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काली मिर्च का इतना दिलचस्‍प रहा है इतिहास, कहा जाता था काला सोना, ऐसे होती है खेती

आपको लगता होगा कि ये छोटा-सा काला दाना क्या करता होगा, पर यकीन मानिए कि एक जमाने में ये काली मिर्च दुनियाभर में ताकत और पैसे का प्रतीक बनकर उभरी थी।

By Pratibha Kumari Edited By: Published: Wed, 01 Feb 2017 01:02 PM (IST)Updated: Wed, 01 Feb 2017 06:47 PM (IST)
काली मिर्च का इतना दिलचस्‍प रहा है इतिहास, कहा जाता था काला सोना, ऐसे होती है खेती
काली मिर्च का इतना दिलचस्‍प रहा है इतिहास, कहा जाता था काला सोना, ऐसे होती है खेती

जिन मसालों का आज आसानी से अपनी रसोई में इस्तेमाल करते हैं, उनमें से हर एक की अपनी एक अलग कहानी है। इन कहानियों से अर्थतंत्र, संस्कृति, राजनीति और साम्राज्यों की ताकत की कहानियां भी जुड़ी हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर भारत के मसालों की ख्याति यूरोप तक नहीं फैली होती तो शायद 16वीं सदी में पुर्तगाली व्यापारी और जहाजी वास्को डिगामा भारत नहीं आया होता। उनके पीछे पीछे फ्रेंच और अंग्रेज भी नहीं आए होते। इसी में एक मसाला है काली मिर्च।

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आपको लगता होगा कि ये छोटा-सा काला दाना क्या करता होगा, पर यकीन मानिए कि एक जमाने में ये काली मिर्च दुनियाभर में ताकत और पैसे का प्रतीक बनकर उभरी थी। यूरोपीय इसे काला सोना भी कहते थे। आज भी दुनिया में सबसे ज्यादा काली मिर्च का उत्पादन हम करते हैं। केरल आज भी दुनिया का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां सबसे ज्यादा मसालों की खेती होती है और सबसे ज्यादा मसालों का व्यापार। काली मिर्च केवल रसोई का ही राजा नहीं है, बल्कि रोग प्रतिरोधक क्षमता से लेकर एयर प्यूरीफिकेशन के काम में इसका महत्व साबित हो चुका है। हमारे घुमंतू पूर्वज इसे भारत तक लेकर आए। केरल का गरम और नम वातावरण मसालों की खेती के लिए सैकड़ों सालों से इसकी पैदावार के लिए आदर्श बना रहा। मालाबार तट पर काली मिर्च की पैदावार अधिक होती है, यकीनन इसके बीज समुद्र के साथ बहते हुए यहां आए होंगे और जमीन के संपर्क और यहां की आबोहवा का साथ पाकर खूब फले-फूले।

हालांकि दुनिया यही मानती है कि काली मिर्च मूल रूप से भारत की ही देन है। केरल के पहाड़ी इलाकों में काली मिर्च के मध्यम दर्जे की पत्तियों वाले पेड़ बहुतायत से हैं। वहां लोग इसकी फार्मिंग का काम करते हैं। ये काम इतने बड़े पैमाने पर होता है कि गांव, शहरों और लाखों लोगों की जीविका और जीवन इससे चलती है। ऊंचे-ऊंचे पेड़ों पर ये पत्तियों के साथ हरे दानों के गुच्छे के रूप में लटकती रहती है। पेड़ पर चढ़कर लोग इन गुच्छों को तोड़ते हैं और फिर पैरों या मशीनों के जरिए इन छोटे हरे दानों को अलग किया जाता है। कड़ी धूप में इन्हें कई दिन सुखाने के बाद ये स्वाद भरे काले मिर्च के रूप में आ जाते हैं। जिन इलाकों में यह काम होता है, वहां आसपास काली मिर्च की खुशबू फैली होती है। यह एयरफ्रेशनर का काम भी करती है। वातावरण को शुद्ध रखती है। काली मिर्च और सफेद मिर्च एक ही पेड़ से और इन्हीं हरे दानों से ही प्रोसेस की जाती हैं।


काली मिर्च धूप में सूखने के कारण सूर्य की किरणों के साथ वातावरण की कई खूबियों को अपने अंदर सोख लेती है। आज भी केरल में सबसे ज्यादा विदेशी व्यापार काली मिर्च का ही होता है और इससे बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा कमाई जाती है। थाईलैंड और वियतनाम जैसे देश भी इसे बड़े पैमाने पर उगाने लगे हैं लेकिन आज भी जो बात भारतीय काली मिर्च में वह किसी और में नहीं। काली मिर्च की तलाश में अगर सबसे पहले वास्को डिगामा कालीकट तट पर पहुंचा। तो उसके पीछे-पीछे पुर्तगालियों का लावलश्कर भी यहां आया। उन्होंने कोचिन में किले और कालोनियां तैयार कराईं। यहां के व्यापार पर एकाधिकार करना चाहा। उसके बाद यहां यहूदी, चीनी, फ्रेंच और अंग्रेज भी आए। सब काली मिर्च यानी इस काले सोने के लिए दीवाने थे। क्योंकि यूरोप में इसकी खपत बड़े पैमाने पर थी। एक जमाने में काली मिर्च का चलन करेंसी की तरह भी था। प्राचीन काल से ही भारत के बड़े व्यापारियों तक ने काली मिर्च के व्यापार को हमेशा महत्व दिया।

रत्‍‌ना श्रीवास्तव


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