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फिल्म रिव्यू : कोर्ट (4.5 स्टार)

फिल्म इंडस्ट्री में कोर्टरुम के अनेक वर्जन दिखाए गए हैं। जहां एक डिफेंस लॉयर है तो एक प्रोसिक्यूशन लॉयर और साथ में हैं 'मायलॉर्ड्स'। इस तरह से यह सीन पूरा होता है। मगर इस मराठी-हिन्दी-गुजराती और अंग्रेजी फिल्म में यही बात एक अलग ढंग से सामने आती है। इस फिल्म

By Tilak RajEdited By: Published: Fri, 17 Apr 2015 08:00 AM (IST)Updated: Sat, 18 Apr 2015 09:41 AM (IST)
फिल्म रिव्यू : कोर्ट (4.5 स्टार)

डायरेक्टर - चेतन्य ताम्हणे

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कास्ट - वीरा साथीदार, विवेक गोंबर, गीतांजलि कुलकर्णी

स्टार - 4.5

फिल्म इंडस्ट्री में कोर्टरुम के अनेक वर्जन दिखाए गए हैं। जहां एक डिफेंस लॉयर है तो एक प्रोसिक्यूशन लॉयर और साथ में हैं 'मायलॉर्ड्स'। इस तरह से यह सीन पूरा होता है। मगर इस मराठी-हिन्दी-गुजराती और अंग्रेजी फिल्म में यही बात एक अलग ढंग से सामने आती है।

इस फिल्म की सबसे खास बात यही है कि मल्टिपल अवॉर्ड जीतने के बाद भी यह फिल्म बेहद साधारण होकर असाधारण बन पड़ी है। जब आप फिल्म देखने बैठते है तो धीरे-धीरे इससे बंधते चले जाते हैं और आगे जाकर आपको समझ आता है कि देश की न्याय व्यवस्था में कैसे पेंच हैं।

कहानी है एक लोकगीत परफॉर्मर और दलित एक्टिविस्ट नारायण कुंबले (वीरा साथीदार) की जिस पर आरोप है कि उसने वासुदेव पवार को आत्महत्या के लिए उकसाया है। पुलिस इस बात को मानकर बैठी है कि जो गीत कुंबले ने गाया है, उसी से पवार को आत्महत्या के लिए प्रेरणा मिली है। इसी के चलते वो नाली में बिना किसी सुरक्षा संसाधनों के उतरता है और मर जाता है।

चूंकि ट्रायल चल रहा है सो कुंबले के डिफेंस लॉयर हैं विनय वोरा (विवेक गोंबर)। वे लगातार इस कोशिश में हैं कि कुंबले को जमानत मिल जाए। वहीं प्रोसिक्यूशन लॉयर नूतन (गीतांजलि कुलकर्णी) ऐसा बिलकुल नहीं चाहती हैं।

डेब्यूटेंट डायरेक्टर चेतन्य ताम्हणे ने इसके साथ ही यह भी बताया है कि हर दिन कोर्टरुम में किस तरह की जद्दोजहद होती है। एक व्यक्ति को न्यायिक प्रक्रिया से कैसे जूझना पड़ता है। फिल्म में नूतन और जज सदावर्ते के मिडिल क्लास जीवन को भी दिखाया गया है, जो अपनी सीमित सोच के बूते इस मामले पर चर्चा भी करते हैं।

आत्मविश्वास से भरे डायरेक्शन में दिल को छूती हुई एक मजबूत कहानी है फिल्म 'कोर्टरुम' की। गीतांजलि की परफॉर्मेंस बहुत अच्छी है। बाकी कलाकारों ने भी अच्छा सहयोग किया है। हालांकि गोंबर को गुजराती एसेंट में कुछ परेशानी हुई मगर फिर भी अपने किरदार में बने रहने का उनका प्रयास अच्छा था।

यह वास्तविक फिल्म है जो आपको जरूर महसूस होगी। दर्शकों को ऐसी फिल्में देखने की जरूरत है।

अवधिः 116 मिनट


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