हाई कोर्ट ने कहा, हरियाणा को कलंकित करने वालों को बचा रही सरकार
हाई कोर्ट ने जाट आंदोलन में हिंसा के लिए दर्ज 137 केसों को हरियाणा सरकार द्वारा वापस लेने पर नाराजगी जताई है। कोर्ट ने कहा कि सरकार हरियाणा को कलंकित करनेवालों को बचाना चाहती है।
जेएनएन, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने 2016 में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान दर्ज 137 केस वापस लेने की बात पर हरियाणा सरकार को कड़ी फटकार लगाई। हाई कोर्ट ने कहा कि हरियाणा को कलंक लगाने वालों को हम दंडित करना चाहते हैं और सरकार उन्हें बचाने का प्रयास कर रही है। कोर्ट ने कहा कि कहीं कोई सेटलमेंट करके तो यह फैसला नहीं लिया जा रहा। इस टिप्पणी के साथ ही हाई कोर्ट ने वापस लिए जा रहे केसों से जुड़े रिकार्ड तलब कर लिया।
जाट आंदोलन में हिंसा के 137 केस वापस लेने पर हाई कोर्ट बोला- कहीं सेटलमेंट तो नहीं हो गया
जाट आरक्षण आंदोलन में हिंसा के मामले की सुनवाई शुरू होते ही हरियाणा सरकार ने हाई कोर्ट के सामने एक सूची रखते हुए बताया कि कुछ मामलों में दर्ज 137 एफआइआर को वापस लेने का फैसला किया है। यह फैसला शांति और भाईचारा बनाए रखने के लिए किया गया है। सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला देते हुए कहा गया कि जब इस प्रकार की बड़े स्तर पर हिंसा व आगजनी होती है तो सरकार पॉलिसी के तहत केस वापस ले सकती है।
हाईकोर्ट ने पूछा, जब कानून को हाथ में लिया जा रहा था तो पुलिस और फौज को भागना क्यों पड़ रहा था
इस पर हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि हमें पॉलिसी नहीं कानून की पालना चाहिए। हाई कोर्ट को बताया गया कि डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी की संतुष्टि के बाद ही इन केस को ट्रायल कोर्ट के सामने रखेंगे और आगे का निर्णय ट्रायल कोर्ट का होगा।
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इस दौरान कोर्ट मित्र अनुपम गुप्ता ने कहा कि यह सरकार की सोची समझी नीति है जिसके तहत वह अभी 137 केस वापस लेने की सूची लेकर आई है। आगे भी ऐसी सूचियां आती रहेंगी और सभी को बरी कर दिया जाएगा। इस पर हाई कोर्ट ने अगली सुनवाई पर वापस लिए जाने वाले सभी केसों का रिकॉर्ड पेश करने के आदेश दे दिए।
निचली कोर्ट पर दबाव बनाने का हो सकता है प्रयास
अनुपम गुप्ता ने कहा कि केस वापस लेने के बाद निचली कोर्ट के समक्ष यह मामले भेजे जाएंगे। ऐसे में उन पर भी दबाव बनाने का प्रयास किया जा सकता है। दूसरी तरफ, पब्लिक प्रोसीक्यूटर की संतुष्टि के बाद ही इन्हें दाखिल किया जा सकता है और पब्लिक प्रोसीक्यूटर सरकार अपने मनपसंद का चुनेगी जो इसे मंजूरी दे दे। इसलिए निचली अदालत इन मामलों पर यदि सरकार के हक में फैसला देती है तो उसे तुरंत लागू न किया जाए और पहले हाईकोर्ट के समक्ष रखा जाए।
मूनक नहर मामले में सीबीआइ को दिया तीन माह का समय
हाई कोर्ट में कहा गया कि जाट आंदोलन के दौरान दिल्ली का पानी बंद करने के लिए मूनक नहर को नुकसान पहुंचाने के प्रयास मामले में सीबीआइ ने जांच आरंभ कर दी है। उन्हें अपनी रिपोर्ट तैयार कर सौंपने के लिए कम से कम तीन माह का समय दिया जाना चाहिए। हाई कोर्ट ने सीबीआइ की अपील को मंजूर करते हुए उसे तीन माह का समय दे दिया।
अनट्रेस मामलों की एसआइटी गठित करने पर दें जवाब
जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान दर्ज मामलों की जांच के दौरान उनकी अनट्रेस रिपोर्ट तैयार करने पर हाई कोर्ट ने कड़ा संज्ञान लेते हुए सरकार को फटकार लगाई। हाई कोर्ट ने इन मामलों की जांच के लिए एसआइटी गठित करने पर हरियाणा सरकार से अगली सुनवाई तक जवाब तलब किया है। मामले की अगली सुनवाई 17 अगस्त को होगी।
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