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    वाराणसी पहुंचे उस्ताद गुलाम अली, पढ़ी नमाज, देखी गंगा आरती

    By Monika SharmaEdited By:
    Updated: Thu, 09 Apr 2015 10:21 AM (IST)

    संकट मोचन संगीत समारोह में पहली बार हाजिरी लगाने पहुंचे प्रख्यात गजल गायक उस्ताद गुलाम अली खान। बुधवार दोपहर में काशी पहुंचने के साथ ही उनपर भक्ति का रंग छा गया। नतीजा यह देखने को मिला कि उन्होंने पंचसितारा होटल की बजाय गंगा घाट स्थित भवन में शाम तक आराम

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    वाराणसी। संकट मोचन संगीत समारोह में पहली बार हाजिरी लगाने पहुंचे प्रख्यात गजल गायक उस्ताद गुलाम अली खान। बुधवार दोपहर में काशी पहुंचने के साथ ही उनपर भक्ति का रंग छा गया। नतीजा यह देखने को मिला कि उन्होंने पंचसितारा होटल की बजाय गंगा घाट स्थित भवन में शाम तक आराम किया। गोस्वामी तुलसीदास ने जहां रामचरितमानस की रचना की, उस तुलसीघाट को किया प्रणाम, वहीं शाम की नमाज पढ़ी और गंगा आरती देखी।

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    पाकिस्तान के इस कलाकार ने कहा कि संकट मोचन दरबार में हाजिरी लगाने आया हूं। अरसे से सुन रहा था कि यहां बड़े कलाकार प्रस्तुति देने आते हैं, उन्हीं को सुनने भी आया हूं। नई पीढ़ी के बाबत सवाल पर गजल गायक ने कहा कि आदमी जितनी मेहनत करेगा, सीख समझ कर खुद में भाव भरेगा, बेशक वह उतना ही आगे बढ़ेगा। दूसरों से अलहदा भी दिखेगा। बोले, ये मत सोचो बात कौन करता है, यह सोचो बात क्या करता है। गुलाम अली ने कहा कि दोनों देशों में जो भी मतभेद हैं, भर जाएंगे। दूरियां नफरत की आग फैलाने से नहीं, सुर और संगीत से मिटाई जा सकती हैं। मैं पाकिस्तान से इस पवित्र नगरी काशी में प्रेम का पैगाम देने आया हूं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए गजल गायक बोले कि मोदी प्रेम का पैगाम लेकर सभी को साथ लेते हुए आगे बढ़ रहे हैं। उनका संसदीय क्षेत्र दुनिया में अनूठा है। यहां के लोग रेशम जैसे नर्म हैं। अगले साल और भी देशों के कलाकार आएंगे। फिल्मों में गायकी के सवाल पर उन्होंने कहा कि फिल्मों में गड़बड़ गानों का प्रचलन बढ़ गया है इसलिए उससे बचने की ही कोशिश रहती है।

    फिल्मों में गजल अब किराए की चीज़

    गजल सम्राट से जब गजल की दशा-दिशा पर बात हुई तो जैसे सिलसिले चल पड़े। गुलाम अली ने कहा कि फिल्मों में गजल अब किराए की बात हो चली है। गजल के मर्म को समझने और उसकी छुअन को महसूस करने के लिए उर्दू सीखना जरुरी है। उर्दू के अल्फाज गजल को असीमित विस्तार देते हैं। गजल वहां तक पहुंचती है जहां तक निगाहें और इंसानी कल्पनाएं नहीं पहुंच पाती हैं।

    पंडित बिरजू महाराज ने भी पेश किया नृत्य

    पं. बिरजू महाराज के युवा पुत्र पं. दीपक महाराज ने मंच संभाला। कथक में उपज, थाट, उठान, रेला, गत, फर्द, बंदिश समेत पारंपरिक प्रस्तुतियां दीं। पुत्र के हर भाव पर विभोर होते पिता ने भी साथ दिया और इस उम्र में भी निहाल कर डाला। तीन ताल में धुन मंगल मूरत मारुति नंदन... पर भाव सजाए। घुंघरू को नायिका व तबला को नायक बनाया और दोनों के बीच सधी जुगलबंदी कराया।

    पं. हरिप्रसाद की बांसुरी की तान पर सज उठी कान्हा के वृंदावन की झांकी

    पं. हरिप्रसाद चौरसिया ने राग दुर्गा में बांसुरी की तान छेड़ी और हनुमत दरबार में वृंदावन उतार दिया। उन्होंने तीन ताल द्रुत गत में बंदिश पर तालियां बटोरीं। पायो जी मैंने राम रतन धन पायो.... भजन से दिलों में उतरते चले गए। बेगम अख्तर की मशहूर गजल हमरी अटरिया पर... से समापन किया।

    जब एक-दूसरे को नज़रअंदाज करते रहे सैफ और शाहिद!