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    रियो नहीं गया तो फिर छोड़ दूंगा दौड़ना : धर्मबीर

    By Edited By:
    Updated: Fri, 12 Aug 2016 01:00 AM (IST)

    ओपी वशिष्ठ, रोहतक : गांव में नहर की पटरी पर दौड़कर उड़न सिख मिल्खा ¨सह का रिकार्ड तोड़ने वाले धावक ध

    ओपी वशिष्ठ, रोहतक :

    गांव में नहर की पटरी पर दौड़कर उड़न सिख मिल्खा ¨सह का रिकार्ड तोड़ने वाले धावक धर्मबीर का सपना ओलंपिक में पदक जीतने का था। सपने को साकार करने के लिए रियो ओलंपिक के लिए क्वालिफाई भी कर लिया। ऐन वक्त पर डोप टेस्ट पॉजिटिव आया और उसकी उम्मीदों को एक गहरा झटका लगा। हालांकि अभी भी धर्मबीर को उम्मीद है कि वह रियो जाएगा और देश के लिए पदक जीतेगा। धर्मबीर का कहना है कि अगर रियो नहीं गया तो फिर वापस गांव जाकर खेती-बाड़ी करेगा।

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    जिला के गांव अजायब में छोटे से किसान परिवार में जन्मे धर्मबीर नैन स्कूली स्तर के खेलों में ऊंची कूद का एथलीट था, लेकिन धीरे- धीरे दौड़ना शुरू किया और नहर की पटरी पर दौड़कर एक बेहतर धावक बन गया। धर्मबीर का सपना था कि वो देश के लिए ओलंपिक में पदक जीते। ओलंपिक में पदक जीतने की ललक ने धर्मबीर को कभी कमजोर नहीं होने दिया। हालांकि घर की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वो धर्मबीर की महंगी डाइट का खर्च वहन कर सके। गांव में छोटी-मोटी खेती ही परिवार की आमदनी का जरिया है। एक से बढ़कर एक मुकाम हासिल करने के बाद धर्मबीर ने 37 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद ओलंपिक में 200 मीटर दौड़ स्पर्धा में भारत को प्रतिनिधित्व कराया।लेकिन रियो रवाना होने से एक दिन पहले नाडा ने धर्मबीर का डोप टेस्ट पॉजिटिव बताकर उसका हौसला ही तोड़ दिया। अब धर्मबीर को रियो रवाना होने के लिए शुक्रवार को नाडा की चार सदस्यीय कमेटी के निर्णय पर एक उम्मीद है। अगर कमेटी ने रियो जाने का टिकट नहीं दिलाया तो धर्मबीर का करियर पूरी तरह से तबाह हो जाएगा।

    ओलंपिक में जाने का मेरे पास आखिरी अवसर

    धर्मबीर ने दैनिक जागरण के समक्ष कहा कि ओलंपिक में उनके लिए यह अंतिम अवसर है। अगर इस बार नहीं गया तो फिर भविष्य में उनका ओलंपिक में जाना संभव नहीं होगा। उनकी उम्र और टूटे हौसले से उभर पाना आसान नहीं होगा। उन्होंने कहा कि अगर रियो नहीं गया तो दौड़ छोड़कर गांव में खेती-बाड़ी करूंगा। गांव में रहूंगा तो बच्चों की बेहतर परवरिश और मां-बाप की सेवा भी कर सकूंगा। ओलंपिक की तैयारियों के चलते लंबे समय से परिवार को भी नहीं संभाल पा रहा हूं। मैं तो एक बार पूरी तरह से टूट ही गया था, लेकिन जिला परिषद के चेयरमैन बलराज कुंडू ने दोबारा से उम्मीद की किरण जगाने का काम किया है।