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    डॉक्टरों को मिले ब्रांडेड और जेनरिक दवाएं लिखने का अधिकार

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 15 May 2017 10:19 PM (IST)

    जागरण संवाददाता, नगरोटा बगवां : हिमाचल प्रदेश मेडिकल रिप्रजेंटेटिव एसोसिएशन के प्रदेश सचिव नवीन वर्म ...और पढ़ें

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    डॉक्टरों को मिले ब्रांडेड और जेनरिक दवाएं लिखने का अधिकार

    जागरण संवाददाता, नगरोटा बगवां : हिमाचल प्रदेश मेडिकल रिप्रजेंटेटिव एसोसिएशन के प्रदेश सचिव नवीन वर्मा, संयुक्त सचिव अशोक वर्मा, धर्मशाला इकाई के सचिव सुमित नाग, उपाध्यक्ष राजीव कपूर, कोषाध्यक्ष रवि शर्मा, अमित शर्मा, समेश दीवान, केसी कौंडल व सर्वजीत जंबाल ने नगरोटा बगवां में कहा कि ब्रांडेड दवाएं गुणवत्ता की वजह से मरीजों के लिए लाभकारी होती हैं। डॉक्टरों को ब्रांडेड व जेनरिक दवाएं लिखने का अधिकार होना चाहिए। साथ ही यह अधिकार मरीज का भी होना चाहिए कि वह ब्रांडेड दवा खाना चाहता है या जेनरिक। मेडिकल रिप्रजेंटेटिव एसोसिएशन के पदाधिकारी पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।

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    उन्होंने कहा एसोसिएशन जेनरिक दवाओं के विरुद्ध नहीं है लेकिन यदि डॉक्टर को केवल जेनरिक दवाएं लिखने का अधिकार ही होगा तो मरीज को दवा देने का अधिकार डॉक्टर से हटकर केमिस्ट का हो जाएगा। कहा कि केमिस्ट की हमेशा यही दिलचस्पी रहेगी कि वह दवा देगा जिसमें उसे मुनाफा हो। उन्होंने कहा कि एसोसिएशन वर्षो से सरकार से आग्रह कर रही है कि दवाओं के दाम कम और समान किए जाएं ताकि डॉक्टर पर जो महंगी दवा लिखने का आरोप लगता है वह न लगे। दवाओं पर एक्साइज ड्यूटी उत्पादन कीमत पर लगे न कि एमआरपी पर। उन्होंने कहा कि अस्पतालों में ज्यादा से ज्यादा मुफ्त जेनरिक दवाएं उपलब्ध करवाई जाएं तथा इन्हें निजी कंपनियों से खरीदने की बजाए केवल भारत की चार बड़ी सरकारी कंपनियों से बनाया व खरीदा जाए। कहा कि भारत में केमिस्ट की दुकानों पर दो तरह की दवाएं उपलब्ध हैं। एक ब्रांडेड तो दूसरी जेनरिक हैं। दोनों का एमआरपी लगभग समान होता है तथा कोई भी यह नहीं बता सकता कि दोनों में क्या अंतर होता है। यह केवल दवाएं बेचने वाला केमिस्ट ही जानता है। ब्रांडेड दवाओं में विक्रेता को 10 से 15 प्रतिशत मुनाफा मिलता है तो जेनरिक में 50 से 70 फीसद तक। केंद्र सरकार के निर्देशानुसार डॉक्टर ब्रांडेड व जेनरिक दवाएं दोनों लिख सकता है लेकिन हिमाचल सरकार डॉक्टरों को केवल जेनरिक दवाएं लिखने के लिए बाधित कर रही है। मरीज को सस्ती दवाई मिले लेकिन गुणवता को नजरअंदाज करना भी मरीजों की सेहत के साथ खिलवाड़ है।