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    कुरुक्षेत्र विवि ने शोध चोरी मामले में प्रोफेसर को दी जबरन सेवानिवृत्ति

    By Sunil Kumar JhaEdited By:
    Updated: Sat, 15 Oct 2016 08:33 PM (IST)

    कुरुक्षेत्र विश्‍वविद्यालय ने शोधपत्र चाेरी मामले में एक एसोसिएट प्रोफेसर केा जबरन सेवानिवृति दे दी है। एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. विरेंद्र पूनिया को शोध चोरी का दोषी है।

    जेएनएन, कुरुक्षेत्र। शोधपत्र चाेरी मामले ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की कार्यकारिणी परिषद ने एक एसोसिएट प्रोफेसर पर बड़ी कार्रवाई की है। कार्यकारिणी ने कामर्स विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. विरेंद्र पूनिया को शोध चोरी का दोषी मानते हुए जबरन सेवानिवृत्ति देने का निर्णय सुना दिया है। इससे पहले परिषद की ओर से बैठक में डॉ. पूनिया को अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया, लेकिपन परिषद उनके जवाब से संतुष्ट नहीं हुई।

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    इसके साथ ही परिषद की ओर से 18 सितंबर 2014 को हुई बैठक में सुरक्षित रखे गए फैसले को मान लिया गया। वहीं डॉ. विरेंद्र पूनिया का कहना था कि उन्हें साजिश के तहत फंसाया गया है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कार्यकारिणी परिषद की की बैठक शुक्रवार को आयोजित की गई।

    बैठक में तीन बड़े मामले शामिल किए गए थे। एक मामला डॉ. विरेंद्र पूनिया पर शोध चोरी का था। इस मामले में कार्रवाई पर विचार हुआ। बैैठक के दौरान डॉ. पूनिया ने उपस्थित होकर अपना पक्ष रखा। दूसरा मामला यमुनानगरके डीएवी महिला महाविद्यालय की प्राचार्य को दो वर्ष की एक्टेंशन देने का था। इस मामले में परिषद की ओर से सरकार के फैसले को टर्न डाउन किया गया है। वहीं अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र के मामले में फंसे डॉ. आबिद अली को एक माह का समय दिया गया है।

    डॉ. पूनिया के खिलाफ यह था आरोप

    कुवि कार्यकारिणी परिषद में वर्ष 2007 में जीएनडीयू के प्रोफेसर एएन सिद्धू ने शिकायत दर्ज कराई थी कि कॉमर्स विभाग के शिक्षक डॉ. विरेंद्र पूनिया व उनके दो शिष्यों ने उनकी शिष्या ज्योति की पीएचडी थिसिज से शोध कार्य को चुराकर शोध पत्र प्रस्तुत किया था। प्रो. सिद्धू ने कुवि को डाक से शिकायत की थी।

    इस मामले में कार्यकारिणी परिषद ने वर्ष 2014 में ही फैसला सुरक्षित रखा था। कुवि प्रवक्ता डॉ. तेजेंद्र शर्मा ने बताया कि परिषद ने वर्ष 2014 में हुई बैठक के फैसले को सुरक्षित रखा था क्योंकि पर्सनल हियरिंग पेंडिंग थी।

    जानबूझकर फंसाया गया है : पूनिया

    डॉ. विरेंद्र पूनिया ने आरोप लगाया कि उन्हें साजिश के तहत फंसाया गया है। नियमों के अनुसार उन्हें चार्जशीट भेजी जानी थी। हरियाणा सिविल सर्विसिज के नियमों के अनुसार चार्जशीट के बाद जांच पूरी करनी थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मामले मे शिकायतकर्ता और जिसका रिसर्च पेपर था वह एक बार भी परिषद के सामने नहीं आए। वहीं सबसे बड़ी बात है कि जिन दो लोगों के नाम उनके साथ थे उनके खिलाफ भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।

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