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    'ताख' नाम से प्रसिद्ध है तारा देवी मंदिर

    By Edited By:
    Updated: Wed, 17 Oct 2012 12:50 AM (IST)

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    जागरण संवाद केंद्र, शिमला : मंदिरों में नवरात्रों के दौरान सच्चे मन से भक्तजन मां के दर्शन करने के लिए मां के दरबार में आते हैं। नवरात्रों के दौरान विभिन्न मंदिरों में भक्तों की भारी उपस्थिति देखने में मिल रही है। इसी तरह भक्तजनों की आस्था का सैलाब शिमला जिला के 'श्री तारा देवी मंदिर' में दूर-दूर से आ रहे भक्तों के रूप में देखने को मिल रही है।

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    त्रिगुणात्मक शक्तिपीठ धाम तारादेवी मंदिर ताख भारत वर्ष के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला शहर के दक्षिण दिशा के सामने ताख पर्वत के शिखर पर स्थित यह भव्य धार्मिक स्थान कई दशकों से लोगों की श्रद्धा का विशेष केंद्र बना हुआ है। यह सर्वविध विपदा-आपदा हरने वाली कल्याणकारी त्रिगुणात्मक शक्तिपीठ धाम तारा देवी मंदिर नाम से जाना जाता है। एवं स्थानीय ग्रामीणों में 'ताख' नाम से प्रसिद्ध है।

    ऐसा माना जाता है कि तारा देवी मां क्योंथल रियासत के राजपरिवार की कुलदेवी है। क्योंथल रियासत के राज परिवार सेनवंश का है। एक कथा के अनुसार राजा भूपेंद्र सेन जुनबा से गांव जुग्गर शिलगांव के जंगल में आखेट करने निकले जहां पर मां भगवती तारा के सिंह की गर्जना झाड़ियों से राजा को सुनाई दी फिर एक स्त्री की आवाज गूंजी। राजन मैं तुम्हारी कुलदेवी हूं जिसे तुम्हारे पूर्वज बंगाल में ही भूल से छोड़कर आए थे राजन। तुम यहीं मेरा मंदिर बनवाकर मेरी तारा मूर्ति स्थापित करो। मैं तुम्हारे कुल एवं पूजा की रक्षा करूंगी राजा ने तत्काल ही गांव जुग्गर में दृष्टांत वाली जगह पर मंदिर बनवाकर एवं चतुर्भुजा तारा मूर्ति बनवाकर विधिवत प्रतिष्ठा कर दी जिससे यह तारा देवी का उत्तर भारत का मूल स्थान बन गया।

    तारा भगवती के विपुल एवं रोमांचक तेज के आगे असावधानी होने से भी देवी कुपित हो जाती है। तारा मूल स्थान जुग्गर में काफी पहले तारा देवी मंदिर खण्डहर बन चुका था जिसके पत्थर से शेष मात्र थे। नव मंदिर निर्माण का खाका जय शिव सिंह चंदेल सहित अन्य श्रद्धालुओं ने तैयार करवाया।

    पौराणिक एवं सिद्ध मान्यता है कि जब-जब तारा देवी मंदिर के आसपास के गांवों में महामारी चेचक, प्लेग, हैजा एवं पशुओं में खुररोग, मुंहरोग, मस्से आदि फैले तब तब यहां लोकाचार मन्नत पद्धति एवं अनुष्ठान से सारी विभूतियों से प्रभावित श्रद्धालुओं ने मुक्ति पाई है। पौराणिक कथानुसार राजा चंद्रसेन को देवी ने स्वप्न में दर्शन दिए कि वह जुग्गर मंदिर के सामने ऊपर शिखर पर मेरा मंदिर बनाकर मूर्ति प्रतिष्ठित करे राजा ने ताख पहाड़ के चलुसीया नाम के शिखर पर मंदिर बनवाकर मूर्ति प्रतिष्ठित कर दी। मां तारा अंबा ने राजा को फिर स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि मेरी इच्छा जुग्गर के सामने दक्षिण दिशा में पर्वत शिखर पर मंदिर की थी और कहा कि राजन तेरे महल से जहां तक चिंटियों की कतार लगी मिले, उस पर चलते जाना जहां समाप्त होगी उसी शिखर पर्वत पर मेरा मंदिर करके मेरा विगृह स्थापित करना।

    प्रात: उठकर राजा ने महल के द्वार के पास से चिंटियों की कतार देखी जिसके साथ-साथ चल बियावान वृक्षों एवं झाड़ियों से होता हुआ ताख शिखर के पहाड़ी पर आनंदपुर की ओर से जा पहुंचा वहां पर चिंटियों की कतार समाप्त देख मंदिर निर्माण कार्य आरंभ कर दिया। मंदिर निर्मित होने पर राजा ने काष्ठ विगृह तारा चर्तुभुज एवं अष्टभुज रूप में स्थापित कर दी तत्पश्चात मूल धानुनिर्मित मूर्ति जुग्गर से विधि विधान सहित ले जाकर तारा देवी मंदिर में स्थापित कर दी। वर्तमान में भी तारा देवी मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है एवं हिमाचल प्रदेश सहित देश के श्रद्धालु एवं पर्यटक नवरात्रों में विशेष तौर पर दर्शनों के लिए मां के दरबार में पहुंचते हैं नवरात्रों के मौके पर मां भगवती का पाठ एवं भंडारे का आयोजन भी किया जाता रहा है शिमला शहर की जनता का मां 'तारा' पर गहरा विश्वास है। नवरात्रों में काफी संख्या में भक्तजन मां के दर्शन कर मां का आशीर्वाद पाते हैं। यहां पहुंचने के लिए राजधानी से 7 किमी व उसके बाद 5 किलोमीटर पैदल तिरछे मार्ग से होकर जाना पड़ता है। मार्ग में बान, ब्रांस, काले भोंरे, देवदार के घने जंगल आते हैं। दूसरा मार्ग शिमला से तारा देवी मंदिर तक 18 किमी सड़क द्वारा है। यहां पहुंच कर चारों ओर का दृश्य देखते ही बनता है। उत्तर दिशा की पहाड़ियों पर शिमला, कुफरी जंगल श्रृंखला, शाली देवी पर्वत, श्रीखंड पर्वत की बर्फानी पर्वत श्रृंखलाएं व पूर्व की दिशा में पहाड़ों पर चायल, जुनगा के देवदार भरे जंगल, चूडधार, दक्षिण दिशा में, करोल पर्वत, स्पाटू, कसौली, पश्चिम दिशा में जतोग, जनो पर्वत श्रृंखला, कुनिहार, अर्की, हवाई अड्डा का दृश्य देखते ही बनता है। मां के दरबार में पहुंचकर ऐसा अनुभव होता है मानों स्वर्ग में पहुंचकर चारों दिशाओं की ओर पृथ्वी जगदंबा के बेजोड़ सौंदर्य एवं पालनहार की खान पर दृष्टिपात कर आनंदित होकर तनावमुक्त हो रहे है।

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