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ये है हरियाणा का बनवाला गांव, महिला सरपंच सुमन ने कर दिखाया कमाल, किसान की जमीन उगल रही 'सोना'

हरियाणा के डबवाली खंड का गांव बनवाला की जमीन कभी पानी के लिए तरसती थी लेकिन महिला सरपंच के प्रयासों से न सिर्फ किसानों को फायदा पहुंचा बल्कि पंचायत भी आत्मनिर्भर हो गई। आज गांव में पंचायत खुद विकास कार्य करवा रही है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Mon, 07 Dec 2020 02:44 PM (IST)Updated: Tue, 08 Dec 2020 09:42 PM (IST)
ये है हरियाणा का बनवाला गांव, महिला सरपंच सुमन ने कर दिखाया कमाल, किसान की जमीन उगल रही 'सोना'
गांव बनवाला में उगी कपास व महिला सरपंच सुमन। जागरण

डबवाली [डीडी गोयल]। हरियाणा की मनोहर लाल सरकार पार्ट-1 में तय हुआ था कि गांव की सरकार का मुखिया यानी सरपंच पढ़ा-लिखा होना चाहिए। साथ ही सरपंच प्रतिनिधि जैसे शब्द को समाप्त करते हुए महिला जनप्रतिनिधि को मूल अधिकार नवाजे गए। पांच साल पहले हुए ऐसे निर्णय आज धरातल पर विकास के रुप में नजर आ रहे हैं।

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आइए... रुख करते हैं डबवाली खंड के गांव बनवाला की ओर। बीए पास सरपंच सुमन देवी कासनियां ने जहां पंचायत को आत्मनिर्भर बना दिया तो वहीं गांव की सालों पुरानी समस्या को चुटकी में हल कर दिखाया। सीधे तौर पर प्रत्येक ग्रामीणों को फायदा पहुंचा तो वहीं ऐसे 40 परिवार लाभान्वित हुए, जिनके पास पंचायत की 108 एकड़ जमीन को जोतने के अलावा आमदनी का कोई दूसरा विकल्प नहीं था।

गांव में लगाया गया सबमर्सिबल। जागरण

वर्ष 2016 में पंचायत की कमान सुमन के हाथों में आई थी। अगले वर्ष 2017 में पंचायती भूमि का ठेका लेने वाले 40 परिवार आकर रो पड़े कि सालों से वे बीरान भूमि में ग्वार-बाजरी बिजांत करते आ रहे हैं। इतना पानी भी नहीं है कि इन फसलों को बचा सकें। सरपंच ने इस मुद्दे पर अपने पति प्रहलाद कासनियां समेत गांव के बुद्धिजीवियों से चर्चा की।

खेतों में लहलहाती कपास की फसल। जागरण

चर्चा के बाद आइडिया मिला कि गांव का भूमिगत जल मीठा है। इस पानी को खेती के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। साथ ही बोरवैल कर दिए जाएं तो बारिश के दिनों में ओवरफ्लो की समस्या से निजात पाई जा सकती है। फिर क्या था सुमन ने जोहड़ किनारे दो सबमर्सिबल लगाए।

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करीब 4000 फीट लंबी 14 इंंच आरसीसी पाइप लाइन बिछाकर पंचायती जमीन तक पानी पहुंचा दिया। किसानों की किस्मत खुल गई। पिछले तीन सालों से किसान गेहूं और कपास की खेती कर रहे हैं। 9 लाख रुपये ठेके पर छूटने वाली जमीन के बदले पंचायत के खाते में 30 लाख रुपये सालाना आने लगे। आत्मनिर्भर हुई पंचायत ने गांव के विकास के द्वार खोल दिए।

गांव में पंचायत द्वारा खुद बनवाई गई पक्की सड़क। जागरण

आत्मनिर्भरता ने खोला तरक्की का रास्ता

आत्मनिर्भरता की कसौटी पर पंचायत खरी उतरती प्रतीत हो रही है। खेत-पगडंडियां पक्की होती जा रही हैं। गांव बनवाला के तहत करीब 240 ढाणियां आती हैं। घुकांवाली, नुहियांवाली रोड पर 50-50 ढाणियां हैं, जबकि खारियां रोड पर सर्वाधिक करीब 120 ढाणियां स्थित हैं। इसके अलावा रत्ताखेड़ा, चक्कां, सादेवाला रोड पर 20 ढाणियां हैं। ढाणियों को जाने वाला रास्ता इंटरलॉक टाइल या फिर ईंटों से पक्का होने लगा है। अब ग्रामीणों को किसी कार्य के लिए कोई व्यक्ति सड़क पर नहीं बुलाता। न ही फसल की भरी ट्रॉली गड्ढे में फंसती है।

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बनवाला की सरपंच सुमन देवी कासनियां का कहना है कि गांव के बीचोंबीच बने जोहड़ पर दो सबमर्सिबल लगाने से पंचायत की आमदनी करीब साढ़े तीन गुणा बढ़ गई। वहीं, छह रिचार्ज बोरवैल लगने से जोहड़ ओवरफ्लो की समस्या का समाधान हो गया। साथ ही बरसात के दिनों में गांव में पानी निकासी की समस्या समाप्त हो गई। वहीं भूमिगत जल स्तर स्थाई बना रहने में सहयोग मिला। जो आमदनी हुई, उससे पंचायत ने ढाणियों या खेतों के रास्ते पक्के करवाकर विकास में मील का पत्थर स्थापित किया।

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