फिल्म रिव्यू: काबिल बरखुरदार हैं 'कपूर एंड सन्स' (4 स्टार)
धर्मा प्रॉडक्शंस पर औसत कहानियां पेश करने के आरोप लगते रहे हैं। इस फिल्म ने उस कलंक को धो दिया है। फिल्म की आत्मा यानी कहानी को बाकी आभूषणों से बढ़कर इज्जत बख्शी है। ‘कपूर एंड संस सिंस-1921’ एक आला दर्जे की फैमिली ड्रामा है।
अमित कर्ण
प्रमुख कलाकार- ऋषि कपूर, आलिया भट्ट, सिद्धार्थ मल्होत्रा, फवाद खान
निर्देशक- शकुन बत्रा
संगीत निर्देशक- अमान मलिक, बादशाह
स्टार- 4
धर्मा प्रॉडक्शंस पर औसत कहानियां पेश करने के आरोप लगते रहे हैं। इस फिल्म ने उस कलंक को धो दिया है। फिल्म की आत्मा यानी कहानी को बाकी आभूषणों से बढ़कर इज्जत बख्शी है। ‘कपूर एंड संस सिंस-1921’ एक आला दर्जे की फैमिली ड्रामा है। यह अपने किरदारों के जरिए बिखरे हुए परिवार की असाधारण कहानी कहती है। फिल्म की कहानी को उसके किरदार आगे ले जाते हैं। यही इसे प्रशंसनीय बना जाती है। लेखक और निर्देशक रिश्तों की तह में गए हैं। जिन मुद्दों के साथ उन्होंने फिल्म का आगाज किया, वे उसे अंजाम तक ले गए हैं। उन्होंने तीन अलग पीढी की सोच-अप्रोच को एक धागे में पिरोया है।
यह फिल्म अपनी उम्दा पटकथा के लिए जानी जाएगी। इस काम में लेखक व निर्देशक शकुन बत्रा को सह लेखिका आएशा देवित्रे ढिल्लन का भरपूर साथ मिला है। एडिटर शिवकुमार वी पनिकर ने फिल्म की कसावट का पूरा ख्याल रखा है। उन्होंने एक भी सीन को गैर जरूरी नहीं होने दिया है। हिंदी के संवादों की देखरेख की जिम्मेदारी स्पंदन मिश्रा के जिम्मे थी। सबने तसल्लीम से काम किया है। उसे सोने पे सुहागा जेफ्री एफ बरमैन की सिनमैटोग्राफी ने बना दिया है। उन्होंजने कुन्नुर की खूबसूरत वादियों को बहुत खूबसूरती से कैप्चर किया है। फिल्म निखर और उभर कर सामने आई है। प्रोस्थैहटिक मेकअप ग्रेग कैनम का है। ऋषि कपूर को उन्होंने वाकई 90 बरस के रमेश कपूर का बना दिया है। दरअसल दादा रमेश कपूर फिल्म की धुरी हैं। उसे मेकअप व सशक्त किरदार बना लेखक-निर्देशक ने जस्टिफाई किया है। अच्छी बात है कि ‘पीकू’ के बाद से अब बुजुर्गों के लिए भी ऊंचे स्तर के रोल लिखे जा रहे हैं।
बहरहाल, फिल्म की कहानी कर्नाटक के कुन्नूर में सेट है। वहां रमेश कपूर अपने बहू सुनिता कपूर व बेटे हर्ष कपूर के साथ रहते हैं। बहू व बेटे के बीच सब कुछ ठीक नहीं है। रमेश कपूर के पोते राहुल कपूर व अर्जुन कपूर क्रमश: लंदन व अमेरिका में हैं। राहुल सेलेब्रेटी लेखक है, जबकि अर्जुन संघर्षरत। दोनों में लगाव की कमी है, जिसकी वजह अतीत की एक घटना है। रमेश कपूर मरने से पहले अपने बिखरे परिवार को फिर से जोड़ना चाहते हैं। उन्हें हार्ट अटैक आता है। उसकी वजह से दोनों पोते विदेश से कुन्नुर आते हैं। घर आने के बाद सब कुछ ठीक होने की बजाय सभी के रिश्तों का धागा और उलझ जाता है। तभी राहुल व अर्जुन की जिंदगी में टिया की एंट्री आती है। अर्जुन के दुखों को भुलाने में टिया मददगार साबित होती है, पर राहुल की वजह से कहानी में फिर मोड़ आता है। राहुल के एक और राज का खुलासा होता है। वह एक झटके में उसे अपनी मां और भाई से दूर ले जाता है। आखिर में दादा रमेश कपूर परिवार को एकजुट कर पाते हैं कि नहीं, यह इस फिल्म की कहानी है।
शकुन बत्रा अपने किरदारों से आसक्त नहीं होते। किरदार उनकी कहानी को दिशा देते हैं। मगर वे वहीं पहुंचते हैं जहां शकुन ले जाना चाहते हैं। वे कहना चाहते हैं कि बिगड़े हुए रिश्तों को वक्त की नर्म धूप व संवाद का ईंधन दें। रिश्तों में अपने-आप गर्माहट आ जाएगी। एक बात और कि हर इंसान कहीं न कहीं प्यार ढूंढ रहा है। वह पहचान चीज व्यक्ति को मिल जाए तो उसका भटकाव दूर हो जाएगा। कपूर परिवार का हर सदस्य भटकाव की कगार पर है। उन्हें उस मोड़ से दादा रमेश कपूर व टिया कपूर वापस लाने की कोशिश करते हैं। फवाद खान ने राहुल को हर जरूरी चीज दी है। बड़े बेटे के रूप में राहुल की परिपक्वता व शालीनता के पुट हैं। सिद्धार्थ मल्होत्रा ने अर्जुन की खुद को साबित करने की बेचैनी को असरदार बनाया है। आलिया भट्ट टिया को स्वाभाविक बना गई हैं। रजत कपूर व रत्ना पाठक शाह ने आर्थिक तंगी झेल रहे पति-पत्नी के मनमुटाव व अन्य कार्य-कारण को जस्टिफाई किया है। दादा की भूमिका में ऋषि कपूर ने जानदार काम किया है। दादा की चुहलबाजी व चिंता दोनों को उन्होंने पर्दे पर बखूबी पेश किया है। गाने अच्छे बन पड़े हैं। क्रिएटिव टीम की तरफ से कोशिश की गई लगती है कि वे अनावश्यक रूप से ठूंसे गए न लगें। कहानी सरल है, पर उसे कहने के ढंग ने निराला बना दिया है।
अवधि- 140 मिनट