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फिल्‍म रिव्‍यू: सरदार गब्‍बर सिंह (2.5 स्‍टार)

यह अनाथ गब्बर की कहानी है। उसे 'शोले' फिल्म का गब्बर पसंद है, इसलिए उसने अपना नाम गब्बर रख लिया। वह निडर है। 'जो डर गया, समझो मर गया' उसका प्रिय संवाद और जीवन का आदर्श वाक्य है। एक पुलिस अधिकारी उसे पालता और पुलिस में नौकरी दिलवा देता है।

By Tilak RajEdited By: Published: Fri, 08 Apr 2016 07:49 AM (IST)Updated: Fri, 08 Apr 2016 08:26 AM (IST)

-अजय ब्रह्मात्मज

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प्रमुख कलाकार- पवन कल्याण, काजल अग्रवाल, शरद केलकर।

निर्देशक- केएस रवीन्द्र

संगीत निर्देशक- देवी श्री प्रसाद

तेलुगू के लोकप्रिय स्टार की पहली हिंदी फिल्म है 'सरदार गब्बर सिंह'। हिंदी दर्शक उनसे परिचित हैं, लेकिन हिंदी में उनकी डब फिल्में वे टीवी पर देखते रहे हैं। इस फिल्म की मेकिंग के दौरान पवन कल्याण और उनकी टीम को लगा कि यह हिंदी मिजाज की फिल्म है। इसे डब कर तेलुगू के साथ रिलीज किया जा सकता है।

हालीवुड में 'सुपर हीरो फिल्म' का चलन है। यह दक्षिण की प्रचलित शैली में बनी 'सुपर स्टार फिल्म' है, िजसकी नकल हिंदी में भी होने लगी है। खानत्रयी ने आगे-पीछे इसकी शुरुआत की।

यह अनाथ गब्बर की कहानी है। उसे 'शोले' फिल्म का गब्बर पसंद है, इसलिए उसने अपना नाम गब्बर रख लिया। वह निडर है। 'जो डर गया, समझो मर गया' उसका प्रिय संवाद और जीवन का आदर्श वाक्य है। एक पुलिस अधिकारी उसे पालता और पुलिस में नौकरी दिलवा देता है। ईमानदार, निडर और बहादुर सरदार गब्बर सिंह से अपराधी खौफ खाते हैं। उसका तबादला रतनपुर किया जाता है। वहां का एक ठेकेदार गरीब किसानों की जमीन हड़पने के साथ स्थानीय राजा की बेटी और संपत्ति पर भी नजर गड़ाए हुए है। गब्बर और ठेकेदार के बीच के संघर्ष और गब्बर की प्रेम कहानी की इस फिल्म में भरपूर नाच-गाने और प्रचुर एक्शन है।

पवन कल्याण एक्शन के लिए मशहूर हैं। हिंदी फिल्मों के दर्शक पहली बार उन्हें बड़े पर्दे पर देख सकेंगे। इन फिल्मों की खास शैली होती है। सुपर स्टार के अलावा किसी और किरदार को सिर्फ खानापूर्ति के लिए रखा जाता है। चूंकि फिल्म हिंदी में डब की गई है, इसलिए कई दृश्यों में लिप सिंक (बोले जा रहे अक्षरों के साथ होंठों का हिलना) की समस्या दिखती है। गानों में ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि वहीं डांस के झटकों पर नजरें अटकी रहती हैं। हिंदी में डब करने पर सादनबोर्ड और स्थानों के नाम हिंदी में लिखे गए हैं। उनकी शुद्धता पर पूरा ध्यान नहीं दिया गया है। लक्ष्मापुर, रतनपूर और सरस्वति विध्या मंदिर जैसी अशुद्धियां खटकती हैं। कई दृश्यों में तेलुगू के बोर्ड जस के तस हैं।

पवन कल्याण के लिए यह फिल्म देखी जा सकती है। ऐसी फिल्मों के दर्शक हिंदी में भी हैं। उन्हें यह फिल्म पसंद आएगी। हां, संभ्रांत और मल्टीप्लेक्स के दर्शकों को निराशा हो सकती है।

अवधि- 166 मिनट

स्टार- ढाई स्टार


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