फिल्म रिव्यू: मोहरे हैं गैंगस्टर और पुलिसकर्मी 'रईस' (साढे़ तीन स्टार)
‘रईस’ अपराधी और गैंगस्टर है, लेकिन वह नेकदिल और संस्कारी है। वह मां की बात याद रखता है कि धंधे से किसी का बुरा नहीं होना चाहिए।

-अजय ब्रह्मात्मज
कलाकार: शाह रूख़ ख़ान, माहिरा ख़ान (डेब्यू), नवाज़उद्दीन सिद्दीक़ी, मोहम्मद ज़ीशान अय्यूब, अतुल कुलकर्णी, शीबा चड्ढा, सनी लियोनी (लैला गाने में स्पेशल एपीयरेंस)।
निर्देशक: राहुल ढोलकिया
निर्माता: फरहान अख़्तर और रितेश सिधवानी
स्टार: ***1/2 (साढे़ तीन स्टार)
फ़िल्म के नायक शाह रुख खान हों और उस फिल्म के निर्देशक राहुल ढोलकिया तो हमारी यानी दर्शकों की अपेक्षाएं बढ़ ही जाती हैं। इस फिल्म के प्रचार और इंटरव्यू में शाह रुख खान ने बार-बार कहा कि ‘रईस’ में राहुल(रियलिज्म) और मेरी(कमर्शियल) दुनिया का मेल है। ‘रईस’ की यही खूबी और खामी है कि कमर्शियल मसाले डालकर मनोरंजन को रियलिस्टिक तरीके से परोसने की कोशिश की गई है। कुछ दृश्यों में यह तालमेल अच्छा लगता है, लेकिन कुछ दृश्यों में यह घालमेल हो गया है।
‘रईस’ गुजरात के एक ऐसे किरदार की कहानी है, जिसके लिए कोई भी धंधा छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता।‘ बचपन में वह मां से पूछता भी है कि क्या यह सच है तो मां आगे जोड़ती है कि उस धंधे की वजह से किसी का बुरा न हो। ‘रईस’ पूरी जिंदगी इस बात का ख्याल रखता है। वह शराब की अवैध बिक्री का गैरकानूनी धंधा करता है, लेकिन मोहल्ले और समाज के हित में सोचता रहता है। यह विमर्श और विवाद का अलग विषय हो सकता है कि नशाबंदी वाले राज्य में शराब की अवैध बिक्री करना नैतिक रूप से उचित है या नहीं। ‘रईस’ कम पढा-लिखा और उद्यमी स्वभाव का बालक है। वह अपने ही इलाके के सेठ का सहायक बन जाता है। धंधे के गुर सीखने के बाद वह खुद का कारोबार शुरू करता है। उसके पास ‘बनिए का दिमाग और मियां भाई की डेयरिंग है।‘ वह कामयाब होता है और अपने ही इलाके के सेठ के लिए चुनौती बन जाता है। अपने धंधे की सुरक्षा और बढ़ोत्तरी के लिए वह सत्ता और विपक्ष दोनों का इस्तेमाल करता है। धीरे-धीरे वह इतना ताकतवर हो जाता है कि सिस्टम से टकरा जाता है। फिर सिस्टम उसे अपना रंग दिखाता है…
ऊपरी तौर पर यह फिल्म रईस और आईपीएस अधिकारी मजमुदार की लुका-छिपी और भिड़ंत की कहानी लग सकती है। लेखक और निर्देशक ने उन्हें रोचक तरीके से आमने-सामने कर दर्शकों का मनोरंजन किया है। हमेशा रईस की दबोचने के पहले मजमुदार का ट्रांसफर हो जाता है। लगता है कि रईस ही मजुमदार की बाजी पलट देता है। दोनों के बीच जारी सांप-सीढी के खेल को अलग से देखें तो पता चलता है कि यह बिसात तो राजनीति और सिस्टम ने बिछायी है। वे अपनी सुविधा और लाभ से रईस और मजमुदार को छूट देते हैं। फिल्म खत्म होने के बाद कुछ सवाल बचे रह जाते हैं। गौर करें तो वे बड़े सवाल हैं, जो भारतीय समाज में कानून और व्यवस्था के पक्ष-विपक्ष में खड़े नागरिकों की वास्तविकता और विवशता जाहिर करते हैं। फिल्म की समय सीमा और शैली व शिल्प के मसलों में राहुल ढोलकिया सिस्टम की इस पोल को स्पष्ट तरीके से नहीं खोल पाते। अपराधी हों या पुलिस कर्मी …सिस्टम के लिए दोनों मोहरें हैं, जिन्हें वह अपने हित में उठाता, बिठाता और गिराता है।
राहुल ढोलकिया ने फिल्म का अप्रोच रियलिस्टिक रखा है, इसलिए पॉपुलर अभिनेता शाह रुख खान को अलग अंदाज में देखते हुए दिक्कत हो सकती है। निस्संदेह, शाह रुख खान ने कुछ अलग करने की कोशिश की है। वे इसमें सफल भी रहे हैं। उन्होंने अपना स्टारडम ओढे नहीं रखा है। वे साधारण दिखने और होने की भरपूर कोशिश करते हैं। उनके किरदार को संवारने में साए की तरह उनके सहयोगी बने सादिक (मोहम्मद जीशान अय्युब) की बड़ी भूमिका है। लगभग हर सीन में अगल-बगल में सादिक की मौजूदगी रईस को गढ़ती है। हां, कुछ निर्णायक दृश्य और संवाद भी सादिक को मिले होते तो फिल्म और विश्वसनीय लगती। नरेन्द्र झा मूसा के रूप में जंचते हैं। नायिका माहिरा खान कुछ विशेष नहीं जोड़ पातीं।
फिल्म में आईपीएस अधिकारी मजमुदार की भूमिका में नवाजुद्दीन सिद्दीकी मिले हुए हर दृश्य में कुछ जोड़ते और रोचक बनाते हैं। नवाजुद्दीन सिद्दीकी अपने किरदारों को थोड़ा अलग और विशेष बना देते हैं। ‘रईस’ में वह पूरी योग्यता के साथ उपस्थित हैं। निर्देशक ने उनकी क्षमता का पूरा उपयोग वहीं किया है। रईस और मजुमदार की ज्यादा भिड़ंत की चाहत अधूरी रह जाती है। फिल्म का एक हिस्सा तत्कालीन राजनीति के परिदृश्य को सामने लाती है। यह हिस्सा फिल्म में अच्छी तरह समाहित नहीं हो पाया है। मूल कथा और रईस के मिजाज के लिए जरूरी होने के बावजूद जोड़ा गया लगता है।
‘रईस’ अपराधी और गैंगस्टर है, लेकिन वह नेकदिल और संस्कारी है। वह मां की बात याद रखता है कि धंधे से किसी का बुरा नहीं होना चाहिए और जब फिल्म के क्लाइमेक्स में उसकी वजह से ऐसा हो जाता है तो वह पश्चाताप करता है। वह स्पष्ट कहता है कि मेरे लिए धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं है, लेकिन मैं धंधे का धर्म नहीं करता। अपने इस वक्तव्य के बाद ‘रईस’ आपराधिक पृष्ठभूमि के बावजूद नेक इंसान बन जाता है।
अवधि: 149 मिनट

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।