अब हाथ-पैर रहेंगे सलामत
ऑपरेशन कर रोगी के अंग-भंग की स्थिति रोगी के अलावा उसके पूरे परिवार और समाज के लिए भी कष्टकारी होती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि अंग-भंग हो जाने से निजी, आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर प्रतिकूल भाव पड़ता है, लेकिन अंग रक्षण शल्य-क्रिया (लिम्ब सैल्वज सर्जरी) से अंग-भंग (एम्प्यूटेशन) स्
ऑपरेशन कर रोगी के अंग-भंग की स्थिति रोगी के अलावा उसके पूरे परिवार और समाज के लिए भी कष्टकारी होती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि अंग-भंग हो जाने से निजी, आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर प्रतिकूल भाव पड़ता है, लेकिन अंग रक्षण शल्य-क्रिया (लिम्ब सैल्वज सर्जरी) से अंग-भंग (एम्प्यूटेशन) से बचा जा सकता है। गौरतलब है कि इस सर्जरी के जरिये किन्हीं कारणों से खासकर हाथ-पैरों के कटने या इनके अंग-भंग होने की नौबत को टाला जा सकता है।
फर्क तब और अब में
आधुनिक समय में चिकित्सा के क्षेत्र में हुई प्रगति और लिम्ब सैल्वज सर्जरी के प्रचलन में आने के कारण अंग-भंग से बचा जा सकता है। मुख्य रूप से कैंसर हो जाने पर लिम्ब सैल्वज सर्जरी अत्यधिक उपयोगी है। इसके द्वारा हड्डी और सॉफ्ट टिश्यूज में फैली कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को हटाने के साथ ही अंग को विच्छेदित होने और इस प्रकार पीड़ित व्यक्ति को विकलांगता से बचाया जा सकता है। इसके अलावा सैल्वज सर्जरी की तकनीक का प्रयोग गंभीर रूप से कमजोर हो चुकी हड्डियों के पुनर्निर्माण, गठिया जैसे रोगों और मधुमेह के कारण होने वाले अंग भंग आदि को टालने के लिए भी किया जा रहा है।
कैंसर और सर्जरी का स्वरूप
शरीर में कैंसर कहीं भी हो, जब यह हाथों या पैरों को ग्रसित करने लगता है, हड्डियां व कोमल टिश्यूज- नियोप्लाच्म-जब इससे ग्रसित होने लगते हैं, तब अंग- विच्छेदन या अंग-भंग करना ही उचित समझा जाता था, पर अब ऐसा नहीं है। अत्याधुनिक तकनीक लिम्ब सैल्वज सर्जरी के जरिये रोगग्रस्त हाथों या पैरों को बचाना संभव है।
जांचें
लिम्ब सैल्वज सर्जरी से पूर्व सबसे पहले सी. टी. स्कैन, एम.आर.आई., बोन स्कैन और पेट (पी ई टी) स्कैन जांचें करायींजाती हैं। इन जांचों से पता चलता है कि कैंसर शरीर में कहां तक फैला है और किन-किन अंगों को प्रभावित कर रहा है। इसके बाद यह देखा जाता है कि क्या ऑपरेशन के बगैर होने वाली विधियों-कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी से रोगी का इलाज संभव है या नहीं। जब यह तय हो जाता है कि कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी से रोगी के अंग का बचाव संभव नहीं है, तब लिम्ब सैल्वज सर्जरी की योजना बनाई जाती है।
सर्जरी के बाद
सर्जरी के बाद रोगी को अस्पताल में तब तक रखा जाता है, जब तक उसके घाव पूरी तरह भर न जाएं और शरीर संक्रमण से मुक्त न हो जाए। इस सर्जरी के बाद रोगियों को फिजियोथेरेपी और व्यायाम की जरूरत होती है ताकि रोगी पहले जैसी कार्यक्षमता प्राप्त कर सके।
परिणाम
लिम्ब सैल्वज सर्जरी द्वारा बचाए गए अंग हमेशा कृत्रिम अंगों की तुलना में बेहतर कार्य करते हैं। इस सर्जरी के जरिये प्राण रक्षा के साथ ही रोगी को विकलांगता से बचाया जाता है। वस्तुत:यह सर्जरी पीड़ित व्यक्ति पर विकलांगता के कारण पड़ने वाले मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभाव को भी दूर करती है।
(डॉ.एस.के.सिंह)