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फिल्म रिव्यू: बाहुबली (3 स्टार)

एसएस राजामौली की फिल्म 'बाहुबली' मूल रूप से हिंदी में बनी फिल्म नहीं है। फिर भी यह हिंदी दर्शकों के लिए दक्षिण की सौगात है। इस पैमाने पर हिंदी में फिल्में नहीं सोची गई हैं। हम बिग बजट फिल्मों में अलग प्रयोग करते रहे हैं। पीरियड में जाकर काल्पनिक कथा

By Monika SharmaEdited By: Published: Fri, 10 Jul 2015 09:02 AM (IST)Updated: Fri, 10 Jul 2015 12:50 PM (IST)
फिल्म रिव्यू: बाहुबली (3 स्टार)

अजय ब्रह्मात्मज
प्रमुख कलाकार: प्रभास, राणा दग्गुबाती, तमन्ना, अनुष्का शेट्टी
निर्देशक: एस.एस. राजमौली
संगीतकार निर्देशक: एम.एम. कीरावाणी
स्टार: 3

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एसएस राजामौली की फिल्म 'बाहुबली' मूल रूप से हिंदी में बनी फिल्म नहीं है। फिर भी यह हिंदी दर्शकों के लिए दक्षिण की सौगात है। इस पैमाने पर हिंदी में फिल्में नहीं सोची गई हैं। हम बिग बजट फिल्मों में अलग प्रयोग करते रहे हैं। पीरियड में जाकर काल्पनिक कथा कहने की कोशिश कम की गई है। राजामौली अपने प्रयास से मुग्ध करते हैं। बाहुबली कंप्यूटर जनित (सीजी) एपिक फिल्म है। लेखक और निर्देशक की कल्पना की उड़ान प्रभावित करती है।

'बाहुबली' एक बहादुर बेटे की कहानी है। वह अपनी मां के साथ हुए अन्याय के समाधान के लिए साहस और बल का इस्तेमाल करता है। एक राज्य में छल से बाहुबली को उसके अधिकार से बचपन में ही वंचित कर दिया जाता है। बाहुबली को जंगल के नागरिक पालते हैं। बड़े होने के साथ बाहुबली की जल पर्वत पर चढ़ने की इच्छा मजबूत होती जाती है। उसकी पालक मां उसे रोकने में सफल नहीं हो पाति। जल पर्वत पर उसकी मुलाक़ात अवंतिका से होती है। दोनों के बीच प्रेम होता है, लेकिन फिल्म का लक्ष्य उनका पतन नहीं है। दोनों का लक्ष्य रानी देवसेना की मुक्ति और अधिकार हासिल करना है। छोटे प्रेम प्रसंग और एक-दो रोमांटिक गानों के बाद बाहुबली मुख्य लक्ष्य में जुट जाता है। यह बाहुबली के पराक्रम की गौरव गाथा है, जिसे राजामौली ने सीजी इफेक्ट से प्रभावशाली बना दिया है। यह फिल्म इस प्रभाव के चमत्कार के लिए भी देखी जा सकती है। फिल्म में दृश्यों की रोचकता बनी रहती है। हालांकि फिल्म में घिसी-पिटी धारणाओं का भरपूर इस्तेमाल हुआ है, लेकिन लेखक और निर्देशक उनमें अधिक भटकते नहीं हैं। वे अपने काल्पनिक संसार में रमते हैं। वे विशाल और वृहद् दृश्य संयोजन से सम्मोहन बनाए रखते हैं।

कलाकारों के लिए सीजी प्रभाव की फिल्मों में काम करना सहज नहीं होता। पर्दे पर हम उन्हें जिस माहौल में देखते हैं, शूटिंग के समय वह नदारद रहता है। एक प्रकार से ऐसी फिल्मों में उन्हें शून्य में ही अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल करना होता है। इस लिहाज से राणा और प्रभास की टाइमिंग अपेक्षित परिणाम लाती है। पीरियड और कॉस्ट्यूम ड्रामा की चुनौती सभी कलाकारों ने स्वीकार की है। 'बाहुबली' मनोरंजक चाक्षुष अनुभव है।

'बाहुबली' में डबिंग की खामियां हैं। कई दृश्यों में लिपसिंक सही नहीं है। सुनाई कुछ और पड़ता है, जबकि होंठ कुछ और बोल रहे होते हैं। और जंगल के नागरिकों को भोजपुरी मिश्रित भाषा देने का तुक समझ में नहीं आता। सदियों पहले के इस परिवेश में भाषा की यह पहचान सटीक नहीं लगती। 'बाहुबली' में देवसेना जब कहती हैं कि 'मेरा बेटा आएगा' तो स्वाभाविक रूप से 'करण अर्जुन' की राखी याद आ जाती हैं।

सीजी के लिए इस फिल्म की तारीफ करनी होगी। वास्तव में ऐसे विशालकाय सेट नहीं तैयार किए जा सकते थे। बाहुबली में सीजी इफेक्ट से तैयार जलप्रपात, महल, युद्ध के मैदान और युद्ध में तकनीकी टीम का कौशल दिखता है।

अवधिः 159 मिनट
abrahmatmaj@mbi.jagran.com

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