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    कारगिल युद्ध में हिमाचल के दो जवानों को मिला था परमवीर चक्र

    By Neeraj Kumar AzadEdited By:
    Updated: Tue, 26 Jul 2016 02:01 PM (IST)

    कारगिल युद्ध में हिमाचल प्रदेश के ही दो जवानों को सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से भी नवाजा गया था। यह सम्मान जिला कांगड़ा के कै. विक्रम बतरा को मरणोपरांत प्रदान किया गया था।

    पालमपुर (मुनीष दीक्षित) : कारगिल युद्ध में हिमाचल प्रदेश से 52 जांबाजों ने देश की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानी दी थी। इस युद्ध में हिमाचल के कई सैनिक घायल भी हुए थे लेकिन हिमाचली शूरवीरों ने देश में घुसे दुश्मनों को भारतीय सेना के अन्य जवानों के साथ मुहंतोड़ जबाव दिया था। इस युद्ध में हिमाचल प्रदेश के ही दो जवानों को सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से भी नवाजा गया था। यह सम्मान जिला कांगड़ा के कै. विक्रम बतरा को मरणोपरांत प्रदान किया गया था जबकि बिलासपुर जिले के राइफलमैन संजय कुमार ने खुद यह सम्मान प्राप्त किया था।

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    विक्रम बतरा ने कहा था ये दिल मांगें मोर
    13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर तैनात विक्रम बतरा को उनकी टीम के साथ पहली जून 1999 को कारगिल युद्ध के लिए भेजा गया। हम्प व रॉकी स्थानों को जीतने के बाद उसी समय विक्रम को कैप्टन बना दिया गया। इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने की जिम्मा भी कैप्टन विक्रम बतरा को दिया गया। बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बतरा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को अपने कब्जे में ले लिया। विक्रम बतरा ने जब इस चोटी से रेडियो के जरिए अपना विजय उद्घोष 'यह दिल मांगे मोरÓ कहा तो सेना ही नहीं बल्कि पूरे भारत में उनका नाम छा गया। इसी दौरान विक्रम के कोड नाम शेरशाह के साथ ही उन्हे ं'कारगिल का शेरÓ की भी संज्ञा दे दी गई। अगले दिन चोटी 5140 में भारतीय झंडे के साथ विक्रम बतरा और उनकी टीम का फोटो मीडिया में आया तो हर कोई उनका दीवाना हो उठा। इसके बाद सेना ने चोटी 4875 को भी कब्जे में लेने का अभियान शुरू कर दिया। इसकी भी बागडोर विक्रम को सौंपी गई। उन्होंने जान की परवाह न करते हुए लेफ्टिनेंट अनुज नैयर के साथ कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा। इसी दौरान एक अन्य लेफ्टिनेंट नवीन घायल हो गए। उन्हें बचाने के लिए विक्रम बंकर से बाहर आ गए। इस दौरान एक सूबेदार ने कहा,'नहीं साहब आप नहीं मैं जाता हूं।Ó इस पर विक्रम ने उत्तर दिया, 'तू बीबी-बच्चों वाला है, पीछे हट।Ó घायल नवीन को बचाते समय दुश्मन की एक गोली विक्रम की छाती में लग गई और कुछ देर बाद विक्रम ने 'जय माता कीÓ कहकर अंतिम सांस ली।
    विक्रम बतरा के शहीद होने के बाद उनकी टुकड़ी के सैनिक इतने क्रोध में आए कि उन्होंने दुश्मन की गोलियों की परवाह न करते हुए उन्हें चोटी 4875 से परास्त कर चोटी को फतह कर लिया। इस अदम्य साहस के लिए कैप्टन विक्रम बतरा को 15 अगस्त 1999 को परमवीर चक्र के सम्मान से नवाजा गया जो उनके पिता जीएल बतरा ने प्राप्त किया।

    संजय ने दुश्मनों की राइफल से ही भुन दिए थे दुश्मन
    हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले परमवीर चक्र विजेता संजय कुमार चार व पांच जुलाई को कारगिल में मस्को वैली प्वाइंट 4875 पर फ्लैट टॉप पर 11 साथियों के साथ तैनात थे। यहां दुश्मन उपर पहाड़ी से हमला कर रहा था। इस टीम में 11 साथियों में से दो शहीद हो चुके थे जबकि आठ गंभीर रूप से घायल थे। संजय कुमार भी अपनी राइफल के साथ दुश्मनों का कड़ा मुकाबला कर रहे थे लेकिन एक समय ऐसा आया कि संजय कुमार की राइफल में गोलियां खत्म हो गई। इस बीच संजय कुमार को भी तीन गोलियां लगी, इनमें दो उनकी टांगों में और एक गोली पीठ में लगी। संजय कुमार घायल हो चुके थे। अपनी जान की परवाह किए बिना 13 जेके राइफल्स का यह जवान दुश्मनों के बंकर में खुद घुसकर हाथों से ही भिड़ गया और उनकी ही राइफल छीनकर मौके पर ही तीन दुश्मनों को मार गिराया। इसके बाद यह टीम तुरंत दूसरे मुख्य बंकर की तरफ बढ़ी और वहां मौजूद दुश्मन को भी मारकर इस स्थान पर अपना कब्जा कर लिया। यह चोटी बेहद अहम थी। इस बहादुरी के लिए संजय कुमार को परमवीर चक्र से नवाजा गया। संजय कुमार इस समय नायब सूबेदार के रैंक पर कार्यरत है।