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    संस्कृत साहित्य, संस्कृति: दशा और दिशा विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 16 Sep 2017 07:07 PM (IST)

    जागरण संवाददाता, भिवानी : शनिवार को घंटाघर चौक स्थित आर्य समाज मंदिर सभागार में हरियाण

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    संस्कृत साहित्य, संस्कृति: दशा और दिशा विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित

    जागरण संवाददाता, भिवानी : शनिवार को घंटाघर चौक स्थित आर्य समाज मंदिर सभागार में हरियाणा में हरियाणा संस्कृत अकादमी पंचकुला एवं गूगनराम एजुकेशनल एंड सोशल वेलफेयर सोसायटी के तत्वावधान में 'संस्कृत साहित्य, संस्कृति: दशा और दिशा' विषय पर राष्ट्रीय एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आरम्भ प्रात: 8.30 बजे यज्ञ से प्रारम्भ हुआ। आगन्तुक विद्वानों का नाश्ता होने के बाद संगोष्ठी का कार्यक्रम 10.30 बजे हरियाणा संस्कृत साहित्य अकादमी के निदेशक सोमेश्वर दत्त शर्मा पहुंचे। उन्होंने अपने अध्यक्षीय व्याख्यान में कहा कि हरियाणा में संस्कृत का विस्तृत क्षेत्र रहा है। यहां प्राचीन काल से ही संस्कृत साहित्य पर बहुत काम हुआ है। महाभारत जैसे ग्रंथों की रचना का विषय हरियाणा कुरूक्षेत्र के जनपद से लिया गया है। हरियाणा में बहुत से गुरुकुल संस्कृत विषय पर अध्ययन अध्यापन हो रहा है। आर्य समाज का विस्तृत क्षेत्र भी यहीं भूमि रहा है। विमलेश आर्य ने वैदिक गणित के फार्मूले बताए। उन्होंने बताया कि वेदों में गणित विषय के सूत्र बड़े ही सरल और रोमांटिक दिए गए हैं। हमें आज तक नारी, शूद्र, दलित की आलोचना ही सुनने को मिलती है, जबकि हमारे ग्रंथों में कहीं भी ऐसी बात नहीं है। हमारे ग्रंथों में आदर्श सूक्तियां भरी पड़ी है जिन पर हमने शोध कार्य नहीं किया इसलिए उनकी आदर्शता व्याख्यामिता नहीं हो सकी है। सहदेव शास्त्री ने अपने उद्बोधन में बताया कि अभी तक हम उस स्तर तक नहीं पहुंच पाये हैं कि अपनी बात को सही रूप में बल सहित रख सके।

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    पंजाब विश्वविद्यालय के डॉ. भारतभूषण ने अपने विचार शैली में संस्कृत भाषा को वि‌र्श्व की सभी भाषाओं की जननी बताते हुए उसके महत्व पर प्रकाश डाला।

    इस कार्यक्रम में कई शोध छात्र-छात्राओं ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। पहुंचे हुए व्यक्तियों में डॉ. विजय लक्ष्मी, मीना गोंडे भोपाल से कृष्णा आचार्य बीकानेर, डॉ. दिग्विजय आगरा से, शिवशरण ग्वालियर से, नवीन नन्दवाना उदयपुर (राज.), पूर्णिमा राय अमृतसर (पंजाब), चरखी दादरी, तोशाम, हिसार, रोहतक, पानीपत और सोनीपत से भी कई विद्वानों ने अपनी प्रस्तुति दी।