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फिल्में मेरा पहला प्यार : रकुल प्रीत

निर्देशक दिव्या खोसला कुमार की पहली फिल्म 'यारियां' की मुख्य अभिनेत्री हैं रकुल प्रीत। दिल्ली की रकुल की देश के कई शहरों में स्कूलिंग और अपब्रिंगिंग हुई है। उनसे बातचीत फिल्म और उनकी निजी जिंदगी के बारे में। फिल्म 'यारियां' में अलग क्या है? आप सभी ने अभी तक कई यूथ

By Edited By: Published: Mon, 23 Dec 2013 12:51 PM (IST)Updated: Mon, 23 Dec 2013 01:14 PM (IST)
फिल्में मेरा पहला प्यार : रकुल प्रीत

मुंबई। निर्देशक दिव्या खोसला कुमार की पहली फिल्म 'यारियां' की मुख्य अभिनेत्री हैं रकुल प्रीत। दिल्ली की रकुल की देश के कई शहरों में स्कूलिंग और अपब्रिंगिंग हुई है। उनसे बातचीत फिल्म और उनकी निजी जिंदगी के बारे में।

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फिल्म 'यारियां' में अलग क्या है?

आप सभी ने अभी तक कई यूथ फिल्में देखी होंगी, लेकिन 'यारियां' में हम युवाओं के बीच की कोई अनबन नहीं दिखाकर उनके बीच के खुशनुमा पलों को पर्दे पर दिखाएंगे। नॉर्थ ईस्ट का एक कॉलेज है, जहां पर कुछ स्थानीय बच्चे पढ़ते हैं। मैं उन्हीं में से एक हूं। मेरे दोस्तों का भी एक ग्रुप है। हम अपनी दुनिया में बिजी रहते हैं, लेकिन 'यारियां' किसी एक समूह की कहानी नहीं है। यह कई समूहों की कहानी है। उनके बीच संबंध और करियर में आगे बढ़ने की कहानी है। इस फिल्म में लोगों को कई अप्स ऐंड डाउन्स देखने को मिलेंगे, जिसमें इमोशंस को संभालकर रखना होगा। मैं तो कमजोर दिल की हूं। मैं कभी भी रो सकती हूं ऐसी सिचुएशन आने पर। मैं उम्मीद करती हूं कि दर्शकों के दिलों तक हमारी बात पहुंचेगी।

फिल्म की शूटिंग के बारे में कुछ बताएं?

हमने कुछ सीन केपटाउन में शूट किया। फिर हम दार्जिलिंग आए और नॉर्थ सिक्किम में शूट किया। उस समय वहां का तापमान माइनस आठ डिग्री था। फिर केरल और मुंबई में शूट किया। लगभग पैंतालीस दिनों तक हम लगातार शूट करते रहे। मैं लोगों को बता दूं कि नॉर्थ ईस्ट में शूट करना आज भी आसान नहीं है, लेकिन दिव्या मैम का डेडिकेशन था कि हम सिक्किम के उन इलाकों में गए, जहां शूट करना बहुत मुश्किल था। दिव्या मैम के साथ काम करना ऐसा लगा कि हम एक टीचर के साथ काम कर रहे हैं, जो कभी हमें डांटता नहीं है और न ही कभी होमवर्क करने को कहता है। शूटिंग के दिन कब बीत गए, हममें से किसी को पता नहीं चला।

नॉर्थ ईस्ट के बारे में आपका परसेप्शन क्या है?

मेरे डैड आर्मी बैकग्राउंड से थे, तो मैं तकरीबन पांच सालों तक आइजोल में रही हूं। आज कई लोगों को पता भी नहीं होगा कि आइजोल कहां है? मैं वहां की एक-एक जगह को जानती थी। जब मैं दार्जिलिंग शूटिंग के लिए गई, तो मुझे लगा कि यह तो मेरा होमटाउन है, लेकिन आज वहां की हालत देखकर अफसोस होता है कि हम लोगों ने उन्हें अलग-थलग छोड़ दिया है। इसके लिए मैं सिस्टम को दोष नहीं देना चाहूंगी, क्योंकि हम में से हर एक इस हालत के लिए जिम्मेदार है।

फिल्मों में आना कैसे हुआ?

मैं बचपन से फिल्मी थी। मैं दिल्ली में थी और मेरी मां को अभिनेत्री बनना था या आजकल की भाषा में उन्हें आप ग्लैमर स्टक कह सकते हैं, लेकिन आर्मी अनुशासन की वजह से मेरा जीवन हमेशा टाइम टेबल के हिसाब से बीता है। मैंने बचपन में डांस, थिएटर सब किया, लेकिन विषय के तौर पर, यानी इट्स पार्ट ऑफ माई क्लास। जब मैं अठारह साल की थी, तब मां ने मुझे मॉडलिंग करने के लिए कह दिया। उसके बाद मैं मॉडलिंग की दुनिया में आ गई। फिर मुझे तीन महीने बाद एक साउथ की फिल्म का ऑफर आया। मेरी पॉकेट मनी थी तीन हजार और मुझे इस फिल्म के लिए तीन लाख मिले। मुझे और क्या चाहिए था? मैंने हां कर दी। अब तक तीन साउथ की फिल्में कर चुकी हूं। 'यारियां' मेरी पहली हिंदी फिल्म है। उम्मीद करती हूं कि लोग इस फिल्म को पसंद करेंगे और साथ ही मेरा काम भी।

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