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    प्रशिक्षु डॉक्टरों ने खोला मोर्चा

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    Updated: Tue, 06 Dec 2016 12:59 AM (IST)

    राज्य ब्यूरो, शिमला : राजकीय दंत महाविद्यालय एवं अस्पताल शिमला के प्रशिक्षु डॉक्टर सोमवार को सरकार औ ...और पढ़ें

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    राज्य ब्यूरो, शिमला : राजकीय दंत महाविद्यालय एवं अस्पताल शिमला के प्रशिक्षु डॉक्टर सोमवार को सरकार और अस्पताल प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए हड़ताल पर चले गए। सोमवार को उन्होंने प्रदेश सरकार और अस्पताल प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की। प्रशिक्षु डॉक्टरों ने कहा, जब तक प्रदेश सरकार हर वर्ष चिकित्सकों के पचास पद निकालने की मांग को नहीं मानेगी तब सभी वह हड़ताल पर रहेंगे।

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    प्रशिक्षु डॉक्टर दीपक ठाकुर ने कहा कि सरकार यदि दंत चिकित्सा की पढ़ाई करने वालों को नौकरियां देने में असमर्थ है तो डेंटल कॉलेज को बंद कर देना चाहिए। कहा प्रदेश सरकार ने 2013 से अभी तक दंत चिकित्सक का एक भी पद कमीशन से नहीं निकाला है। 2013 भी केवल पैंतीस ही पद निकाले थे। प्रशिक्षु डॉ. नरेश ठाकुर, भानू प्रिया, इंदू ठाकुर व अनिल आजटा ने कहा कि प्रदेश में एक दंत चिकित्सक के अनुपात में सात एमबीबीएस डॉक्टर के पद भरे जाते हैं और दंत चिकित्सकों के केवल 290 पद ही सृजित किए गए हैं, जबकि में एक सरकारी डेंटल कॉलेज और चार निजी महाविद्यालयों से हर वर्ष करीब तीन सौ दंत चिकित्सक निकल रहे हैं। प्रदेश में पांच सौ सोलह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तो 78 सीएचसी हैं। प्रदेश में दो हजार पंजीकृत दंत चिकित्सक बेरोजगार हैं। दंत चिकित्सा निदेशालय ने प्रदेश सरकार को पद निकालने के लिए कई बार प्रस्ताव भेजा था लेकिन सरकार ने इसे नामंजूर कर दिया। हाल ही में निदेशालय ने दंत चिकित्सकों के सत्तर पद भरने का प्रस्ताव भेज था लेकिन बजट की कमी बताकर इस लौटा दिया गया। दंत महाविद्यालय के सीएससीए के उपाध्यक्ष अनिल आजटा ने डीसीआइ (डेंटल कॉलेज ऑफ इंडिया) की ओर से हर साल किए जाने वाले निरीक्षण पर सवाल खड़े करते हुए कि मेडिकल कॉलेज को मान्यता तभी मिलती है जब वहां विद्यार्थियों के लिए हॉस्टल की सुविधा हो। आरोप लगाया कि राजकीय दंत महाविद्यालय में पिछले आठ वर्ष से हॉस्टल ही नहीं है। इसके अलावा कॉलेज कैंटीन सहित अन्य सुविधाओं का भी अभाव है। प्रशिक्षु डॉक्टरों के हड़ताल पर जाने से सोमवार को अस्पताल से मरीजों को बैरंग लौटना पड़ा। मरीज सुबह ही पहुंच गए थे लेकिन डॉक्टर न होने से उन्हें बैरंग लौटना पड़ा।