राष्ट्रीय युवा महोत्सव में दिखी विविधता भरी भारतीय संस्कृति की झलक
21वें राष्ट्रीय युवा महोत्सव में कथक के पुराने घरानों की गूंज रही। महोत्सर में उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार, चंडीगढ़, हरियाणा व पंजाब के प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं।
जेएनएन, रोहतक। माघ का प्रथम दिवस। मगर राष्ट्रीय युवा महोत्सव का दूसरा दिन। भारतीय शास्त्रीय नृत्य को परंपरा की थाप मिल रही थी तो भविष्य के घुंघरू मीठे बोल सुना रहे थे। कथक सम्राट स्व. गोपी किशन की दशकों पुरानी शिक्षा भविष्य के पांवों में बंधकर साकार होती दिखी जब आंध्र प्रदेश की नृत्यांगना लेख्या ने दुर्गा महिमा के माध्यम से नारी सशक्तीकरण की अलख जगाई।
लेख्या की प्रस्तुति में भाव, लास्य व परण की ऐसी त्रिवेणी बह रही थी मानो 23 बरस बाद खुद स्व. गोपी किशन जीवंत हो उठे हों। भविष्य की कथक हस्ती लेख्या के अनुसार, उन्होंने अपने पिता हेमंत कुमार से इस हिंदुस्तानी शास्त्रीय नृत्य की बारीकियां सीखी। उनके पिता ने अपने पिता परमानंद पिल्लै से दीक्षा ग्रहण की और परमानंद पिल्लै ने पद्मविभूषण गोपी किशन से। इस तरह से उनकी तीन पीढिय़ां कथक को समर्पित हैं।
इसके तत्काल बाद एकबार फिर नृत्य-संगीत के सुधीजनों की संवेदनाओं को संबल मिला। इस बार बारी थी पद्मविभूषण पंडित बिरजू महाराज के शिष्य की। अद्भुत, अप्रतिम भाव-भंगिमाओं का मिश्रण लेकर आए थे त्रिपुरा के डॉ. देव ज्योति। राम व कृष्ण के किरदार को मंच पर कथक में उतारा तो हर कंठ से वाह-वाह के बोल फूट पड़े। वह द्रौपदी चीर हरण की परंपरागत कथा पर वह नारी की दशा का चित्रण कर रहे थे।
डॉ. देव का कहना था कि गुरुजी बिरजू महाराज की शिक्षा को देशभर के युवाओं के बीच प्रस्तुत करना चुनौती भरा रहा। अत्यंत ही पिछड़ा प्रदेश है त्रिपुरा। हालांकि वहां से प्रतिनिधित्व रोमांचित भी करता है। उधर, कर्नाटक से आई रूपा रङ्क्षवद्रन भी जयपुर घराने की परंपरा मंच पर उतार रही थीं। नमामीशमिशान निर्वाणरूपं के बोल पर उनके पैरों की थिरकन देखते ही बनती थी। वहीं, शनिवार को राष्ट्रीय युवा महोत्सव की शुरुआत केरल के लोकनृत्य से हुई।
21 प्रांतों के कलाकारों ने प्रस्तुति
महोत्सव में दी जाने वाली प्रस्तुतियों में देशभर के 21 प्रांतों के प्रतिनिधियों का योगदान रहा। उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार, चंडीगढ़, हरियाणा व पंजाब के प्रतिभागियों की कथक प्रस्तुतियों ने अहसास कराया कि वाकई परंपरा की थाप पर भविष्य के घुंघरू यूं ही झंकृत होते रहेंगे।
यह भी जानें
लास्य वह नृत्य कहलाता है, जिसमें कोमल अंग व भाव भंगिमाओं के द्वारा मधुर भावों का प्रदर्शन किया जाता है जो शृंगार आदि कोमल रसों को उद्दीप्त करनेवाला होता है। इसमें गायन तथा वादन दोनों का योग रहता है।
परण : परण शास्त्रीय संगीत की एक नृत्य शैली है। इस शैली में सरस्वती वंदना सरस्वती परण, मेघ परण, बाज-बहेरी परण, दुर्गा परण, छुटकी पराण आदि मुख्य परण हैं।
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