत्ता के दो बरस जांच एजेंसियों के बीच झूल गए व अब बाकी बचा समय कितना लंबा खींचेगा, इसका अंदाजा सहज ही तब लगाया जा सकता है कि पूर्व व मौजूदा नौकरशाह भी सलाा मे रहते पाला बदल चुके हैं।

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