सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल, यहां मुस्लिम करते हैं गोसेवा
मेवात के हनीफ गोरक्षा के साथ-साथ सांप्रदायिक सद्भावना व भाईचारे का संदेश दे रहे हैं। घायल गाय को देख वे उसकी सेवा में जुट जाते हैं।
झज्जर [मुकेश शर्मा]। एक ओर जहां पूरे देश में बीफ या गोमांस को लेकर हो-हल्ला हो रहा है और समुदायों के लोग आपस में टकराने से बाज नहीं आते वहीं ऐसे भी लोग हैं जो धर्म से ऊपर उठ सद्भावना और मानवता का संदेश दे औरों के लिए भी नजीर पेश कर रहे हैं। अब तावड़ू के निजामपुर निवासी हनीफ को ही लीजिए। वे न केवल खुद गाय पालते हैं, बल्कि गोरक्षा का संदेश देने के लिए सैकड़ों कोसों दूर तक जाने से भी गुरेज नहीं करते।
घायल गाय को देख वे द्रवित हो उठते हैं और उसकी सेवा में जुट जाते हैं। शनिवार को वे झज्जर में गोरक्षकों द्वारा किए गए प्रदर्शन में भी शामिल हुए। उनके हाथ में पकड़ी तख्ती भी संदेश दे रही थी - जो गाय का सखा नहीं, वह किसी का सगा नहीं।
हनीफ कहते हैं कि वह मुस्लिम धर्म से जरूर ताल्लुक रखते हैं, मगर कोई धर्म ऐसा नहीं जो यह कहता हो कि किसी के दिल को ठेस पहुंचाओ। जब गाय को लेकर हिंदू धर्म के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचती है तो फिर ऐसा काम ही क्यों किया जाए? उसे क्यों मारा जाए और क्यों गोमांस खाया जाए।
वे कहते हैं कि उनके गांव में ङ्क्षहदुओं के घर भी हैं और मुसलमानों के भी। कैसी भी स्थिति आई लेकिन सामाजिक सद्भाव कभी नहीं बिगड़ा। उनके यहां मुसलमानों ने भी गायें पाल रखी हैं। उन्होंने खुद भी गायें पाली हुई हैं। एक समय का दूध वह दूधिए को बेचते हैं। हनीफ ने बताया कि उनके दोस्त भी गोरक्षा में जुटे हैं।
ऐसे जुड़े गो सेवा से
हनीफ का कहना है कि 2013 में झज्जर की दादरी तोए गोकुलधाम गो सेवा महातीर्थ के संचालक सुनील निमाणा ने मेवात में एक रोड निर्माण का ठेका लिया हुआ था। वे भी उनके पास कार्य करते थे। सुनील ने उन्हें बताया था कि अगर कोई गाय उन्हें बीमार या घायल दिखाई दे तो उन्हें बताएं ताकि उसका इलाज हो सके। इसके बाद से वह गोशाला से जुड़े हुए हैं। अब तक वह करीब 20 गाय इलाज के लिए गोशाला भेज चुके हैं। छोटा-मोटा उपचार खुद भी कर देते हैं।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।