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    असुविधाओं के अभाव में पहले भी बेटी खो चुकी है कमला

    By Edited By:
    Updated: Thu, 19 Jan 2017 01:01 AM (IST)

    सुभाष आहलुवालिया, नेरचौक अगर निजी अस्पताल के दरवाजे रात को नहीं खुलते तो शायद ही कमला का लाल बच पा

    असुविधाओं के अभाव में पहले भी बेटी खो चुकी है कमला

    सुभाष आहलुवालिया, नेरचौक

    अगर निजी अस्पताल के दरवाजे रात को नहीं खुलते तो शायद ही कमला का लाल बच पाता। मंडी जिले के सबसे बड़े अस्पताल प्रबंधन ने जब अपने हाथ खड़े कर दिए तो कमला किसी भी सूरत में हार मानने को तैयार नहीं थी। असुविधाओं के अभाव में वह पहले भी अपनी एक बेटी खो चुकी थी। इस बार किसी भी कीमत पर बेटा नहीं खोना चाहती थी। जेब में भले पैसा नहीं था, फिर भी कमला ने सरकारी सुविधा का मुंह ताकने के बजाय निजी अस्पताल में पहुंचना मुनासिब समझा। कहते हैं प्रसव के बाद महिला का दूसरा जन्म होता है। यही नहीं एक प्रस्तूता को एक महीने बाद ही घर के बाहर निकाला जाता है, लेकिन सराज क्षेत्र में घाट पंचायत के पाली गांव की कमला ने प्रसव वेदना की परवाह किए बिना बर्फ में 23 किलोमीटर पैदल चल अस्पताल पहुंची।

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    एक तरफ प्रदेश सरकार जनता को स्वास्थ्य सुविधाएं देने के वादे करती नहीं थकती है, दूसरी ओर जिला के सबसे बड़े जोनल अस्पताल में मूलभुत सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही हैं। गाड़ागुशैणी क्षेत्र के पाली गांव से 23 किलोमीटर पैदल चलकर अपने बच्चों की ¨जदगी को बचाने की उम्मीद में आई कमला ने कहा, सोचा था कि अस्पताल में पहुंचने पर उसके बच्चों को स्वास्थ्य लाभ मिल पाएगा, लेकिन यहां पर निराशा मिली। कमला ने बताया कि नौ दिन पहले उसके जुड़वां बेटा-बेटी पैदा हुए। बच्चे न तो दूध पी रहे थे और न ही सांस सही ढंग से ले पा रहे थे। अस्पताल जाने के लिए मौसम व बर्फ बाधा बन खड़े थे। बच्चों की सलामती के लिए अपनी जान की परवाह किए बिना ही अस्पताल की ओर निकल गए। चार से पांच फुट बर्फ को पार कर बंजार तक पहुंचना चुनौती से कम नहीं था। जब वह मंडी अस्पताल पहुंचे तो चिकित्सकों ने बच्चों को दाखिल कर दिया और टेस्ट करने के उपरांत कहा कि यहां हम इसका इलाज नहीं कर सकते और आपको चंडीगढ़ या शिमला जाना पडे़गा। बच्चों की हालत को देखते हुए निजी अस्पताल पहुंचे। कमला देवी का पति बेली राम खेतीबाड़ी करता है और कमाई का कोई साधन नहीं है।

    कमला देवी व परिजनों ने आरोप लगाया कि प्रदेश सरकार मूलभूत सुविधाएं नहीं दे पा रही है। हम गरीब परिवार से संबंध रखते हैं और हम चंडीगढ़ का खर्च नहीं उठा सकते। बेली राम ने कहा कि अगर निजी अस्पताल के दरवाजे न खुले होते तो हमारे बच्चे आज ¨जदा नहीं होते। कमला देवी रुआंसे गले से कहती है कि मेरी एक बेटी प्रिया की भी सुविधाओं के अभाव से मौत हो चुकी है। घर के बाहर गिर गई थी। चोट गहरी होने के कारण उसे चंडीगढ़ भेज दिया था, वहां पहुंचने के बाद कुछ समय बाद उसकी मौत हो गई। निजी अस्पताल में बच्चों की हालत में अब सुधार हो रहा है।