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'एक और द्रोणाचार्य' से किया व्यवस्था पर प्रहार

By Edited By: Published: Mon, 06 May 2013 01:04 AM (IST)Updated: Mon, 06 May 2013 01:05 AM (IST)
'एक और द्रोणाचार्य' से किया व्यवस्था पर प्रहार

जागरण संवाद केंद्र, शिमला : हिमाचल सांस्कृतिक शोध संस्थान व नाट्य रंगमंडल मंडी द्वारा आयोजित दो दिवसीय नाट्य उत्सव में रविवार को 'एक और द्रोणाचार्य' नाटक का मंचन किया गया। शंकर शेष द्वारा लिखित व दक्षा शर्मा द्वारा निर्देशित उक्त नाटक की प्रस्तुति गेयटी थियेटर शिमला में दी गई है।

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'एक और द्रोणाचार्य' शकंर शेष का सर्वश्रेष्ठ नाटक है जिसका आज भी जीवंतता के साथ मंचन किया जाता है। कहानी में वर्तमान शिक्षक की तुलना उस द्रोणाचार्य से की जाती है, जिसने एक शिक्षक को अन्याय सहने की परंपरा दे डाली और उसे इतिहास हमेशा कोसता रहेगा। अरविंद जो कि एक शिक्षक है और अपनी नियमित आय से अपनी गृहस्थी चला रहा है, लेकिन सत्ता के दबाव में आकर उसकी आदर्शात्मक, सिद्धांत, उसकी सोच धरी की धरी रह जाती है और वो व्यवस्था की कठपुतली बनकर रहा जाता है। विमलेंदु जो ठीक वैसा ही पात्र है जिसने शिक्षक के रूप में सत्ता व व्यवस्था के विरोध में अपनी जान गंवाई उसे झकझोरता है और अरविंद से कहता है कि जाओ तुम भी समझोता करो। यदि समाज तुम्हें भोंकने वाला कुत्ता बनाना चाहता है तो तुम बनो क्योंकि व्यवस्था के विपरीत नही चल सकते। यदि चलोगे तो तुम्हें भी मेरी तरह मार दिया जाएगा। नाटक में बहुत से ऐसे प्रश्न हैं, जिनमें एक शिक्षक स्वयं ही उलझ कर रह जाता है। ठीक वैसे ही जब युद्ध भूमि में द्रोण ने युद्धिष्ठर से पूछा था कि कौन मारा गया.. अश्वथामा नाम का हाथी या पुत्र.। विमलेंदु के अंतिम वाक्य से नाटक खत्म होता है कि तु द्रोणाचार्य है। व्यवस्था और कोड़ो से पिटा हुआ द्रोणाचार्य, इतिहास की धार में लकड़ी के ठूंड की तरह बहता हुआ, वर्तमान के कगार से लगा हुआ, सड़ा गला द्रोणाचार्य। व्यवस्था के लाइटहाउस से अपनी दिशा मांगनेवाला टूटे जहाज सा द्रोणाचार्य।

पात्र

अरविंद विनय

लीला सीमा

यदू सूरज

विमलेंदू अनिल

प्रेसिडेंट जसवीर

प्रिंसिपल अंकित

चंदू चमन

अनुराधा वदंना

निर्देशिक दक्षा

प्रकाश व्यवस्था रूपेश

सहयोग मनीष, अयाज

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