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तमिलनाडु का सुचिन्द्रम मंदिर

ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश को समर्पित अनेकों मंदिर हमारे देश में है। इनमें से कुछ मंदिर ऐसे है, जहां यह ईश-त्रिमूर्ति एकसाथ विद्यमान है। दक्षिण भारत में कन्याकुमारी के निकट सुचिन्द्रम नामक एक ऐसा पवित्र स्थान है, जहां इस त्रिमूर्ति की लिंग रूप में पूजा की जाती है।

By Edited By: Published: Fri, 31 Aug 2012 03:17 PM (IST)Updated: Fri, 31 Aug 2012 03:17 PM (IST)
तमिलनाडु का सुचिन्द्रम मंदिर

ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश को समर्पित अनेकों मंदिर हमारे देश में है। इनमें से कुछ मंदिर ऐसे है, जहां यह ईश-त्रिमूर्ति एकसाथ विद्यमान है। दक्षिण भारत में कन्याकुमारी के निकट सुचिन्द्रम नामक एक ऐसा पवित्र स्थान है, जहां इस त्रिमूर्ति की लिंग रूप में पूजा की जाती है।

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प्रचलित कथाएं

पौराणिक काल में इस स्थान पर ज्ञान अरण्य नामक सघन वन था। इसी ज्ञान अरण्य में महर्षि अत्री अपनी पत्नी अनुसूया के साथ रहते थे। अनुसूया महान पतिव्रता थी और पति की पूजा करती थीं। उन्हे एक ऐसी शक्ति प्राप्त थी कि वह किसी भी व्यक्ति का रूप परिवर्तित कर सकती थीं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पत्नियों को जब उनकी इस शक्ति केविषय में ज्ञात हुआ तो उन्होंने अपने पति से देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने को कहा। उस समय ऋषि अत्री हिमालय पर तप करने गए हुए थे। जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने साधुवेश में ऋषि के आश्रम पहुंचे तब अनुसूया स्नान कर रही थीं। तीनों ने उनसे उसी रूप में आकर भिक्षा देने को कहा। जहां ब्राह्मणों को भिक्षा दिए बिना लौटाना अधर्म था वहीं ऐसी अवस्था में परपुरुष के सामने आने से पतिव्रत धर्म भंग होता था। देवी को तो दोनों धर्मो का निर्वाह करना था। तब उन्होंने अपनी शक्ति के बल पर तीनों ब्राह्मणों को शिशु रूप में परिवर्तित कर दिया और उसी अवस्था में आकर भिक्षा प्रदान की। जब त्रिमूर्ति के शिशु रूप में परिवर्तित होने का ज्ञान उनकी पत्नियों को हुआ तो वे व्याकुल हो गई। उन्होंने आश्रम में आकर देवी से क्षमा मांगी। तब उन्होंने उन्हे प्रभावमुक्त किया लेकिन प्रतीक रूप में उन्हे आश्रम में रहने को कहा। उस समय त्रिमूर्ति ने अपने प्रतीक की स्थापना की, जिसके आधार पर ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा ऊपर शिव है।

एक अन्य कथा के अनुसार गौतम ऋषि के अभिशाप से मुक्ति पाने के लिए देवराज इंद्र ने यहीं तपस्या की और उष्ण घृत से स्नान कर उन्होंने स्वयं को पापमुक्त किया और अ‌र्द्धरात्रि को पूजा आरंभ की और पूजा संपन्न कर वे पवित्र हुए और देवलोक को प्रस्थान किया। तब से इस स्थान का नाम सुचिन्द्रम पड़ गया।

आस्था का प्रमुख केन्द्र

सुचिन्द्रम का स्थानुमलयन मंदिर आज त्रिमूर्ति के प्रति आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। मंदिर में दो ह़जार वर्ष पुराना एक वृक्ष है, जिसे तमिल भाषा में कोनायडी वृक्ष कहा जाता है। चमकदार पत्तियों वाले इस वृक्ष का तना खोखला है। इस खोखले भाग में ही त्रिमूर्ति स्थापित है। इस स्थान पर पहली बार मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में हुआ था। उस काल के शिलालेख आज भी यहां मौजूद हैं।

मंदिर की अनूठी स्थापत्य कला

17वीं शताब्दी में मंदिर को एक नया रूप प्रदान किया गया। मंदिर में ़करीब तीस पूजा स्थल है। इनमें से एक स्थान पर भगवान विष्णु की अष्टधातु प्रतिमा विराजमान है। मंदिर प्रवेश के दाई ओर सीता-राम की प्रतिमा स्थापित है। पास ही पवन पुत्र हनुमान की एक 18 फुट ऊंची प्रतिमा है। ऐसी मान्यता है कि इसी विशाल रूप में हनुमान अशोक वाटिका में सीता जी के सामने प्रकट हुए और उन्हे श्रीराम की मुद्रिका दिखाई थी। पास ही गणेश मंदिर है, जिसके सामने नवग्रह मंडप है। इस मंडप में नौ ग्रहों की प्रतिमाएं उत्कीर्ण की हुई हैं।

अलंगर मंडप में चार संगीतमय स्तंभ हैं। ये अनोखे स्तंभ एक ही चट्टान से बने हैं, लेकिन इनसे मृदंग, सितार, जलतरंग तथा तंबूरे की अलग-अलग ध्वनि गुंजित होती है। पहले पूजा-अर्चना के समय इन्हीं स्तंभों से संगीत उत्पन्न किया जाता था। मंदिर में नटराज मंडप भी है। मंदिर में 800 वर्ष पुरानी नंदी की विशाल प्रतिमा भी दर्शनीय है। द्वार पर दो द्वारपाल प्रतिमाएं है। मंदिर का गोपुरम 134 फुट ऊंचा है। यह सप्तसोपान गोपुरम मंदिर को अद्भुत भव्यता प्रदान करता है। इस पर बहुत-सी आकर्षक मूर्तियां उकेरी हुई है। मंदिर के निकट ही एक सुंदर सरोवर है। इसके मध्य में एक छोटा-सा मंडप बना है। सुचिन्द्रम कन्याकुमारी से मात्र 13 किमी. दूर है।

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